जब कलेक्टर को, ट्रेन का टिकिट कलेक्टर बड़ा लगा!

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प्रशासनिक क्षेत्र में आने के बाद मज़दूर संगठनों के कामकाज और उनके आंदोलनों से नज़दीकी वाकफ़ियत तब हुई जब मेरी पदस्थापना खाचरोद अनुविभाग में बतौर अनुविभागीय अधिकारी के तौर पर हुई जो उज्जैन ज़िले का भाग था । खाचरोद अनुविभाग के अन्तर्गत नागदा भी समाहित था , जो प्रसिद्ध औध्योगिक क्षेत्र है और जहाँ बिड़ला की मशहूर मिल स्थापित है जिसे हम ग्रेसिम के नाम से जानते हैं । खाचरोद पदस्थापना के पूर्व मुझे डराया गया कि दो वर्ष पूर्व ही मज़दूरों के द्वारा की गयी हड़ताल के दौरान अशांति फैल जाने पर क़ानून व्यवस्था की स्थिति इस कदर बिगड़ गयी थी कि गोली चलानी पड़ी थी जिसमें कुछ लोग हताहत भी हुए थे , इसलिए खाचरोद की पोस्टिंग बड़ी रिस्की है । ईश्वर की कृपा से मेरे अपने कार्यकाल में जुलूस और प्रदर्शन तो बहुत हुए पर कभी अप्रिय स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा और इसका एक ही कारण था कि कभी भी संवाद की कमी मेरी ओर से नहीं होती थी ।
नागदा जो खाचरोद अनुविभाग की तहसील हुआ करती थी , अपने पौराणिक संदर्भ के लिए भी प्रसिद्ध नगरी है । महाभारत काल में जनमेजय के द्वारा स्थापित इस पौराणिक नगर में ही नागों के दहन करने का यज्ञ सम्पादित हुआ था , जो राजा परीक्षित की मृत्यु के प्रतिशोध में प्रारम्भ हुआ और अस्ति ऋषि के हस्तक्षेप से समाप्त हुआ था । जब मैं खाचरौद में बतौर एस.डी.एम. पदस्थ था,तब उज्जैन में श्री आर.सी सिन्हा कलेक्टर हुआ करते थे । सिन्हा साहब गोरखपुर के रहने वाले थे और चूँकि उन दिनों उज्जैन से गोरखपुर के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं थी इसलिए वे जब भी कभी अपने घर गोरखपुर जाते , इसके लिए ट्रेन नागदा जंक्शन से ही पकड़ते थे । ऐसा ही एक वाक़या है , जब एक दिन सिन्हा साहब परिवार सहित अपने घर गोरखपुर जाने वाले थे । गोरखपुर जाने वाली ट्रेन सुबह की थी , मैं समय से उन्हें रेलवे स्टेशन से विदा करने आया नागदा आ गया । स्टेशन पर उनसे बातचीत में पता लगा कि श्री सिन्हा के परिवार में कुल चार सदस्य गोरखपुर की यात्रा करने वाले थे और उनके तीन टिकट ही कन्फर्म हो पाए थे । इस स्थिति से , आम तौर पर शांत रहने वाले , सिन्हा साहब बड़े चिंतित थे ।
मैंने अपने साथ में आए तहसीलदार साहब से गुज़ारिश की कि स्टेशन में उपलब्ध रेलवे के स्टाफ़ से इसका कोई हल निकाला जाए । हमने भाग दौड़ प्रारम्भ की तो पता लगा कि अब तो ट्रेन में ही कुछ हो सकता है । देखते ही देखते कुछ समय में गोरखपुर जाने वाली ट्रेन भी प्लेटफ़ार्म पर आकर खड़ी हो गयी । हमने पूर्वनिर्धारित कोच में सिन्हा साहब का सामान रखवा उस कोच में साथ में जाने वाले टी. सी. से बात की, उसे अपना और कलेक्टर साहब का परिचय भी दिया । टी सी महोदय ने आश्वस्त किया कि अभी तो कोई बर्थ ख़ाली नहीं है , लेकिन आगे यात्रा के दौरान ट्रेन मैं वो अवश्य देख लेगा । मैंने देखा कि सिन्हा साहब अभी भी प्लेटफ़ार्म पर ही खड़े हैं । मैं उनके पास गया और बोला कि सर आप चिंता ना करें ट्रेन में बैठें, टी.सी ने कहा है कि वह आगे इंतज़ाम करेगा । सिन्हा साहब बोले “यार जो हो यहीं करा दो आगे का क्या भरोसा? “ मैंने कहा नहीं सर मैंने उसे समझा दिया है और आपका परिचय भी दे दिया है कि आप कलेक्टर हैं । उन्होंने कहा आनंद मैं कलेक्टर यही प्लेटफार्म तक ही हूँ , ट्रेन मैं चढ़ने के बाद तो असली कलेक्टर , टिकट कलेक्टर ही है । मैं फिर वापस टी सी के पास गया और किसी तरह इधर उधर से चार्ट दिखवा कर सिन्हा साहब को चारों टिकट कन्फर्म करा कर विदा किया ।