विवेकानंद आज भी प्रासंगिक हैं…

379

विवेकानंद आज भी प्रासंगिक हैं…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

आज जब पूरी दुनिया जल रही है। नेपाल में भूचाल है। फ्रांस अशांत है। रूस यूक्रेन सालों से जल रहे हैं और अब युद्ध का विस्तार पोलैंड तक हो गया है। इजरायल ने कतर पर हमला कर दिया है। अमेरिका तैयार बैठा है। बस एक चिंगारी बाकी है और पूरी दुनिया धूं-धूं करके पूरी तरह से विनाशकारी आग में तबाही हो जाएगी। ऐसे में 19वीं सदी का स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया गया भाषण एक बार फिर प्रासंगिक है। 11 सितंबर अमेरिका के लिए वैसे भी काला दिन है। 11 सितंबर को मुख्य रूप से दो बड़ी घटनाओं के लिए जाना जाता है। साल 2001 में अमेरिका पर हुआ 9/11 आतंकवादी हमला, जिसमें अल-कायदा के आतंकवादियों ने चार विमानों का अपहरण कर न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन और पेंसिल्वेनिया में एक खेत में दुर्घटनाग्रस्त कर दिया था। इसमें 6000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। और दूसरा 1893 में शिकागो में हुए विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का ऐतिहासिक भाषण, जो आज और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गया है।

बहुत ही संक्षेप में समझें तो शिकागो भाषण 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो विश्व धर्म संसद में दिए गए एक ऐतिहासिक भाषण को संदर्भित करता है। इसमें उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता, सार्वभौमिक स्वीकृति और भारत की महान संस्कृति तथा आध्यात्म का संदेश दिया था। इससे वे पश्चिमी देशों में भारत के एक प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में प्रसिद्ध हुए थे।

विवेकानंद ने जोर दिया था कि सभी धर्म सत्य हैं और उन्हें सार्वभौमिक स्वीकृति मिलनी चाहिए।यानी उन्होंने धार्मिक वैमनस्यता को नकारा था। सार्वभौमिक स्वीकृति का विस्तार धर्म से आगे जाकर अलग-अलग देशों के विचारों, उनकी एकता अखंडता, अक्षुण्णता और पारस्परिक संबंधों तक माना जा सकता है। शिकागो भाषण में स्वामी विवेकानंद ने बताया था कि भारत ने हमेशा से सभी धर्मों को शरण दी है और सभी को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया है। वास्तव में यह सहिष्णुता शब्द हर देश की विदेश नीति का प्रमुख प्रमुख हिस्सा बन जाए तो शायद दुनिया जलने से बच जाए।

स्वामी विवेकानंद ने किसी भी प्रकार के संप्रदायवाद, कट्टरता और हठधर्मिता को मानवता के लिए हानिकारक बताया था, क्योंकि इनसे हिंसा और विनाश होता है। हालांकि यह बात सभी धर्म के अनुयायियों पर लागू होती है। स्वामी विवेकानंद ने उम्मीद जताई थी कि इस सम्मेलन से मानव समाज में एकता और भाईचारे का संचार होगा। पर शायद शिकागो भाषण के बाद से आज तक एकता और भाईचारा दुनिया की सोच से नदारद ही रहा है।

फिर भी यह खुले मन से स्वीकार किया जा सकता है कि 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में भारत के प्रतिनिधि स्वामी विवेकानंद का भाषण आज भी प्रासंगिक है। निहित स्वार्थों और आपसी वैमनस्यता के कारण युद्धों की आग में जल रही पूरी दुनिया के लिए यह बड़ी सीख है। विवेकानंद ने यह भाषण शिकागो में दिया था और उनका भाषण आज भी सबसे ज्यादा अमेरिका को यह याद दिला रहा है कि सहिष्णु बनो, उदारवादी बनो और प्रेम-भाईचारे का मतलब समझो। क्योंकि 11 सितंबर की तारीख अमेरिका के इतिहास में सबसे कष्टदाई दिन की गवाह है। हालांकि दूसरे देशों के लिए भी यह बात उतनी ही सच है और स्वीकार करने योग्य है। तो स्वामी विवेकानंद कल भी प्रासंगिक थे, आज भी प्रासंगिक हैं और कल भी प्रासंगिक रहेंगे…।

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।