

आज करे सो काल कर
मुकेश नेमा
एक बड़े आदमी का मानना है कि हमे रोज दस घंटे काम करना चाहिए। बड़े लोगों की बड़ी बातें।जनता श्रद्धा से भर गई है उनके प्रति।आलस करने वाले ,काम न करने वाले ऐसे देखे जा रहे है जैसे वो चोर हों। मेरी राय उलट है इस बड़े आदमी से। मेरा मानना यह कि आलस की खिलाफत करने वाले ऐसे बंदर हैं जिन्हें इस अदरक का स्वाद ही नही पता।आलस का मौका मिलना तो भगवान का वरदान। सब थोडी न कर पाते हैं आलस ,ये किस्मत वालों का ,खाए पिए लोगों का शगल है। करना चाहिए आलस। आलस आपको हाथ पाँव सीधा करने का मौका देता है,भागदौड़ से वक्त चुराकर ,थोडा सा ,थोडे से कुछ ज्यादा सुस्ता लेंगे हम तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा ? और जो जुते हैं गधों की तरह चौबीसो घंटे काम में उन्होंने ही कौन सा तीर मार लिया ?
चलिए ये भी तो तय कर लें कि आलस है क्या ? आलस इतना भर तो है कि बंदा अपने काम खुद नही करता ,करता है तो तय वक्त मे नही करता। यदि आलस इतना भर है तो इससे नुक़सान क्या है ? ढेर सारे फायदे है आलस करने के। हम अपना काम खुद करने लगेंगे तो क्या होगा ? अव्वल आप दुनिया का हर काम खुद कर ही नही सकते। करेंगे तो बेदिली से करेंगे,बिगाड़ लेंगे। दूभर कर देंगे खुद की और अपनों की जिंदगी। घर मे काम करने वाले रखते क्यों है आप ? केवल इसलिए कि उनकी भी रोज़ी रोटी चलती रहे। उनके भी पेट लगे हुए है। आप सारे काम खुद करने पर उतारू हो जाएँगे तो क्या ये गरीबमार नहीं होगी ?
दूसरा मुद्दा ,अपने हिस्से का काम वक्त पर न करने का है। यक़ीन मानिए दुनिया का कोई काम इतना ज़रूरी नही कि उसे कल पर न टाला जा सके।और फिर हम हिंदुस्तानियों के पास वक्त का टोटा रहा कब है ? हमारी घड़ियों मे जो सबसे फालतू चीज है वो मिनट और सेकेंड का कांटा है। घड़ी देखकर काम करने वालों की इज्जत करने का रिवाज नही हमारे यहाँ,जो जितना लेट हो सके,लोगों से जितनी देर अपना इंतज़ार करवा सके वो उतना बडा वीआईपी। और लेट होने का यह मौका आपको आलस मुहैया करवाता है ,ऐसे में उसकी ऐसी बेक़द्री मत कीजिए जैसी आजकल की जा रही है।
आलसी लोगो की तारीफ नही कर सकते तो चुप रहिए। वे सच्चे हकदार तारीफों के। इन्हें कामचोर या निकम्मे कहना तो बहुत बड़ी ज़्यादती ही है दुनिया के सारे बडे आविष्कारों की वजह हमारी यही बिरादरी रही है, यही वे दूरंदेश लोग हैं जो कम से कम हाथ पाँव चला कर कम से कम समय में ज़्यादा काम निबटाना चाहते रहे हैं । पहिये की ईजाद को ही ले लीजिये,क्या अपने उस आलसी पुरखे का आभारी नहीं होना चाहिये जो पाँव पाँव चलते चलते बोर हो गया होगा और किसी पेड़ के नीचे लेट कर पहिये की खोज कर बैठा होगा। वाशिग मशीन ईजाद करने का इरादा फटाफट कपड़ों से निपट कर सुस्ताने का ही रहा होगा । सुई धागे से हवाई जहाज तक ,दुनिया मे अब तक की गई हर नई खोज का हासिल आराम करना ,सुस्ताना नही तो और क्या है ? हमारे आज के ऐश इन्हीं आरामतलब लोगों की कृपा से ही मुमकिन हो सके हैं।
आप सोच करके देखें । पूरी दुनिया हाय हाय क्यों कर रही है ,भरी जवानी में ख़ून पसीना इसीलिये तो एक किया जाता है ना कि बुढ़ापे में चैन से खर्राटे लिये जा सके।तो भाई साहब यदि आज ही पाँव फैलाने का मौक़ा मिल रहा है तो उसे क्यों गँवा दिया जाये।चादर तलाशिये और मुँह ढक कर सोइये ,पूरी नींद लेने वालों का तबियत ठीक रहती है। आलस आपको शांत और एकाग्र करता है,आप बेहतर तरीके से सोच पाते हैं और आपकी बेहतर सोच से इस दुनिया का बहुत भला हो सकता है। इसलिये किसी के कहे सुने मे आने की ज़रूरत है नही। सुस्ताते रहिए। ये बेहद जरूरी है ,खुद के लिये भी और इसलिए भी ताकि दुनिया और बेहतर हो सके।