प्रियंका राहुल गाँधी की जादू की झप्पी का असर कितना

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प्रियंका राहुल गाँधी की जादू की झप्पी का असर कितना

प्रियंका गाँधी ने नर्मदा नदी की पूजा अर्चना करके मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव अभियान का शंख बजा दिया | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नर्मदा को गंगा से अधिक प्राचीन और पूज्य कहा जाता है | मेरी एक पुस्तक का नाम है ‘ नर्मदा आए कहाँ से जाए कहाँ | ” मध्य प्रदेश , राजस्थान , महाराष्ट्र और गुजरात के बीच नर्मदा के जल बंटवारे के लिए वर्षों तक रही राजनीतिक और क़ानूनी लड़ाई पर वर्षों तक समाचार लेख आदि लिखे हैं | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद यह विवाद सुलझा  दिया | लेकिन नर्मदा की परिक्रमा , धार्मिक आस्था पर मोदी , शिवराज सिंह , दिग्विजय सिंह और कमलनाथ लगभग दस वर्षों से प्रतियोगिता करते दिख रहे हैं | राजीव गाँधी और अमिताभ बच्चन ने ‘ छोरा गंगा किनारे वाला के नारे से 1984 – 85 के चुनाव जीते थे | लेकिन राहुल गाँधी , प्रियंका गाँधी और उनकी टीम पिछले चुनावों में गंगा किनारे वाले उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड और  बिहार में कांग्रेस  पार्टी की भारी पराजय भुगत चुके हैं | यही नहीं कुछ महीने पहले गुजरात में नर्मदा के किनारे पार्टी को कोई सहारा नहीं मिला | इसलिए गंगा और नर्मदा के विशाल क्षेत्र में सफलता के लिए प्रियंका गाँधी और उनके सहयोगियों ने नदी पूजन आरती , जय बजरंग बली और उनकी गदा के पोस्टर बैनर के साथ चुनावी रथ तैयार किया है | सवाल यह है कि इस तरह के नारों , अभियानों , नरम हिंदुत्व की धारा और राहुल गाँधी की भारत और अमेरिका के ट्रक ड्राइवर के साथ जादुई झप्पी के शगूफों से अगले चुनाव जीते जा सकेंगे ?

 ट्रक ड्राइवर के साथ राहुल गाँधी की यात्रा पर मुझे याद आया – संजय गाँधी जब राजनीति में आए तो उनकी दोस्ती अर्जुन दास से हुई थी और उनका  कार ट्रक आदि की मरम्मत का वर्कशॉप होता था | संजय कई बार वहां बैठे मिलते थे | इतनी जमीनी दोस्ती वाली राजनीति के बावजूद कांग्रेस 1977 में पराजित हो गई थी | राजीव गाँधी तो वर्षों तक सामान्य पायलट की नौकरी करते रहे और सामान्य ड्राइवर्स के साथ अच्छे व्यवहार और बातचीत के लिए जाने जाते थे | लेकिन यह राजनीति में किसी विजय के लिए काम नहीं आया | दूसरी तरफ दिल्ली में प्रियंका गाँधी पिछले वर्षों के दौरान शाम को लोदी गार्डन में दो सुरक्षाकर्मी के साथ टहलती थीं , लेकिन सामने से आने जाने वाले किसी सामान्य कार्यकर्त्ता या व्यक्ति की नमस्ते का उत्तर तक नहीं देती थीं | कुछ वर्ष पहले राहुल गाँधी अपने मित्र परिजन के साथ देर रात दिल्ली यू पी सीमा की सड़कों पर मोटर साइकल से घूमा करते थे | तब कोई कैमरा टीम नहीं होती थी | अब राजनीति के लिए ट्रक , बस , मोटर साइकल से यात्रा के प्रचार से क्या जनता का विश्वास अर्जित हो सकता है या कांग्रेस संगठन को विभिन्न राज्यों में सही अर्थों में सक्रिय और सशक्त करके हो सकता है ? लोग यह कैसे भूल सकते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दिग्विजय राज में सड़कों की हालत कितनी ख़राब थी , गांवों – किसानों की दशा कितनी बदतर थी और कुछ कमियों के बावजूद नरेंद्र मोदी और शिवराज की सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से लाखों परिवार लाभान्वित हुए हैं | सड़कों और गांवों की स्थितियां बदल गई हैं | हाँ कांग्रेस की तरह भाजपा में भी गुटबाजी और निचले स्तर पर भ्र्ष्टाचार के कारण सतारूढ़ पार्टी के लिए आगामी चुनाव अधिक चुनौतीपूर्ण हैं |

हिमाचल प्रदेश , मध्य प्रदेश , राजस्थान और छतीसगढ़ जैसे राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा चुनावी मुकाबला रहता है | इसलिए पिछले दशकों में विधान सभा और लोक सभा के चुनावों में अलग अलग दलों को विजय मिली है | फिर इस बार सत्ता के लिए  लोक सभा चुनाव के लिए कांग्रेस  भी अन्य दलों के साथ विभिन्न राज्यों में गठबंधन के लिए लालायित है | लेकिन आम आदमी पार्टी हो या तृणमूल कांग्रेस या राष्ट्रवादी कांग्रेस या जनता दल ( यू ) , समाजवादी पार्टी अपने प्रभाव वाले इलाके कांग्रेस को समर्पित करने को कैसे तैयार होंगी ? ममता बनर्जी ने तो अभी से कांग्रेस और कम्युनिस्टों द्वारा भाजपा की सहायता करने तक के गंभीर आरोप लगा दिए हैं | ऐसी हालत में बंगाल , आंध्र , तेलंगाना , पंजाब के बिना कथित विपक्षी एकता का बिगुल कितना लाभ दिला सकेगा ? कर्नाटक में जनता दल ( एस ) या आंध्र में तेलगु देशम और वाय एस आर कांग्रेस , पंजाब में अकाली दल धीरे धीरे भाजपा के साथ गठबंधन की कोशिश कर रही है | सबसे मजेदार और दयनीय हालत कम्युनिस्ट पार्टियों की है | वे भाजपा के विरोध में हैं , लेकिन केरल या बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के साथ समझौता नहीं कर सकती है | कांग्रेस कर्नाटक की तरह  मोदी विरोध के लिए भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाना चाहती है , लेकिन तमिलनाडु के द्रमुक मंत्रियों या बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं के गंभीरतम भ्रष्टाचार के प्रमाणों , अदालती कार्रवाई रहते हुए जनता को क्या जवाब दे सकेगी ? इंकम टैक्स विभाग , सी बी आई , इंफोरस्मेंट डिपार्टमेंट ( ई डी ) जैसी जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर जब करोड़ों रूपये या अरबों की संपत्ति की अवैध कमाई का भंडाफोड़ होने पर किसी भी नेता के लिए सामान्य लोगो से सहानुभूति कैसे मिल सकती है ? इन विभागों के अधिकांश अधिकारी राज्यों से प्रतिनियुक्ति पर आते हैं | इसलिए उनके केंद्र की सत्तारुढ़ पार्टी से जुड़े होने के आरोप भी गलत साबित होते हैं |

नर्मदा और गंगा अंतिम पड़ाव पर सागर में मिल जाती हैं | लेकिन विभिन्न दलों के भ्रष्टाचार के नाले सारी नदियों और सागर तक को दूषित किए हुए हैं | यही नहीं चुनावी वायदों को लेकर प्रियंका राहुल गाँधी या तो स्वयं भ्रमित हैं अथवा जानते बुझते जनता को धोखा दे रहे हैं | केजरीवाल की तरह वे सबको   बिजली मुफ्त , महिलाओं के लिए बस यात्रा मुफ्त ,  500 रुपयों का गैस सिलेंडर आदि वायदे अथवा घोषणाएं कर रहे हैं | जबकि असलियत यह है कि यह लाभ सबको नहीं केवल गरीबी रेखा से नीचे लोगों को ही मिल सकता है |  इसी तरह जब गैर भाजपा राज्यों में सत्तारूढ़ दल और नेता रोजगार देने , अंबानी , अडानी  , बिड़ला , टाटा से पूंजी निवेश से उद्योग धंधे व्यापार की सफलता के दावे करते हैं , तो भाजपा पर पूंजीपतियों का साथ देने के आरोप जनता के गले में कैसे उतार सकेंगे ?

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।