“शिक्षक” समाज को जो देता है, उस सेवा को हम धन से नहीं माप सकते

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शिक्षक दिवस विशेष: “शिक्षक” समाज को जो देता है, उस सेवा को हम धन से नहीं माप सकते 

 

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( शिक्षाविद रमेशचंद्र चंद्रे , मंदसौर )

 

शिक्षक दिवस समस्त शिक्षक वृन्द एवं गुरुजनों को श्रद्धा और आदर से स्मरण करने का दिवस है । एकदिन नहीं यह भाव सदैव रहना चाहिए ।

यह दिवस आंकलन और स्थिति पर विचार का भी है ।

यह सत्य है कि शिक्षा व्यवसाय नहीं हो सकती किंतु केवल धन कमाने तथा जीविका उपार्जन के उद्देश्य से जो व्यक्ति शिक्षक बनते हैं, उनका जीवन विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायी नहीं बन सकता किंतु इसका कदापि यह अर्थ नहीं है कि शिक्षकों के वेतन की चिंता नहीं की जाए। समाज एवं सरकार का दायित्व है कि वह शिक्षक के लिए इस प्रकार की व्यवस्था करें जिससे वह आर्थिक चिंता से मुक्त रहकर अपने परिवार के भरण पोषण का कार्य सुचारू रूप से चला सके और निश्चिंत होकर विद्यार्थियों के प्रति अपने दायित्व को पूर्ण कर सके।

 

शिक्षक समाज को जो देता है, उसको हम धन से नहीं माप सकते, शिक्षक के ऋण से समाज कभी उऋण नहीं हो सकता इसके लिए शिक्षक को सम्मान एवं प्रतिष्ठा देकर ही उस ऋण से उऋण होने का सही मार्ग हो सकता है।

 

वर्तमान काल में अधिकतर जो व्यक्ति धनार्जन के उद्देश्य से ही शिक्षक के रूप में कार्य करते है, उनके मन में सदैव असंतोष व्याप्त रहता है, अधिक से अधिक धनार्जन किस प्रकार किया जाए, इसी उधेड़बुन में सदैव लगे रहते हैं, उनका जीवन भोग प्रधान एवं अनेक प्रकार के दुर्गुणों एवं विषयों से युक्त रहता है। ऐसी स्थिति वाले व्यक्ति आगे चलकर शिक्षक पद को कलंकित करते है एवं शिक्षा क्षेत्र के लिए भार स्वरूप होते हैं तथा विद्यार्थियों के जीवन के साथ खिलवाड़ करते हैं।

 

हमें ऐसे व्यक्तियों से शिक्षा जगत को मुक्त करने हेतु प्रयत्न करना चाहिए तथा ऐसी व्यवस्था करना चाहिए कि- अवांछनीय तत्व शिक्षा क्षेत्र में शिक्षक के रूप में प्रवेश ही ना कर सके।

“शिक्षक” सरस्वती का उपासक होता है। उसका जीवन सरल, संयमित एवं त्याग पूर्ण होना चाहिए।

लक्ष्मी के उपासक व्यक्तियों को शिक्षा क्षेत्र में प्रवेश ही नहीं करना चाहिए, वह धनार्जन हेतु व्यापारी बन व्यवसाय करें परंतु उन्हें शिक्षक नहीं बनना चाहिए इसी में देश एवं मानवता का कल्याण है।