नाम में क्या रखा है साहब…

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नाम में क्या रखा है साहब…

आज नाम की चर्चा सिर्फ इसलिए क्योंकि सांसद प्रज्ञा सिंह के प्रस्ताव पर भोपाल नगर निगम ने राजधानी के हलालपुर बस स्टैंड, हलालपुर बस्ती और लाल घाटी चौराहे का नाम बदलकर हनुमानगढ़ बस स्टैंड, हनुमानगढ़ी बस्ती और महंत नारायण दास सर्वेसर चौराहा कर दिया है।इससे पहले हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति कर दिया गया है। भोपाल के ग्रामीण क्षेत्र स्थित इस्लामपुर का नाम जगदीशपुर रखा गया। और कोई बड़ी बात नहीं कि आगामी समय में औबेदुल्लागंज, नसरुल्लागंज जैसे नाम भी मध्यप्रदेश के नक्शे में बदले हुए नामों से दर्ज हो जाएं। यहां नामों के बदलाव का सिलसिला घोषित तौर पर जारी है। वह भाव भी इसमें शामिल है जब देश की राजधानी दिल्ली में भी नामों को बदलने का सिलसिला जारी है और हाल ही में राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ किया गया।

नाम को लेकर कुछ रोचक चर्चा भी कर लें। शेक्सपीयर की एक मशहूर लाइन है-नाम में क्या रखा है? जूलियट ने रोमियो से कहा, यह जो तुम अपने नाम के साथ अपना कुलनाम मोंटेग लिखते हो, यह निरर्थक है। तुम रोमियो हो, जिससे मैं प्रेम करती हूँ। तुम्हारे कुल का नाम क्या है या तुम्हें मिस्टर मोंटेग के नाम से पुकारा जाता या नहीं, ये सब सतही बातें हैं। गुलाब को गुलाब कहा जाए या उसे किसी और नाम से पुकारा जाए, जब तक उसमें अपनी खुशबू है, नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता। जूलियट की इस बात से रोमियो इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी क्षण अपना सरनेम मोंटेग हटा दिया और कहा कि आज से मुझे ‘जूलियट्स लवर’ के नाम से ही जाना जाएगा। तो दूसरी जगह ‘नाम में क्या रखा है’ वाक्य के समर्थन में यह भी उदाहरण दिया जाता है कि यदि किसी बन्दे का नाम दारा सिंह है तो जरूरी नहीं कि वह पहलवान दारा सिंह जैसा ही बलशाली होगा।

सुभाष चंद्र नाम रखने से कोई सुभाष चंद्र बोस तो नहीं हो सकता।अत: व्यक्ति के कार्य महत्वपूर्ण हैं। तो दोनों तथ्यों पर तीसरा तथ्य पेश किया जाता है कि साधारण बन्दे की पहचान तो उसका नाम ही है। आधार कार्ड पर छपी फोटो से किसी के विषय में अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अत: नाम और काम दोनों अपने अपने स्थान पर सही हैं। तो मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि व्यक्ति का नाम रखने के पीछे क्या मनोविज्ञान होता है, यह समझने की बात होती है। नामकरण के जरिए व्यक्ति की एक पहचान होती है। नाम का प्रभाव उस व्यक्ति के जीवन में दिखे, इसलिए भी नामकरण किया जाता है। कई बार घटनाओं के आधार पर भी लोग बच्चों का नामकरण कर देते हैं। नाम में यदि कुछ रखा न होता तो हर धर्म-विचार के लोगों में नामकरण संस्कार का कोई महत्व ही नहीं होता।

हालांकि मध्यप्रदेश में नामों के बदलने पर एक वर्ग नाखुश जरूर होगा, क्योंकि नामों के साथ लगाव की बात मानी जा सकती है। पर जो नाम हमारे इतिहास में हमें कलंकित करने के बतौर दर्ज हों, उनकी विदाई को सही करार दिया जा सकता है। हालांकि इसमें इस बात का ख्याल भी रखा जा सकता है कि वर्ग-संप्रदाय विशेष के अच्छे नामों को भी पुराने नामों की जगह रखे जाएं ताकि ऐसा संदेश न जाए कि सब कुछ हिंदुत्व की चासनी में लपेटा जा रहा है। समरसता और भाईचारे का भाव भी खुश रहे और नामों का बदलना सभी के चेहरों पर खुशी बिखेरता रहे। यही कहा जा सकता है कि नाम में बहुत कुछ रखा है साहब…।