
निजी स्कूलों की दादागिरी पर कब लगाएगा प्रशासन अंकुश, रतलाम के मामले की विधानसभा तक गूंज!
रमेश सोनी की खास रिपोर्ट
Ratlam : एक मासूम अपनी जिंदगी और मौत से जूझ रहा हैं। उसके साथ-साथ परिजनों और रिश्तेदारों को मासूम की असहनीय पीड़ा बर्दाश्त नहीं हो रही हैं। एक-एक पल परिजन और रिश्तेदार बच्चे के शीध्र स्वास्थ्य लाभ की कामना भगवान से कर रहें हैं तो दूसरी और स्कूल प्रबंधन मामले की लीपापोती में लगा है। बुराई के ठीकरे से बचने के लिए 31 नवम्बर को सबसे पहला पैतरा प्राचार्य को गेटआऊट करने का आदेश और आदेश में भी शब्दों का मायाजाल,जिससे लाठी भी ना टूटें और सांप भी मर जाएं, निलंबन आदेश को यदि ध्यान से पढ़ा जाए तो उसमें मेंशन की गई सारी बातें बनावटी दिखाई दे रही हैं।
*क्या है पूरा मामला*
बता दें कि 8वीं में अध्ययनरत एक के भविष्य को संवारने के लिए उसके माता-पिता ने एक अच्छे स्कूल में दाखिला करवाया था। उन्हें क्या पता था कि बाद में एक छोटी सी गलती के लिए स्कूल प्रबंधन बच्चे की जान की आफत बन जाएगा। गलतियां किससे नहीं होती हैं, गलतियां बच्चे तो ठीक है, बुजुर्ग तक भी कर बैठते हैं। लेकिन गलती करने वाले को गलती की सजा देने की बजाय उसे हर हाल में माफ किया जा सकता हैं और जब बच्चा माफी मांग लें तो उसे किसी भी तरह समझाइश देकर माफ किया जा सकता था लेकिन स्कूल प्रबंधन और प्राचार्य इस मामले को गलत तरीके से प्रस्तुत किया और आज हालात यह है कि बच्चे की जान आफत में है!
बच्चें पर स्कूल प्रबंधन का आरोप था कि उसने रिल बनाकर वाट्सअप ग्रुप्स में शेयर कर दिया था। उसकी सजा ऐसी मिली की मौत के मुहाने पर जाकर ठहरी??? और बच्चा अब 3-4 महीने तक लाचारी की जिंदगी जिने को मजबूर हो गया।
निजी स्कूल आज की तारीख में शिक्षा के मंदिर हैं या रुपए कमाने की मशीन, जीवन भर की काली कमाई को सफेद करने के फेर में मनमानी करना बच्चे और उसके परिजनों के साथ नाइंसाफी है। यह मामला विधानसभा तक पंहुचा और मामला ठंडा नहीं पड़ा, उससे पहले एक और निजी स्कूल की कहानी जनता के समक्ष पंहुच गई आखिर क्या चाहते हैं स्कूल माफिया??
जिला प्रशासन ऐसे स्कूल प्रबंधन पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं करेगा तो आने वाले समय में एक के बाद एक दूसरे स्कूलों से भी इस तरह की घटनाओं की संभावना से नकारा नहीं जा सकता!
रिल बनाने के बाद बच्चे ने प्राचार्य से गिड़गिड़ाते हुए बारम्बार गुस्ताखी माफ करने के लिए अपने कान पकड़कर-पकड़कर भूल को स्वीकार किया लेकिन जिद्दी प्राचार्य के कलेजे में जरा भी ठंडक नहीं हुई। स्कूल में लगे CCTV कैमरे के फुटेज में यह बात स्पष्ट दिखाई दे रही हैं कि माफ करने के लिए गिड़गिड़ाते हुए बच्चा डिप्रेशन में आ गया और उसके डिप्रेशन में डबल झटका जब लगा जब प्रबंधन ने बच्चे के अभिभावक को स्कूल में आने का फरमान जारी कर दिया, हां जब बच्चे के परिजन स्कूल पंहुच गए तब इस प्रबंधन और प्राचार्य ने उन्हें बच्चे से मिलने नहीं दिया? हताश होकर बच्चे ने प्राचार्य के ऑफिस से दौड़ लगाई और तीसरी मंजिल की छत तक पंहुच गया तब तक उसे कोई भी पकड़ नहीं सका आखिर क्यों????
आज बच्चा और बच्चे के पेरेंट्स जिन स्थितियों से गुजर रहे हैं उसकी कल्पना की जा सकती है। बच्चे के पेरेंट्स गुजरात में बच्चे के उपचार में परेशान हो रहें हैं और रात-दिन भगवान से उसके स्वस्थ्य होकर घर लोटने की प्रार्थना कर रहें हैं। इधर स्कूल प्राचार्य को शर्तों पर हटाया गया हैं और कहा जा सकता है कि कुछ दिनों बाद मामला ठंडे बस्ते में जाते ही प्राचार्य अपनी सीट पर बैठकर सीट की शोभा बढ़ाएंगी। अंत में बस यही कहना चाहता हूं कि रतलाम में एक सप्ताह के भीतर शिक्षा के मंदिर से जुड़े 2 मामले सामने आए, ऐसे में प्रशासन कोई ठोस कार्रवाई करेगा या यह दोनों मामले भी ठंडे बस्ते में दफन कर दिए जाएंगे?????





