यह कैसा किसान आंदोलन…?

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What kind of farmer's movement is this...?

यह कैसा किसान आंदोलन…?

किसान संगठन भारतीय किसान संघ किसान सम्मान निधि को बढ़ाए जाने की मांग कर रहा है। लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य को लागू करने की बात कर रहा है। सभी प्रकार के कृषि जिन्सों पर जीएसटी समाप्त करने की बात कर रहा है। किसान सम्मान निधि में पर्याप्त बढ़ोत्तरी की बात कर रहा है। कृषि क्षेत्र में जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान की भरपाई और देशी गौ पालकों को प्रति माह 900 रुपए प्रति गाय प्रोत्साहन राशि देने की मांग कर रहा है। सरकार द्वारा किसानों को दिए जाने वाले सभी प्रकार के अनुदान सीधे किसानों के खाते में देने की मांग कर रहा है। कृषि बीमा पॉलिसी को सरल कर किसान हितैषी बनाने की मांग कर रहा है। देश में कृषि उत्पाद को देखते हुए आयात-निर्यात नीति को बनाने की मांग कर रहा है। और मांगों की लंबी फेहरिस्त है, जिसमें प्रदेश सरकार से विशेष मांग है कि खेती किसानी से संबंधित विषयों पर चर्चा हेतु विधानसभा का सात दिवसीय विशेष सत्र बुलाया जाए।
निश्चित तौर पर किसानों के हित की सभी मांगें जायज हैं। और सरकार किसानों के हित में सब कुछ करने का दावा भी करती है। हाल ही में किसानों को खाद की समस्या की बातें सामने आईं तो सरकार ने दावा किया कि खाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। विपक्षी दल सरकार को बदनाम करने का प्रोपेगेंडा रच रहे हैं। केंद्र की भाजपा सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथ्य सामने रखते हैं कि किसानों के हित में सरकार ने समर्थन मूल्य बढाकर राहत दी है। किसानों की सम्मान निधि की राशि उनके खाते में ही जाती है। फसल बीमा योजना किसान हितैषी हैं…वगैरह वगैरह। यहां तक कि किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में सरकार काम कर रही है। वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कृषि मंत्री कमल पटेल सरकार द्वारा किसानों के हित में उठाए गए कदमों पर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। फिर ऐसी क्या बात है कि भारतीय किसान संघ को सड़क पर उतरकर आंदोलन करने की जरूरत महसूस हो रही है।
यहां पर आश्चर्य की बात यह है कि भारतीय किसान संघ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित संगठन माना जाता है। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि भारतीय किसान संघ और भाजपा सरकारों के बीच बेहतर समन्वय की स्थिति है। पर जब किसानों को बुलाकर प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन की नौबत आती है, तब यह समझना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि काठ की हांडी में आखिर पक क्या रहा है? मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार भारतीय किसान संघ के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के विद्रोही तेवर को अभी तक भुला नहीं पाई है। ऐसे में चुनावी साल करीब है और भारतीय किसान संघ प्रदेश की राजधानी भोपाल में जंगी प्रदर्शन कर सरकार को आइना दिखाने की कोशिश कर रहा है। इसके क्या मायने निकाले जाने चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि भोले-भाले किसानों को पता ही नहीं चलता और उनके संख्या बल की दम पर भारतीय किसान संघ का नेतृत्व अपनी साख बढ़ाने और हित साधने का कोई अवसर नहीं छोड़ता।
सवाल यह भी है कि भारतीय किसान संघ के नेताओं के लिए भाजपा शासित सरकार के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री से मिलना कोई बड़ी चुनौती नहीं है। और मिलने की जरूरत होने पर संघ के नेता मिलने का कोई अवसर गंवाते हों, यह भी नहीं माना जा सकता। फिर सीएम हाउस में सीएम और कृषि मंत्री के साथ बैठकर क्या इन मांगों की चर्चा नहीं हो सकती। भोपाल में मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय में 22 नवंबर को या दिल्ली में रामलीला मैदान में 19 दिसंबर को किसानों को जुटाकर जंगी प्रदर्शन करने के मायने क्या हैं? क्या मांगें पूरी न होने पर फिर कोई विद्रोही नेता बगावत करने की तैयारी में है। और जिस तरह तीन कृषि बिलों के विरोध में किसान संगठनों के नेतृत्व में किसानों ने मांगें पूरी होने तक विरोध कर केंद्र की भाजपा सरकार की नाक में दम कर दिया, क्या भारतीय किसान संघ के नेता भी उसी राह पर हैं? जिसमें आरोप लग रहे हैं कि किसानों की दम पाकर खालिस्तान समर्थक संगठनों ने अपना उल्लू सीधा कर पंजाब में सरकार ही बना ली है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि अन्य किसान संगठनों की तरह भारतीय किसान संघ भी कहीं किसानों को गुमराह कर अपने हित साधने की कोशिश में तो नहीं है।
हमने जब भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय पदाधिकारी मोहिनी मोहन मिश्र से इसी संदर्भ में बात की, तो उनका जवाब था कि जब किसानों को जरूरत होगी, तब हम मैदान में आएंगें। तीन कृषि बिलों को लेकर भी उनका दावा है कि इनके वापस लेने पर दक्षिण के किसानों में आक्रोश है। छोटे सीमांत किसानों के लिए तीन कृषि बिल वरदान साबित होने वाले थे। यानि क्या यह माना जाए कि भारतीय किसान संघ आक्रामक रवैया अपनाकर किसानों के मन में यह विश्वास पैदा करना चाहता है कि संघ ही किसानों का वास्तविक हितैषी है और सरकार व किसान के बीच का सेतु है। किसानों की मांगें मनवाने तक संघ का संघर्ष और कोशिश जारी रहेगी। पर सुनिश्चित यह होना चाहिए कि कहीं किसान को मोहरा तो नहीं बनाया जा रहा है? और ऐसे किसान आंदोलन का औचित्य क्या है…? जिन भारतीय किसान संघ के नेताओं के लिए सरकार के दरवाजे हमेशा खुले हैं, वह जंगी प्रदर्शन कर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं? भारतीय किसान संघ के नेतृत्व को आखिर यह साबित करने की जरूरत क्यों पड़ रही है कि किसानों की जरूरत के लिए वह मैदान में उतरने से पीछे नहीं हटेगी..।