
Vivah Panchami 2025: विवाहित दम्पतियों के लिये
उत्सव का दिन है विवाह पंचमी
डाॅ. मुरलीधर चाँदनीवाला

_________________________
अभी मार्गशीर्ष का महीना चल रहा है। मार्गशीर्ष का पूरा महीना विवाह का महीना मान लिया गया है, क्योंकि इस महीने विवाहों की धूम रहती है। मार्गशीर्ष का महत्व इसलिये भी है, क्योंकि इसी महीने में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम और जनकतनया सीताजी का विवाह सम्पन्न हुआ था। उस दिन मार्गशीर्ष शुक्ल की पंचमी तिथि थी, इसलिये आज भी यह दिन पूरे भारत में विवाह पंचमी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। विवाहित दम्पतियों के लिये उत्सव का दिन है विवाह पंचमी।

कुछ बरस पहले मैं विवाह पंचमी के मौके पर ओरछा में था। ओरछा में राम राजा का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। विवाह पंचमी के दिन वहाँ राम-सीता का विवाह समारोह आयोजित करने की पुरानी परम्परा है। वहाँ सप्ताह भर तक किसी के भी घर चूल्हा नहीं जलता। पूरा गाँव राम-सीता के विवाह को उत्सव के रूप में मनाता है। श्रीराम की बारात आ रही है। जनक जी दल-बल के साथ अगवानी कर रहे हैं, शहनाइयाँ गूँज रही है, लग्न की वेला है, मंगलाचार के लिये पुरवासी इकट्ठा हैं। भारी संख्या में लोग भोजन कर रहे हैं। सीता जी की बिदाई हो रही है, लेकिन बारात का जनकपुरी छोड़कर जाने का मन ही नहीं है। जनक जी भी सबको रोके हुए हैं। ऐसे मांगलिक आयोजन केवल ओरछा में ही नहीं होते, जगह-जगह होते हैं।
भारतीय संस्कृति के इतिहास में राम और सीता के विवाह को महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। राम का राम होना सीता के कारण है, और सीता का सीता होना राम के कारण। राम और सीता के बिना भारत का क्या गौरव! राम और सीता का चरित्र भारत की पवित्र अस्मिता है। कहा जाता है कि शिव और पार्वती के बाद राम और सीता का विवाह ही भारत के भाग्य का वह द्वार है, जिसके खुलते ही हमारा मानस अपने आपको श्रद्धा और विश्वास के सामने खड़ा हुआ पाता है। हम तो पूरे संसार को सीता माता और श्रीराम में ही देखते चले आये हैं। तुलसीदास जी ने इसीलिये लिख दिया है-‘सियाराममय सब जग जानी, करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।’

राम और सीता का दाम्पत्य बेहद कंटीले रास्तों से होता हुआ भी जिस मुकाम पर पहुँचता है, वह इतना पावन है कि युगों-युगों से भारतीय दाम्पत्य का कवच बना हुआ है। वशिष्ठ ऋषि और राजर्षि जनक ने राम और सीता के विवाह के लिये मार्गशीर्ष का ही महीना चुना। राम और सीता ने जीवन भर कष्ट ही कष्ट उठाए। उनका दाम्पत्य कभी सुखपूर्वक नहीं बीता, यह जानते हुए भी लोगों के लिये विवाहपंचमी से अधिक पावन और शुभ दिन दूसरा नहीं। यह तिथि सर्वाधिक मंगलदायिनी मानी जाती है, क्योंकि इसी दिन राम और सीता के लग्न हुए। सीता राम की सिद्धि है, लक्ष्मी है, दया है, क्षमा है। भारतीय समाज में हरेक पत्नी को यही दर्जा प्राप्त है। यह नींव है, जिस पर अनगिनत आपदाओं के चलते हुए भी हमारे परिवार सदियों से मजबूत बने हुए हैं।
सीता इस धरती की बेटी है, और श्रीराम विष्णु का अवतार होकर भी दुःख-आपदाओं से खेलते रहने वाले मनुष्य। सीता और राम को जोड़कर देखें, तो हमारे सामने यही निष्कर्ष आते हैं कि हम इस पृथ्वी पर भोग करने के लिये नहीं, अपितु परस्पर त्याग और समर्पण के लिये हैं। सीता और राम का दाम्पत्य हमें प्रेम की जो परिभाषा देता है, वह करुणा से भरी होने के बावजूद शहद में डूबी हुई है। इसीलिये तो बड़े चाव से घर-घर रामायण पढ़ी जाती है। सीता और राम के दाम्पत्य का जो नीतिशास्त्र है, वह सबसे अनोखा होकर भी मंगलदायक है।
विवाह पंचमी का यह पावन पर्व गृहस्थ धर्म का पालन करने वाली दम्पतियों के लिये कुछ विशेष है। श्रीराम और सीताजी के वैवाहिक समीकरण से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि दाम्पत्य जीवन निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर परस्पर उन्नति के लिये हो। पति-पत्नी एक-दूसरे के सिद्धांतों की उसी तरह रक्षा करे, जैसा श्रीराम और सीता ने किया। दाम्पत्य जीवन जितना अधिक मर्यादित, सुशील और एकनिष्ठ होगा, हमारी सामाजिक व्यवस्थाएँ भी उसी अनुपात में समृद्ध होंगी। श्रीराम और सीता जी का दाम्पत्य जीवन भारतीय सद्गृहस्थों का मंगल-कवच है। वह हमें आश्वस्त करता है कि कुछ भी अनिष्ट नहीं होगा। राम और सीता का युग्म हमारे लिये श्रद्धा और विश्वास का वह युग्म है, जो नित्य है, और अखंड है।





