कौन-कौन ऐसा व्यवहार कर रहा जैसे उसे कभी मरना नहीं है…?

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कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में आयोजित “चैंपियंस ऑफ चेंज सम्मान समारोह” में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक प्रसंग सुनाकर सबका दिल जीत लिया। कटाक्ष भी था, जीवन का सार भी था और जिस तरह से इस भौतिक युग में सच्चाई से परे स्वान्त: सुखाय से ओतप्रोत जिंदगी का कड़वापन पूरी दुनिया को दु:खों से भर रहा है, वह यथार्थ भी था।

मुख्यमंत्री ने महाभारत का एक प्रसंग सुनाया कि यक्ष ने धर्मराज युधिष्ठर से पूछा कि इस दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? धर्मराज ने उत्तर दिया कि व्यक्ति जन्म लेता है, बच्चे के रूप में बड़ा होता है, शादी-ब्याह करता है, सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करता है, बूढ़ा होता है और मर जाता है। यह सब जानते हैं, फिर भी हर व्यक्ति इस तरह व्यवहार करता है जैसे उसे कभी मरना ही न हो। यही दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है।

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यक्ष युधिष्ठिर के जवाब से संतुष्ट हो गया। शिवराज ने नसीहत भी बताई कि इस दुनिया को एक धर्मशाला की तरह समझना चाहिए कि आए हैं, ईश्वर की जब तक इच्छा है तब तक ठहरना है और फिर चले जाना है। इसलिए ऐसा व्यवहार करो कि जीवन सार्थक हो जाए। शायद चैंपियंस ऑफ चेंज सम्मान समारोह में दुनिया को बदलने का काम करने वाले सम्मानित लोगों के लिए भी यह बात सही थी, तो इस दुनिया में मौजूद हर इंसान के लिए यह नसीहत कारगर है।

यक्ष-युधिष्ठर के इस प्रसंग से अब तो जैसे किसी का ही कोई वास्ता नहीं है। जो लोग बूढ़े होकर मर रहे, उन्हें तो शायद बुढ़ापे के शारीरिक कष्ट फिर भी अहसास करा देते हों कि मौत ही परम सत्य है और वह खुद को मौत के करीब जाता हुआ महसूस भी कर पाते हों और जगत मिथ्या लगने लगता हो। लेकिन आजकल तो लोग बूढ़े भी नहीं हो पाते और इस नश्वर संसार को त्याग देते हैं, उन्हें तो वास्तव में नहीं लग पाता कि मौत नाम की भी कोई चीज होती है।

जो बड़े-बडे पदों को सुशोभित करते हैं, उन्हें तो यह भी समझ में नहीं आता है कि एक दिन यह पद नहीं रहेगा…मौत तो शायद बहुत दूर की बात है। जो अहंकार में हमेशा डूबे हैं, वह तो इस आश्चर्य से परे ही हैं कि मौत भी कोई चीज होती है। जो अनैतिक तरीके से धन कमाने की मशीन बन जाते हैं, उन्हें तो शायद यह लगने लगता है कि दुनिया में हर चीज बिकाऊ है और वह यमराज को भी खरीदने की हिम्मत रखते हैं।

जिस दिन यमराज आएगा, उस दिन उसे नोटों से भरे थैले ऑफर कर देंगे और वह अपनी दोनों काखरी में नोटों के थैले दबाकर जो दुम दबाकर भागेगा तो फिर मुड़कर भी नहीं देखेगा और उन्हें अमरता का वरदान मिल जाएगा। अत्याचारियों और कसाईयों को तो मानो यही लगता है कि जीवन लेना और मौत बांटना उनका ही काम है, बाकी उन्हें मौत देने की तो किसी की औकात ही नहीं है।

खैर शिवराज ने दूसरी बात भी लाख टके की कही है कि ऐसे कर्म करो कि जीवन सार्थक हो जाए। तो ऐसे कर्म करने वाले लोगों के नाम उंगलियों पर ही गिने जा सकते हैं। जिनमें से कुछ को “चैंपियंस ऑफ चेंज सम्मान” मिला है, जिन्हें यह पता है कि मौत ही सत्य है और बाकी सब मिथ्या है। और इसीलिए उनका आचरण भी जीवन को सार्थक करने वाला है। बाकी का तो भगवान ही भला है। मंच पर या मंच के नीचे बैठे लोग हों या फिर दुनिया की अरबों की आबादी का अधिकतर हिस्सा, बात सभी पर लागू होती है।

यह आश्चर्य तब भी बरकरार है, जबकि सभी अपनों को मरता हुआ देखते हैं। फिर भी सभी को इस आश्चर्य ने भरमा रखा है। हर व्यक्ति का जीवन जब जीवन-मौत और जीत-हार रूपी महाभारत तक पहुंचता है और उसकी जिंदगी गीता का ज्ञान बताती है… तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। और तब जीवन को सार्थकता प्रदान करने वाला कर्म करने का समय भी नहीं बच पाता।

तो अपना-अपना हाथ उठाए बिना अपने मन में ही सोच लो कि कौन-कौन ऐसा व्यवहार कर रहा है जैसे इस दुनिया में हमेशा ही रहना हो…। यदि ऐसा समझने की भूल हो रही है, तो अब भी जाग जाओ और ऐसे आश्चर्य से बाहर निकलकर जीवन को सार्थक करने वाले काम की शुरुआत कर दो…ताकि मानव जीवन सफल हो सके। यह यक्ष-युधिष्ठर प्रसंग भी आंखें खोलने के लिए काफी है, तो हर दिन हो रहीं मौतें भी हमें ऐसे किसी आश्चर्य के आवरण से मुक्त होने के लिए पर्याप्त हैं।