मोदी-शाह की नजरों और मोहन-विष्णु के मन में क्या है…!

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मोदी-शाह की नजरों और मोहन-विष्णु के मन में क्या है…!

भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री के चयन में सभी को चौंका दिया है। प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित नवनिर्वाचित विधायक दल की बैठक में 11 दिसंबर 2013 को तीसरी पंक्ति में बैठे तीसरी बार के विधायक डॉ. मोहन यादव के हाथ मध्यप्रदेश की कमान सौंपी गई थी। 13 दिसंबर को डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी। 3 दिसंबर 2023 को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के दस दिन बाद मध्यप्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिल गया था। अब सबकी निगाहें मोहन के मंत्रिमंडल के गठन की तरफ हैं। जिज्ञासा यही है कि क्या यहां भी सब चौंकने के लिए तैयार रहें? और आसार भी यही नजर आ रहे हैं। 17 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा के विधानसभा सत्र शुरू होने से एक दिन पहले दिल्ली जाने के बाद लग रहा है कि जल्दी ही नया मंत्रिमंडल भी शपथ ले सकता है। प्रदेश को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के दस दिन बाद 13 दिसंबर को नया मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्री मिल गए थे, तो लगता है 23 दिसंबर तक नए‌ मंत्री भी शपथ ले ही लेंगे। बाकी महिमा मोदी की और शाह-नड्डा के समन्वय की। संघ के फैसले ज्यादा समय लेते नहीं हैं और मोदी-शाह न भ्रम पालते हैं और न ही भ्रम में किसी को रखते हैं। इसलिए लगता है कि 2020 में भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल के गठन में हुई महीनों की कवायद जैसा माहौल अब 2023 में पूरी तरह से खत्म हो गया है। वैसे भी अब सिंधिया गुट जैसा शब्द भी अस्तित्व में नहीं है और अब तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व फैसला लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। क्योंकि यदि कोई भी गुंजाइश बची होती, तो दो उपमुख्यमंत्री में से एक पद तो सिंधिया समर्थकों के हिस्से में आ ही गया होता। पर ऐसा नहीं हुआ और आगे मंत्रिमंडल के गठन में भी ऐसा-वैसा होने की गुंजाइश कम ही बची नजर आ रही है।
पहले नजर शिवराज के मंत्रिमंडल पर डाल लेते हैं। इसमें डॉ.नरोत्‍तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, राजेंद्र शुक्ल, तुलसीराम सिलावट, डॉ. (कुँ.) विजय शाह, जगदीश देवड़ा, बिसाहूलाल सिंह, यशोधरा राजे सिंधिया, गौरीशंकर बिसेन, भूपेन्‍द्र सिंह, कु.मीना सिंह मांडवे, कमल पटेल, गोविन्‍द सिंह राजपूत, बृजेन्‍द्र प्रताप सिंह, विश्‍वास सारंग, डॉ. प्रभुराम चौधरी, डॉ. महेन्‍द्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्‍न सिंह तोमर, प्रेम सिंह पटेल, ओम प्रकाश सकलेचा, उषा ठाकुर, डॉ. अरविन्‍द सिंह भदौरिया, डॉ. मोहन यादव, हरदीप सिंह डंग, राजवर्धन सिंह प्रेमसिंह दत्‍तीगांव, भारत सिंह कुशवाहा, इन्‍दर सिंह परमार, रामखेलावन पटेल, राम किशोर (नानो) कांवरे, बृजेन्‍द्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, ओपीएस भदौरिया और राहुल सिंह लोधी शामिल थे। तीन चेहरों गौरीशंकर बिसेन, राजेंद्र शुक्ल और राहुल सिंह लोधी को चुनाव के एन वक्त पहले मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। इनमें से केवल राजेंद्र शुक्ल ही चुनाव जीत पाए थे। और सोलहवीं विधानसभा में शिवराज सरकार के मंत्री डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री बने तो राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा को उपमुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल गया। इनके अलावा डॉ. नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल, डॉ. महेंद्र सिंह सिसौदिया, प्रेम सिंह पटेल, डॉ. अरविन्‍द सिंह भदौरिया, राजवर्धन सिंह प्रेमसिंह दत्‍तीगांव, भारत सिंह कुशवाहा, रामखेलावन पटेल, राम किशोर (नानो) कांवरे जैसे मंत्री भी चुनाव हार गए थे। वहीं यशोधरा राजे सिंधिया ने चुनाव ही नहीं लड़ा था। तो अब निगाहें बाकी बचे उन सभी मंत्रियों पर है, जो विधानसभा चुनाव जीतकर मंत्रिमंडल में जगह पाने को आतुर हैं। मोदी, शाह और नड्डा की पारखी नजरें इनमें से कितनों पर प्रेम बरसाती हैं, यह देखने वाली बात है। और मोहन, विष्णु और हितानंद का कोमल कोना किन चेहरों के साथ है, इसका असर भी इस मंत्रिमंडल गठन में नजर आने वाला है।
अभी तक की स्थितियों पर नजर डालें तो प्रदेश को ओबीसी वर्ग से सीएम, एक जनरल और एक एससी वर्ग से डिप्टी सीएम मिले हैं। वहीं स्पीकर भी सामान्य वर्ग से मिले हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि सर्वाधिक आदिवासी आबादी वाले मध्यप्रदेश में आदिवासी वर्ग को क्या नजरअंदाज किया जा रहा है या फिर आदिवासी वर्ग को लेकर मंत्रिमंडल में कुछ चौंकाने वाली स्थिति बनने वाली है। तो नजरें नरेंद्र सिंह तोमर के स्पीकर बनने के बाद बचे कद्दावर नेताओं प्रहलाद सिंह पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, राकेश सिंह, उदय प्रताप सिंह, रीति पाठक पर भी हैं। रीति पाठक महिला कोटे से जगह बनाती हैं तो विंध्य से ब्राह्मण चेहरों का समीकरण बिगड़ सकता है। एक ब्राह्मण चेहरा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गिरीश गौतम का भी है। तो भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों में भी मंत्री बनने के संभावित नामों की भरमार है। तो क्षेत्रीय, जातिगत और दिग्गजों के समीकरणों को साधने का निर्णायकों का कितना मन है? और सूची तय‌ करने वालों ने कितना चौंकाने का मन बनाकर रखा है। विधायक की शपथ लेने वाले सभी चेहरों की आंखों में मंत्री बनने का सपना तो है ही। क्यों न हो, जब पहली बार का विधायक राजस्थान में मुख्यमंत्री बन सकता है और तीसरी बार का विधायक मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बन सकता है, तो मध्यप्रदेश में पहली बार से नौवीं बार तक विधायक बने भाजपा नेता मंत्री बनने का सपना देखने का हक तो रखते ही हैं। मजबूरी यह है कि कुल विधानसभा सदस्य संख्या के 15 फीसदी सदस्य ही मंत्री बनाए जा सकते हैं। इसमें देखने वाली बात यह है कि मोदी-शाह की नजरों और मोहन-विष्णु के मन में क्या है…!