जब सवाल पूछा जाएगा कि 2024 में कितने लोगों को मरणोपरांत भारत रत्न मिला था…!

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जब सवाल पूछा जाएगा कि 2024 में कितने लोगों को मरणोपरांत भारत रत्न मिला था…!

बहुत वेदना हो रही है मुझे इस भारत रत्न वाले विषय पर लिखते हुए… ठीक उसी तरह जिस तरह जनसंघ-भाजपा के स्तंभ रहे लालकृष्ण आडवाणी के चेहरे पर वेदना दिख रही थी जब उनके आवास पर पहुंचकर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू उन्हें भारत रत्न से नवाज रही थीं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके बगल में बैठकर उनके चेहरे पर भारत रत्न मिलने पर होने वाली खुशी देखने को लालायित नजर आ रहे थे। मुर्मू और मोदी के साथ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और पूर्व उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू की मौजूदगी आडवाणी को यह अहसास कराने की असफल कोशिश थी कि देश की सर्वोच्च सत्ता आडवाणी के आसपास है। पर आडवाणी का चेहरा यह गवाही दे रहा था कि जगत मिथ्या है। यहां पर जो दिख रहा है वह सब भ्रम है। यह वही आडवाणी हैं, जिनकी मौजूदगी कभी मुर्दों में भी जान फूंक देती थी। और अब दस साल से सत्तासीन उनके दल की छांव में जिंदा आडवाणी में समा गया यह मुर्दापन शायद उनके प्रति अपनत्व का भाव रखने वाले हर किसी को काटने को दौड़ता है। 96 वर्षीय लाल कृष्ण आडवाणी पर न तो उम्र हावी हो सकती है और न ही स्वास्थ्यगत समस्याएं उनकी जिंदादिली छीनने का दम रखती हैं। पर जब वक्त ने ही साथ न दिया हो और सितमों का सिलसिला बदस्तूर जारी रखा हो, तो उम्र, हौंसला और जिंदादिली भी आखिर कितना मुकाबला करे…। आडवाणी के मन के सागर को शायद निराशा, हताशा, अपमान, मजबूरी और वितृष्णा जैसी लहरों ने कुछ इस कदर आच्छादित किया कि लाल कृष्ण आडवाणी जिंदा रहते हुए भी जिंदा नहीं रह पाए। देश का सर्वोच्च सम्मान उन्हें देने उनके आवास पर पहुंची राष्ट्रपति को देखकर भी चेहरे पर खुशी की एक लहर भी दस्तक नहीं दे पाई। कितना भी अस्वस्थ व्यक्ति हो, पर ऐसे क्षण पर गर्व और सम्मान की खुशी उसके चेहरे पर आने से विधाता भी नहीं रोकता। पर जब कोई अपनों से ही हार गया हो और कतरा कतरा दुखों की भारी पोटलियों का वजन जमाने से ज्यादा भारी हो गया हो तब विधाता भी उसे खुश होने को मजबूर नहीं करता। कभी कभी आडवाणी यह जरूर सोचते होंगे कि जिंदा रहते हुए बिस्तर को अपना ठिकाना बनाकर अपनी दुनिया में रहे उनके सखा अटल की हालत क्या 96 साल की उम्र में भी बिस्तर पर न पहुंच पाए उनके हालातों से बेहतर थी? शायद मन भी उनसे क्रूर मजाक करते हुए यह अट्ठहास करता होगा कि हां आडवाणी तुम्हारे सखा अटल की स्थिति ज्यादा बेहतर थी। अब यह भी तो वक्त का घृणित मखौल ही था कि राम आंदोलन का अगुआ भगवान राम की बाल स्वरूप में प्राण प्रतिष्ठा के अवसर का साक्षी नहीं बन सका। साक्षी बनना तो दूर बल्कि अयोध्या में कदम भी नहीं रख पाया। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं यह कहने का नैतिक साहस रखता हूं कि अगर आडवाणी जैसे नेता के साथ सुनियोजित तरीके से ऐसा खेल खेला जा रहा है तो वक्त खेल खेलने वाले खिलाड़ियों को भी समय आने पर रिटर्न गिफ्ट देकर यह अहसास जरूर कराएगा कि वक्त से बड़ा खिलाड़ी कोई और नहीं है।

खैर खुशी के अवसर पर छाती पीटने का कोई मतलब नहीं है। खुशी की बात यह है कि आडवाणी को जिंदा रहते देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। और 96 साल की उम्र में सम्मान लेने नहीं जा पाए आडवाणी को इस सम्मान से नवाजने राष्ट्रपति उनके आवास पहुंचीं और प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और पूर्व उपराष्ट्रपति इसके साक्षी बने। और इस साल उनके अलावा बाकी 4 विभूतियों को मरणोपरांत यह सम्मान दिया गया है। तब खुशी मनाने की बड़ी वजह यही है कि भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी को जिंदा रहते भारत रत्न से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति भवन में हुए कार्यक्रम में लालकृष्ण आडवाणी खराब स्वास्थ्य के चलते शरीक नहीं हो पाए थे। तो उनके दिल्ली वाले आवास में जाकर राष्ट्रपति ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा। जानकारी के लिए बता दें कि साल के शुरुआत में ही भारत रत्न के लिए 5 विभूतियों को चुना गया था। इसमें पूर्व पीएम नरसिम्हा राव, पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह, एस स्वामीनाथन अय्यर, बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर और पूर्व डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी का नाम शामिल था। आडवाणी को छोड़ दें तो बाकी 4 विभूतियों को मरणोपरांत यह सम्मान दिया गया है। 30 मार्च 2024 को उनके परिवार की तरफ से यह सम्मान राष्ट्रपति से राष्ट्रपति भवन में ग्रहण किया गया। आडवाणी के खराब स्वास्थ्य को देखते हुए पहले ही तय था कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें 31 मार्च 2024 को उनके घर जाकर इस सम्मान से सम्मानित करेंगी। अब आडवाणी को सम्मानित करने वाला वीडियो भी सोशल मीडिया पर आ गया है। वहां लोग इस सम्मान के दौरान काफी प्रसन्न दिखे। आडवाणी राम मंदिर आंदोलन के अगुआ थे। एक समय के कद्दावर शख्सियत और अटल सरकार में डिप्टी पीएम के पद पर रहे बीजेपी के वरिष्ठ नेता इस समय उम्रदराज और खराब स्वास्थ्य के चलते दिल्ली स्थित घर में ही रहते हैं। वैसे जब स्वास्थ्य ठीक था, तब भी वह सालों से अपने आवास पर रहने के आदी हो गए थे। भारतीय जनता पार्टी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। जनवरी 2008 में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने लोकसभा चुनावों को आडवाणी के नेतृत्व में लड़ने तथा जीत होने पर उन्हें प्रधानमन्त्री बनाने की घोषणा की थी। भारतीय जनता पार्टी के जिन नामों को पूरी पार्टी को खड़ा करने और उसे राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय जाता है उसमें सबसे आगे की पंक्ति का नाम है लालकृष्ण आडवाणी। लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी। पिछले कुछ समय से वह अपनी मौलिकता खोते हुए नजर आ रहे हैं। जिस आक्रामकता के लिए वो जाने जाते थे, उस छवि के ठीक विपरीत आज वो समझौतावादी नजर आते हैं। हिन्दुओं में नई चेतना का सूत्रपात करने वाले आडवाणी में अब व्यक्ति नब्बे के दशक का आडवाणी ढूंढ रहे हैं।

खैर एक मुखर व्यक्तित्व अब असीम मौन को‌ अपनी पहचान बना चुका है। और फिर मुद्दे की बात यही कि सालों बाद सामान्य ज्ञान में यह सवाल जरूर पूछा जाएगा कि 2024 में कितनी विभूतियों को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था… ? कौन बनेगा करोड़पति जैसे प्लेटफार्म इस सवाल को कुछ जल्दी ही अपने सवालों की सूची में शामिल कर सकते हैं। और उत्तर की व्याख्या भी अपने-अपने तरीके से कर सकते हैं।