Where Did Earth’s Gold Come From : कैसे और कहां से आया धरती पर सोना, अभी भी 53,000 टन सोना दबा पड़ा!
New Delhi : सोना धरती पर कहां से आया, इसे लेकर कई तरह की धारणाएं हैं। सच्चाई यह है कि सोने की खान में मिलने वाला सोना धरती में नहीं जन्मा, बल्कि ज्वालामुखी फटने के कारण पृथ्वी के अंदर से ऊपर आया था। लेकिन, यह सोना सूर्य के पैदा होने से पहले ही न्यूट्रॉन तारों के टकराव से बना था। इसके अलावा इसके बनने की कोई और प्रक्रिया नहीं है। पृथ्वी पर जितनी भी सोने की खाने हैं और वहां जो सोना मिला या मिलने वाला है, वह पृथ्वी पर नहीं बना। तो क्या यह सोना क्षुद्रग्रहों से आया था।
कई अध्ययन दावा करते हैं कि पृथ्वी पर बहुत सारा पानी क्षुद्रग्रहों के जरिए ही आया। इसका जवाब है नहीं। क्योंकि, वैज्ञानिकों को कभी किसी भी क्षुद्रग्रह में इतना सोना नहीं मिला कि माना जाए कि वहां से ही सोना यहां पहुंचा था। वैज्ञानिक यह तो जानने में कामयाब हो चुके हैं कि सोना पृथ्वी के मैंटल से पर्पटी के ऊपरी हिस्से तक आया, लेकिन कैसे इसका खुलासा अब हुआ! सोने की खान में मिलने वाला सोना ज्वालामुखी फटने से पृथ्वी के अंदर से ऊपर की ओर आया था।
यह सोना सूर्य के पैदा होने से पहले ही न्यूट्रॉन तारों के टकराव से बना। इसके अलावा इसके बनने की कोई और प्रक्रिया नहीं है। सोना खदानों से आता है। यह धरती की सतह से कई मीटर नीचे पाया जाता है। सोना निकालने के लिए चट्टानों को ब्लास्ट करना और ड्रिलिंग करना होता है। अभी तक हजारों टन सोना निकाला जा चुका है। लेकिन, अभी भी 53,000 टन सोना धरती के नीचे दबा पड़ा है। दुनिया में सबसे ज़्यादा सोना चीन में निकलता है।
एक उलझी कहानी सुलझी
अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने सोने और सल्फर यानी गंधक के बीच की जटिल और उलझी कहानी का पता लगाया जिससे वे साफ तौर पर यह समझ सके हैं कि सोना मेंटल से पृथ्वी की ऊपरी सतह पर कैसे आया? वे यह भी जानते हैं ब्रह्माण्ड में सोना अंतरिक्ष में दो न्यूट्रॉन तारों के टकराव के हालात की जटिल प्रक्रियाओं में ही बन पाता है।
पृथ्वी के मेंटल के बाद की पहेली
पृथ्वी पर मौजूद सारा सोना करोड़ों अरबों साल पहले ही आ गया था और वह तमाम प्रक्रियाओं से गुजर कर पृथ्वी के अंदर मेंटल में पहुंच गया था। लेकिन यहां से वह पृथ्वी की सतह तक कैसे पहुंचा यह एक बड़ा रहस्य ही था। वैज्ञानिक पहले ही इसकी पड़ताल कर रहे थे, लेकिन वे किसी निर्णायक नतीज पर नहीं पहुंच पा रहे थे।
सटीक प्रक्रिया की तलाश
प्रशांत रिंग ऑफ फायर में जमे सोने के अयस्क पृथ्वी की गहराई में मेंटल से निकला और मैग्मा से सतह के ऊपर की ओर आया था। वैज्ञानिक इसी की सटीक प्रक्रिया जानना चाह रहे थे और नए अध्ययन में उन्हें इसी सफलता मिली थी। यह अध्ययन प्रोसिडिग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित हुआ है।
खास तरह का मॉडल
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने न्यूमेरिकल मॉडलिंग का उपयोग कर उन हालातों का पता लगाया जिनमें सोने से भरपूर मैग्मा सतह तक ऊपर आया। इस मॉडल से पता चला कि ‘गोल्ड ट्राईसल्फर कॉम्पलेक्स’ की भूमिका ने उस सिद्धांत को सही साबित किया जिसका पहले अनुमान लगाया था। लेकिन, पहले इस सिद्धांत के सही होने काफी विवाद हो गया था।
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ऊपर आने न आने की चाह
आमतौर पर सोना स्वतंत्र रूप में रहकर मेंटल में ही रहना पसंद करता है। लेकिन, जब सल्फर से इसकी अंतरक्रिया होती है तो तब यह उससे रिएक्शन कर ‘गोल्ड ट्राइसल्फर कॉम्पलेक्स’ में बदल जाता है। इस स्वरूप में आने के बाद वह अस्थिर होता है और सटीक हालात मिलने पर मैग्मा के साथ ऊपर आने लगता है।
सतह पर पहुंचने के हालात
यह हर जगह से ऊपर नहीं आ सकता इसके लिए सबसे अच्छी जगह वह इलाका होता है जहां एक टेक्टोनिक प्लेट दूसरे के अंदर घुसने की कोशिश कर रही होती है। इसे सबडक्शन जोन कहते हैं। इस ‘गोल्ड ट्राइसल्फर कॉम्पलेक्स’ को सक्रिय ज्वालामुखी के 50 से 80 किलोमीटर के नीचे दबाव और तापमान के सटीक हालात चाहिए होते हैं। ऐसे हालात में तापमान 875 डिग्री सेल्सियस का होना जरूरी है। यही तापमान आमतौर पर मैग्मा का भी होता है। इससे सोना मैंटल से मैग्मा के साथ ऊपर की ओर सतह तक आता है।
सोना तेजी से ट्राइसल्फर से जुड़ जाता है और चटिल पदार्थ बना लेता है जिससे यह मैग्मा में आसानी सी घूम सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह पहली बार है जब इस पूरी प्रकिया में ‘गोल्ड ट्राइसल्फर कॉम्पलेक्स’ की भूमिका बताई जा रही है, जिसके बारे में वे भी पहले नहीं जानते थे। इससे यह भी साफ होता है कि सबडक्शन जोन के वातावरण में भी कुछ खास तरह के खनिजों में पास ही सोना अधिक क्यों मिलता है।