Where to View Fall Foliage in Connecticut : रंग बातें करे ,बातों से जीवन दर्शन समझाए

  शरद ऋतु के अनूठे रंग देखने चलिए मेरे साथ रंग यात्रा पर

         पेड़ों के लिए यह संघर्ष का  समय होता है. इसका सामना करने के लिए ही पेड़ पत्तियों को गिरा देते हैं

अमेरिका से स्वाति तिवारी की खास रिपोर्ट

इस बार अपनी यात्रा का वृतांत किसी स्थान विशेष पर ना लिखते हुए यह यात्रा प्रकृति के साथ चली है ,पाँच साल बाद इस बार फिर अमेरिका आने का अनायास ही अवसर बन गया । बस बेटे ने एक सहज सा फोन किया आजाओ इन दिनों यहाँ मेरे साथ रहने ,ओर फिर आपका पोता भी तो बड़ा  हो रहा है ,उसके बचपन की मेमोरी मे आप भी ओर आपकी अनुभवी स्मृतियों में हमारे अलावा इनका  बचपन भी तो होना चाहिए ना?

बात उसकी थी तो पते की, क्योंकि मेरे पोते की थी , हम हिन्दुस्तानी मूल से ज्यादा ब्याज को प्यार करते है ,यह  कहावत याद आ गई तो आनन फानन में हाँ कर दी ,ओर एक हफ्ते में मैं बिना कोई तैयारी के अकेले ही अमेरिका के लिए खुद को तैयार कर बैठी ओर बैठ गई फ्लाइट में । यात्रा की शुरुवात बस यही रही , दिल्ली से नेवार्क के सफर का अनुभव भी इस बार बहुत कुछ सुनाने लायक है, लेकिन वह फिर कभी ,क्योंकि दो महीने की इस यात्रा का सबसे सुंदर रंग अभी मेरे दिलो दिमाग में इस  कदर चित्रायमान है कि, अभी नहीं सुनाया तो फिर या तो रंग की तरह शब्द फीके हो जाएंगे ,या फिर आनेवाले पतझड़ की तरह यादों के कोई पत्ते झड़  ना जाए । रंग तो  बहुतेरे देखे हैं लेकिन पूरे के पूरे जंगल रंगीन कहाँ देखे थे ,कभी पीपल पर आए पल्लवों की गुलाबी कोमल मासूमियत तो कभी झरते गुलमोहर के फूलों के अलावा एक एक दो दो कर पीले होते जाम जामुन के पत्तों की उदासी ही देखी थी  । ओर उस पीले पत्तों ने ही बाबा नागार्जुन की कविता का दर्द मेरे अंदर उतार रखा था ।

खड़-खड़ खड़ करने वाले
ओ पीपल के पीले पत्ते
अब न तुम्हारा रहा ज़माना
शक्ल पुरानी ढंग पुराना
आज गिरो कल गिरो कि परसों
तुमको तो अब गिरना ही है
What you're really doing when carving an aspen tree in Colorado | Outdoors | gazette.com
बदल गई ऋतु राह देखती लाल लाल पत्तों की दुनियाँ
हरे-हरे कुछ भूरे-भूरे टूसों से लद रही टहनियाँ
इनका स्वागत करते जाओ
पतझड़ आया झरते जाओ
ओ पीपल के पीले पत्ते
पहली बार यह एहसास हुआ कि बिदाइ से पहले प्रकृति कैसे अपने चटक रंगों को बिखेर कर पत्तों को बिदाइ देती है।  ,कहाँ उदासी है इनमें  रंग तो इस तरह से  चटक उतर आते है उन पत्तों पर की जैसे कोई उत्सव का मंडप या कहो कि कोई स्वप्नलोक ही सजा देती है।  यह गुलाबी ठंड के साथ हल्की पड़ती धूप ,जो पत्तों के अंदर दबे हुए रंगों को भी एक अवसर देती है अपने पूरे वजूद के साथ अपनी शक्ति के प्रदर्शन का ।

  क्या मैं जीवन के इस दर्शनसे अनभिज्ञ थी? इस फिलोसाफ़ी को इतने गहरे तक समझने ओर महसूस करने ही इस बार अमेरिका की अनियोजित यात्रा पर चली आई थी ?कहीं बेटे के माध्यम से रंगों ने तो आमंत्रित नहीं किया मुझे ।? मैं अपनी जीवन यात्रा से भी तो रूबरू होने लगी हूँ आजकल !स्वास्थ ओर समस्याएं आती जाती बढ़ती उम्र के इस जीवन चक्र को अनकहे शब्दों से याद दिलाती ही है ,शायद रातें  कैसे कैसे विचारों के साथ रतजगे सी गुजरती है । उन सब के बीच इस यात्रा ने समझाया है कि जीवन जितना है जब तक है रंगभरा ओर उल्हास मे होना चाहिए ,जैसे इन कलरफूल झरते पत्तों का है ,हल्के ओर रंगीन होकर अपने ही रूपरंग पर आत्म मुग्ध ये धरती का कोई फाग उत्सव मना रहे हैं ? लहरिएदार चूनर वाली किसी  मतवाली नार सा अनुपम सौन्दर्य लिए ।
सच यह यात्रा बच्चों के इतने सालों से यहाँ रहते हुए भी इस अवसर पर इससे पहले इस तरह की जगह पर नहीं हुई थी कनेक्टिकट तो मैं पहले भी आई थी लेकिन मई -जून के समय में जब गरम देश से ठंडे देश आने ओर हरी भरे सड़क के दोनों किनारे के घास के एक से काटे गए मैदानों से मिट्टी ही तलाशने मे रह गई थी ।इस  बार यह फ़ाल कलर्स का समय है जिसके लिए  यह क्षेत्र अपने सुंदर प्राकृतिक नजारे और रंगों की  विरासतों के लिए दुनियाभर में मशहूर है। इस महादेश के अधिकांश हिस्सों में प्राकृतिक सुंदरता कूट कूटकर भरी है। यहां के ठंडे प्रदेशों में लोगों को जितनी उत्सुकता गर्मी के दिनों को लेकर होती है, उससे कुछ ज्यादा ही  इंतजार शरद ऋतु के कलर्स के लिए भी होता है ।
कनेक्टिकट पूर्वोत्तर संयुक्त राज्य के न्यू इंग्लैंड क्षेत्र में सबसे दक्षिणी राज्य है। कनेक्टिकट की सीमा पूर्व में रोड आइलैंड, उत्तर में मैसाचुसेट्स, पश्चिम में न्यूयॉर्क और दक्षिण में लॉन्ग आइलैंड से लगती है। इसकी राजधानी हार्टफोर्ड है। इसका सबसे बड़ा शहर ब्रिजपोर्ट है। राज्य का नाम कनेक्टिकट नदी के नाम पर रखा गया है, जो एक प्रमुख अमेरिकी नदी है जो राज्य को मोटे तौर पर विभाजित करती है।दक्षिणी और पश्चिमी कनेक्टिकट (राज्य की अधिकांश जनसंख्या के साथ) न्यू यॉर्क महानगरीय क्षेत्र का हिस्सा है; जिसे ट्राई स्टेट एरिया के रूप में व्यापक रूप से जाना जाता है।कनेक्टिकट नदी के बगल में अन्य प्रमुख नदियों में इंग्लैंड में टेम्स नदी के नाम पर हाउसटोनिक, नौगटक और टेम्स नदी शामिल हैं। अंग्रेजी शहरों के नाम पर अन्य स्थानों में लंदन, इंग्लैंड, न्यू ब्रिटेन के बाद न्यू लंदन और फेयरफील्ड, ग्रीनविच, स्ट्रैटफ़ोर्ड, गिलफोर्ड, ब्रिस्टल, चेशायर, स्टैमफोर्ड, विंडसर, टॉलैंड, टॉरिंगटन, एवन, नॉरवॉक, आदि जैसे शहर शामिल हैं। इनमें से अधिकांश शहरों में जाने का अवसर मिला लेकिन इस बार  बात शहर की नहीं गाँव की ओर गाँव तक के 100 किलोमीटर के सफर मे जो देखा वह रंगों का आयोजन था या रंगों का कोई सम्मोहन अभी यह तय  करना बाकि  है रंग इतने ओर इतनी दूर दूर तक थे कि जैसे आसमान से बिखर कर पत्तों पर अटक गए थे । जो धरती पर बिखरे भी तो धरती जैसे कहीं स्वर्णिम कहीं बसंती तो कहीं केसरिया फाग खेली वसुंधरा हो रही थी ।
हम न्यू हेवन ओर येल यूनवर्सिटी के आसपास इस अनूठे सौन्दर्य को जो रंगों का है रोज ही देख रहे थे ,घर के नीचे भी स्विमिंग पूल के पास लगे पेड़ इन रंगों से सजे हुए है ,लेकिन इंटरनेट से मिली जानकारी ओर पर्यटन विभाग की वेबसाइड पर कहाँ कहाँ अभी कलर अपने पूरे शबाब पर है इसकी जानकारी लेकर हम पँहुचे थे ओल्ड मिस्टिक विलेज, मिस्टिक एक्वेरियम के ठीक बगल में स्थित है। यह एक छोटा सा गाँव है जो सभी प्रकार की दुकानों, रेस्तरां और यहां तक ​​कि एक मूवी थियेटर से भरा हुआ है। ओल्ड मिस्टिक विलेज का आनंद वर्ष के दौरान किसी भी समय लिया जा सकता है। यह एक लोकप्रिय गंतव्य है क्योंकि यहाँ हाट  बाजार जैसी या कहूँ इंदौर राजवाड़े के पीछे सराफे का चाटबाजार जैसी दुकाने लगती है ।
लेकिन अक्टूबर से नवंबर के महीने में यहाँ दुकाने नहीं फाल कलर्स से भरे चारों तरफ से आनेवाले रास्ते आकर्षण का केंद्र होते है ,न्यू हेवन से नेशनल हाइवे पकड़ 100 किलोमीटर का सम्पूर्ण रास्ता ओर जंगल इन दिनों कलर फूल हो रहा था . इस मौसम में जिसके प्राकृतिक नज़ारे बस देखने लायक  हैं। औसत तापमान बीस डिग्री से नीचे आने के बाद ठंड दस्तक देने लगती है। इस गुलाबी ठंड के साथ आने वाले हफ्तों में, देश भर में करोड़ों पत्ते रंग बदलना शुरू कर देते  हैं । कई पेड़ों की पत्तियां तो हरे से ख़ूबसूरत पीले रंग की ओर  बढ़ने लगती  हैं। लेकिन आने वाले दिनों में इनके रंग बदलकर लाल, सुर्ख़ लाल, नारंगी भी हो जाते है  । जो अपने आप में एक अद्भुत दर्शनीय नज़ारा बन रहा  है।इतने विशाल स्वरूप ने रंगीन पेड़ फूलों से लदे भी इतने सुंदर नहीं दिखते जो इस समय दिख रहे थे ।पत्ते का मौसम सितंबर के अंत में शुरू होता है और नवंबर की शुरुआत तक चलता है। चरम रंग 3 अक्टूबर से 8 नवंबर के बीच होने का अनुमान था । हालांकि, आने वाले हफ्तों में मौसम के आधार पर, मौसम बढ़ने पर चरम तिथि को कुछ दिन पहले या बाद में समायोजित हो  सकता है।

यदि आप पतझड़ के पत्ते देखने के लिए अमेरिका में कहीं भी जा सकते है ,सर्वोत्तम स्थानों की तलाश कर रहे हैं, तो कहीं और न जाएँ! न्यू इंग्लैंड में शरद ऋतु कभी निराश नहीं करती क्योंकि यह घूमने का सबसे सही समय है जब पूर्वोत्तर गर्म रंगों के व्यापक स्पेक्ट्रम के साथ चमकता है! इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि न्यू इंग्लैंड पतझड़ में घूमने के लिए शीर्ष स्थान के रूप में राज करता है; यह सब स्वेटर के मौसम में पत्तियों के रंग बदलने के कारण है!जैसे ही पतझड़ पूर्वोत्तर में प्रवेश करता है, पूरा क्षेत्र लाल, पीले और नारंगी रंग में बदल जाता है, लेकिन प्रत्येक राज्य में विशेष स्थान होते हैं जो शरद ऋतु के रंगों के सबसे आश्चर्यजनक दृश्य पेश करते हैं। कनेक्टिकट में, पत्ते देखने के लिए सबसे अच्छे स्थान राज्य पार्क और जंगल हैं, जो देखने वाले टावर और लुकआउट भी प्रदान करते हैं ताकि आप प्रकृति के जीवंत प्रदर्शन के मनोरम दृश्य का आनंद लेना चाहते है तो मिस्टिक विलेजतक जा सकते है रास्ते मे नदी भी है किनारा भी जो रंगीन छटा बिखेरता हुआ दिखेगा ।इस गाँव के अन्य आकर्षण पर हम अगले अंक में चर्चा करेंगे ओर एक्वेरियम पर भी अलग से । लेकिन अभी फाल कलर तो देखें हम .

रंग सितंबर के अंत में दिखाई देने लगते हैं और वे नवंबर की शुरुआत तक रह सकते हैं, लेकिन कनेक्टिकट के आसपास का चरम समय अक्टूबर के मध्य में होता है। सटीक समय सीमा मौसम और अन्य चर पर निर्भर करती है, लेकिन ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण विभाग एक आसान साप्ताहिक अपडेट रखता है ताकि आप जान सकें कि कब जाना है।

यदि आप पूरे राज्य में अन्य पतझड़ के रंगों को देखना चाहते हैं, तो आप पर्णसमूह का एक सुंदर ड्राइविंग टूर भी कर सकते हैं।

वैज्ञानिक मानते हैं कि स्थानीय मौसम में बदलाव पत्तियों के सूखने, रंग बदलने या पेड़ से टूटकर गिरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रंगबिरंगी पत्तियों की वजह से अक्टूबर के महीने में हरे-भरे पार्क, जंगल और सड़कों के किनारे कतार में लगे पेड़-पौधे सभी किसी रंगबिरंगी पेंटिंग से कम नहीं लगते। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने हरे-भरे जंगलों पर रंगों की बरसात कर दिया हो। पत्तियों के रंग बदलने का कारण उनके अंदर ही मौजूद होता है। गर्मी के जाते ही पत्तियों के रंग में बदलाव शुरू हो जाता है। गर्मियों में, पत्ते हरे होते हैं क्योंकि उस समय वे बहुत सारे क्लोरोफिल बना रहे होते हैं। यह पौधों को सूरज की रोशनी से ऊर्जा बनाने में मदद करता है। लेकिन प्रत्येक पत्ती में चार मुख्य वर्णक होते हैं। क्लोरोफिल (हरा), ज़ैंथोफिल्स (पीलापन), कैरोटेनोइड्स (संतरे), एन्थोकायनिन (लाल)। अब जैसे-जैसे दिन छोटे होने लगते हैं, पत्तियां रंग बदलने लगती हैं। क्योंकि सर्दियों की तैयारी के लिए पत्तियां कम क्लोरोफिल का उत्पादन कर रही होती हैं।
ठंड के दस्तक देते ही हरे रंग फीके पड़ने लगते हैं और उनमें लाल, संतरे, और पीलापन भरे रंग अधिक दिखाई देने लगते हैं।गर्म प्रदेशों में अमूमन यह नज़ारा कम ही देखने को मिलता है। इसलिए ऐसे प्रदेशों से सैलानी शरद ऋतु के रंगीन मनमोहक नज़ारे को देखने के लिए ठंडें देशों की ओर कूच करते हैं। अमेरिका  के पर्यटन में इस मौसम को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। कई सैलानी रंगीन रास्ते और रंगबिरंगे जंगलों को देखने के लिए ख़ासतौर पर सड़क मार्ग से सफ़र करते हैं। ख़ास बात यह है कि सितंबर-अक्टूबर के महीनों में पेड़-पौधों कि पत्तियों का महत्व फूलों से ज्यादा बढ़ जाता है।

लोग फूलों की घाटियों की जगह रंगीन जंगलों के मनमोहक नज़ारे को देखना ज्यादा पसंद करते हैं। इन रंगीन पत्तियों पर कुछ ही महीनों में बर्फ़ की मोटी चादर बिछने लगेगी। साथ ही शुरू हो जाएगा कड़कड़ाती ठंड का लंबा मौसम। इसलिए सितंबर – अक्तूबर का महीना यहां प्राकृतिक रूप से सबसे रंगीन महीना माना जाता है। इसके बाद के महीनों में प्रकृति करवट बदलकर फिर सफ़ेद रंग में लिपटी हुई दिखने लगेगी। ऐसे मनमोहक नज़ारे यूरोप  और ऑस्ट्रेलिया महादेशों में भी देखने को मिलते हैं।

अलग-अलग जगहों पर मौसम अलग समय में करवट बदलता है. ठीक इसी तरह अलग-अलग जगहों पर पतझड़ भी अलग-अलग समय पर आता है.पेड़ों के लिए पत्तों का झड़कर अलग हो जाना मौसमी विकास चक्र का अंत होता है. पत्तियां तब झड़ती हैं, जब पेड़ स्थानीय जलवायु की प्रतिकूलता महसूस करना शुरू करते हैं. इस दौरान वातावरण में सर्दी या गर्मी बढ़ती जाती है. वातावरण में नमी की कमी हो जाती है और पत्तियों से ज्‍यादा वाष्पोत्सर्जन होने लगता है. पेड़ों के लिए यह तनावपूर्ण समय होता है. इसका सामना करने के लिए ही पेड़ पत्तियों को गिरा देते हैं. पेड़ पतझड़ से पहले पत्तियों से पौष्टिक तत्‍वों को भी खींच लेते हैं. कुछ पौधे इन पौष्टिक तत्‍वों का इस्‍तेमाल सही मौसम आने पर नई पत्तियां बनाने के लिए कर लेते हैं.जिन इलाकों में सर्दियों से पहले पतझड़ आता है, वहां, पेड़-पौधे ऐसा करके खुद को सफलतापूर्वक जिंदा रख पाते हैं.

पेड़ों को भी इंसानों व दूसरे जीव-जंतुओं की तरह जीने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है. पेड़-पौधे इस ऊर्जा को प्रकाश संश्‍लेषण की क्रिया के जरिये हासिल करते हैं. ये क्रिया सूर्य की रोशनी में हरी पत्तियां ही कर पाती हैं.पत्तियों में मौजूद क्‍लोरोफिल की मदद से पेड़-पौधे धूप को सोख लेते हैं. इसके बाद पानी और कार्बन डाई-ऑक्‍साइड को शर्करा में बदल लेते हैं. पेड़-पौधे क्‍लोरोफिल को छोटे अणुओं में तोड़कर तने और जड़ों में इकट्ठा कर लेते हैं. पत्तियों में क्‍लोरोफिल के साथ ही लाल और पीले पिगमेंट्स भी होते हैं. पतझड़ के समय क्‍लोरोफिल तने और जड़ों में जमा होने लगता है. इससे ये लाल-पीले पिगमेंट्स उभरकर सामने आने लगते हैं. जहां क्‍लोरोफिल के कारण पत्तियों का रंग हरा होता है. वहीं, कैरोटीनाइड के कारण पत्तियों का रंग नारंगी व पीला और एंथोसायनिन के कारण लाल व गुलाबी हो जाता है.पतझड़ के मौसम में पेड़-पौधे पत्तियों में क्‍लोरोफिल इकट्ठा होने की प्रक्रिया को रोककर जड़ व तना में जमा करने लगते हैं. दरअसल, ये पेड़-पौधों की पतझड़ से मुकाबला करते हुए जिंदा रहने के लिए ऊर्जा बचाने की तैयारी होती है. वहीं, जिन इलाकों में सर्दियों में पतझड़ आता है, वहां पत्तियों पर पानी जमने के कारण पेड़ों को प्रकाश संश्‍लेषण के लिए पर्याप्‍त पानी नहीं मिल पाता है. ऐसे में पत्तियों को गिराकर पेड़-पौधे अपने लिए जरूरी ऊर्जा की बचत कर लेते हैं।  पेड़ों से गिरी हुई पत्तियां कचरा नहीं होती हैं. ये पत्तियां मिट्टी में पोषक तत्वों को जोड़ने का काम भी करती हैं. इन्हीं पत्तियों के कारण बसंत ऋतु के बाद पेड़ मिट्टी से पोषण प्राप्त करता है और जड़ें मजबूत हो जाती हैं. पेड़ों को फॉस्फोरस, मैग्नेशियम जैसे जरूरी पोषक तत्‍व झड़कर गिरी सूखी पत्तियों से ही मिल जाते हैं.

रंग देखे है अभी तो अभी सफेद चादर ओढ़ सोते जंगल देखना शेष है । हल्की सर्दी में कांपने वाले देश मे बर्फ देखने के अवसर काम ही मिलते है ,कश्मीर ओर पहाड़ों पर जाना होता है ,लेकिन यहाँ घर की खिड़की से बरसती बर्फ भी देखनी है । ओर सफेद चादर हटा  कर हरी चुनरी ओढ़ती धरती के सौन्दर्य पर लिखना अभी शेष है । अभी बहुत कुछ जीवन दर्शन भी तो समझना शेष है ।