उप-राष्ट्रपति पद की रेस में कौन सबसे आगे? हरिवंश, शेषाद्रि चारी या कोई और?

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उप-राष्ट्रपति पद की रेस में कौन सबसे आगे? हरिवंश, शेषाद्रि चारी या कोई और?

के.के. झा की विशेष रिपोर्ट

जैसे-जैसे भारत के अगले उप-राष्ट्रपति के चुनाव की तारीख नज़दीक आती जा रही है, राजनीतिक गलियारों में अटकलें तेज़ हो गई हैं। खासकर यह सवाल सबके जेहन में है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ओर से उम्मीदवार कौन होगा और क्या विपक्षी इंडिया गठबंधन कोई साझा प्रत्याशी उतारेगा?

हरिवंश नारायण सिंह — NDA की पहली पसंद?

हरिवंश नारायण सिंह — NDA की पहली पसंद?

इस समय जो नाम सबसे तेज़ी से चर्चा में है, वह है राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का। पत्रकारिता से राजनीति में आए हरिवंश, प्रभात खबर जैसे प्रतिष्ठित अखबार के संपादक रह चुके हैं और कोयला क्षेत्र के केंद्र धनबाद-जमशेदपुर से लेकर राजधानी पटना तक के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे को नजदीक से जानते हैं।

हरिवंश का ताल्लुक बिहार के सिताबदियारा से है — वही गांव जहाँ से लोकनायक जयप्रकाश नारायण का उदय हुआ था। हालांकि हरिवंश में वैसी क्रांतिकारी चमक और राजनीतिक तेवर नहीं दिखते जो जयप्रकाश में थे। वे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के मीडिया सलाहकार भी रह चुके हैं। एक समय वे समाजवादी विचारधारा से जुड़े माने जाते थे, लेकिन आज की उनकी राजनीति में वह झलक कम ही दिखाई देती है।

कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब झारखंड बिहार से अलग हुआ, तब हरिवंश ने रांची छोड़ पटना में प्रभात खबर को फिर से खड़ा किया — और नीतीश कुमार के करीब माने जाने लगे। शायद इसी नज़दीकी का नतीजा था कि उन्हें राज्यसभा भेजा गया।

हालाँकि, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि वे ठाकुर समुदाय से आते हुए भी बिहार में उस समुदाय पर उनका खास प्रभाव नहीं माना जाता। सवाल यह है कि अगर बीजेपी उन्हें उप-राष्ट्रपति बनाती है, तो क्या बिहार चुनाव में उसका सीधा असर होगा? शायद नहीं, लेकिन आज की राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है। बीजेपी के लिए एक और सवाल यह भी है — क्या वह ऐसे किसी नेता को संवैधानिक पद देगी, जिसकी राजनीतिक पृष्ठभूमि “आवाजाही” वाली रही हो? अगर यह विचारधारा हावी रही, तो हरिवंश की दावेदारी कमजोर पड़ सकती है।

शेषाद्रि चारी — दक्षिण भारत की ओर कदम?

शेषाद्रि चारी — दक्षिण भारत की ओर कदम?

दूसरा बड़ा नाम है शेषाद्रि चारी का — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के Organiser अखबार के पूर्व संपादक और एक गहरी वैचारिक पृष्ठभूमि वाले नेता। मूलतः तमिलनाडु के तंजावुर से आने वाले शेषाद्रि चारी बहुभाषी हैं — हिंदी, तमिल, मराठी और अंग्रेज़ी पर समान पकड़ रखते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर उनकी पकड़ उन्हें संघ और बीजेपी दोनों के लिए एक मूल्यवान चेहरा बनाती है। कभी संघ द्वारा चार प्रमुख महानगरों में नियुक्त प्रभारियों में चारी मुंबई संभालते थे, जबकि नागपुर की ज़िम्मेदारी मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत के पास थी। राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं उन्हें पसंद करते हैं।

यदि बीजेपी और संघ मिलकर दक्षिण भारत में अपनी जड़ें और गहरी करना चाहते हैं, तो चारी का नाम रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद सटीक बैठता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या संघ इस बार केवल प्रतीकात्मक या राजनीतिक समीकरणों के आधार पर नाम तय करेगा या विचारधारा और तपस्या को भी महत्व देगा?

अन्य संभावित नाम: राजनीति या प्रतीकवाद?

इन दोनों प्रमुख नामों के अलावा और भी कई दिग्गजों के नाम सामने आ रहे हैं — जैसे राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, थावर चंद गहलोत, मनोज सिन्हा, रामनाथ ठाकुर, शशि थरूर, आरिफ मोहम्मद खान और गुलाम नबी आज़ाद। लेकिन अब तक तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। एक चर्चा यह भी है कि जगत प्रकाश नड्डा को राज्यसभा का सभापति बनाया जाए और मनोहर लाल खट्टर को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष — यानी ‘एक तीर से दो निशाने वाला दांव।

चुनावों की प्राथमिकता, निष्ठा का मूल्य?

मोदी और शाह की राजनीति में निष्ठा से ज्यादा अहमियत चुनावी उपयोगिता को दी जाती है। जो चुनावी रणनीति में फिट बैठता है, वही आगे बढ़ाया जाता है। पुरस्कार देकर वफादारी भी खरीदी जा सकती है — ऐसा कई बार देखा गया है। अब देखना यह है कि संघ और बीजेपी इस बार कितनी गहराई से विचार करती हैं — क्या इन पदों का बंटवारा केवल चुनावी समीकरणों से होगा या उन कार्यकर्ताओं को भी स्थान मिलेगा जिन्होंने संगठन के लिए वर्षों तपस्या की है?

निष्कर्ष: नाम से ज्यादा महत्वपूर्ण है संदेश

उप-राष्ट्रपति पद का चुनाव केवल एक व्यक्ति का चयन नहीं है, बल्कि यह देश को दिया जाने वाला एक राजनीतिक-सांस्कृतिक संदेश भी है। चाहे वह हरिवंश हों, शेषाद्रि चारी या कोई और — यह तय करना सत्ता के शीर्ष नेतृत्व के हाथ में है कि वह किस दिशा में देश की संवैधानिक राजनीति को आगे बढ़ाना चाहता है।

(लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनितिक विश्लेषक हैं )