

When CM Dr Yadav Met His Teacher : आदर्श शिक्षक, विनम्र छात्र और छलकते आंसू
निरुक्त भार्गव की खास रिपोर्ट
आज के दौर में अक्सर ये सुनने को मिलता है कि स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से शैक्षणिक वातावरण लुप्त होता जा रहा है. चारों तरफ डिग्री पा लेने की होड़ मची हुई है और इसीलिए छात्र और शिक्षक का सम्बन्ध भी सिकुड़ता जा रहा है. ऐसे में ये बात काल्पनिक लगती है कि राजनीति का एक दिग्गज अपने बुजुर्ग गुरू से मिलने पहुंच जाए और उनसे बिदा लेते वक़्त दोनों गले लगकर भावुक हो जाएं…
उज्जैन में बुधवार की शाम अद्भुत नज़ारा देखने को मिला जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद विष्णुपुरा इलाके में पहुंच गए, कॉलेज ज़माने के अपने शिक्षक डॉ शीलचंद्र जैन ‘कैलाशी’ से मिलने. गत 15 फरवरी को कैलाशी सर की धर्मपत्नी का बीमारी के बाद निधन हो गया. मोहन जी को इस दुखद सूचना से अवगत कराया गया तो 15 मार्च को उन्होंने एक सार्वजानिक कार्यक्रम के बीच से उन्हें फोन लगाकर शोक संवेदनाएं प्रकट कीं. मगर जाने क्या हुआ कि उन्हें लगा की सर से व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहिए. सो वो 19 मार्च को उज्जैन आते ही उनके निवास जा पहुंचे.
करीब 15 मिनट के स्टे के दौरान लगा ही नहीं कि मोहन जी अब मुख्यमंत्री हो चुके हैं. कैलाशी सर उज्जैन के शासकीय माधव विज्ञान महाविद्यालय में जूलॉजी के प्रोफेसर थे और 2003 में रिटायर हो गए. मोहन जी 1982 से 1984 तक इसी कॉलेज के छात्र रहे. वो छात्र संघ के निर्वाचित सह-सचिव और अध्यक्ष भी रहे. मगर ऐसा कहा जाता है कि कैलाशी सर के अनुशासन ने मोहन जी के जीवन में भी महत्वपूर्ण योगदान किया. वे सेना की नौकरी छोड़कर कॉलेज की प्रोफेसरी करने लग गए और अपने सेवा काल में अनगिनत स्टूडेंट्स को गढ़ा. एक आदर्श शिक्षक की छाप आज भी उनके जानने वालों के बीच लोकप्रिय है.
लेकिन, ये बात एक तरह से अजूबी-सी लगती है कि राज्य के मुखिया को 82 साल के किसी ज़माने के अपने एक टीचर से मिलने के पीछे क्या बेताबी थी? एक पूर्व छात्र को रिटायर शिक्षक या उस शिक्षक को अपने 40-50 वर्ष पुराने एक छात्र से आखिर क्या काम आन पड़ा? अतीत के पन्नों को खोलते-खोलते गुरू बोलने लगे, मुख्यमंत्री बनने के बाद मेरे घर पर पहली बार आये हो तो शिष्टाचार करना पड़ेगा. विदा लेने की बारी आई तो मोहन जी ने गुरु दक्षिणा भेंट की. कैलाशी सर और सीएम जब एक-दूसरे के गले लगकर भावुक पलों को साझा कर रहे थे, तो वहां मौजूद लोग बोल पड़े, “श्रीकृष्ण और गुरू सान्दिपनी का दौर लौट आया है.”