महात्मा गांधी (1869-1948) के जीवन में महिलाओं की क्या भूमिका थी उसके बारे में अनेक तरह के विमर्श होते रहे हैं पर कनाडा मूल की प्रोफेसर गेराल्डिन फोर्ब्स द्वारा लिखी गई पुस्तक Lost Letters And Feminist History: The Political Friendship of Mohandas K Gandhi & Sarala Devi Chaudhurani में इस मामले में एक नई कड़ी को प्रमुखता से जोड़ दिया है। प्रकाशक ओरियंट ब्लैकस्वान द्वारा 2020 में प्रकाशित जिसकी प्रस्तावना ऊषा ठाकर ने लिखी है जो 1984 से 1989 तक गुजरात के कच्छ क्षेत्र से कांग्रेस सांसद रह चुकी हैं।।
गेराल्डिन फोर्ब्स ने 1964-1966 तक काउंटी हाई स्कूल, नोवा स्कोटिया, कनाडा में सामाजिक अध्ययन शिक्षक के रूप में काम किया। इसके बाद उन्होंने 1971 में इतिहास विभाग, स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क ओस्वेगो में सहायक प्रोफेसर के रूप में, 1974 में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में काम किया; 1981 में प्रोफेसर के रूप में; और 1998 विशिष्ट शिक्षण प्रोफेसर के रूप में जिम्मेदारी निभाई। फोर्ब्स ने बंगाल की महिलाओं पर शोध भी किया है। उनकी पुस्तक “बंगाल में सकारात्मकता” को रवींद्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2008 में उन्हें महिलाओं पर शोध के लिए ध्वनि और चित्र अभिलेखागार (स्पैरो) की सलाहकार समिति में नियुक्त किया गया था।
गेराल्डिन का कहना है कि महात्मा गांधी के जीवन में 1919 से 1921 तक सरला देवी चौधुरानी (1872-1945) का काफी प्रभाव रहा है।उनकी यह बात कपोल कल्पित कथा नहीं है बल्कि सरला चौधुरानी के बेटे दीपक दत्त चौधरी द्वारा उपलब्ध कराए गए पत्र हैं जो महात्मा गांधी द्वारा सरला चौधुरानी को लिखे गए थे। उनके अध्ययन के आधार पर ही उन्होंने इस बात का दावा किया है।
गेराल्डिन फोर्ब्स का मानना है कि महिला सहयोगियों के साथ गांधी के संबंधों ने कई लेखकों का ध्यान आकर्षित किया है। गांधी की कामुकता के बारे में सवाल उठाए गए हैं और एक धारणा बनाई गई है कि गांधी ब्रह्मचर्य में अपने प्रयोगों में विफल रहे।
गांधी अपने जीवन काल में कस्तूरबा के अलावा भी अनेक महिलाओं से प्रभावित रहे हैं। विभिन्न स्रोतों से एकत्र जानकारी के आधार पर आठ महिलाओं के नाम सामने आते हैं। वे हैं सरोजिनी नायडू, मेडेलीन स्लेड उर्फ मीराबेन, निला क्रैमकुक, सरला देवी चौधुरानी, राजकुमारी अमृत कौर, डा सुशीला नय्यर, आभा गांधी और मनु गांधी।
फोर्ब्स ने गांधी के महिलाओं के साथ संबंधों का विश्लेषण करते हुए खास संदर्भ अपने समय से आगे चलने वाली महिला सरला देवी चौधुरानी के साथ उनके संबंध का है। वे 1919 और 1921 के बीच गांधी की करीबी सहयोगी थीं। व्यक्तिगत रूप से और पत्राचार में उनके बीच सबसे गहन बातचीत 1920 में हुई थी। जैसा कि शीर्षक से पता चलता है, फोर्ब्स का विशिष्ट उद्देश्य सरला देवी चौधुरानी के व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से सामने लाना और उनके और गांधी के बीच राजनीतिक मित्रता की जांच करना है। उनका तर्क है कि भारत में नारीवादी इतिहास की खोज करते हुए इस व्यक्तित्व का पूरी तरह से अध्ययन नहीं किया गया।
वे एक इतिहासकार के रूप में इस कमी को पाटने की कोशिश करती है।वे मानती हैं कि गांधीजी के साथ सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले कई लोगों को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उचित मान्यता नहीं दी गई है। यह उनकी महिला सहयोगियों के मामले में विशेष रूप से सच है, जो गांधी के विशाल व्यक्तित्व से प्रभावित थीं। फोर्ब्स के लेखन में, सरला देवी एक शक्तिशाली महिला के रूप में उभरती हैं, जिन्होंने अपने समय काल में लोगों को प्रभावित किया। वे मानती हैं कि इस पुस्तक के बारे में 1976 में सरला देवी के पुत्र दीपक दत्त चौधरी के पत्रों का एक सेट प्राप्त करने और उन्हें प्रकाशन के लिए उपयोग करने की उनकी सहमति के बाद ही विचार बना था। सौंपे गए 79 पत्रों के सेट में 75 पत्र गांधी द्वारा सरला देवी को, 3 पत्र उनके पति पंडित रामभज चौधरी को और एक उनके सौतेले बेटे को संबोधित हैं।
एक इतिहासकार के रूप में, लेखक ने पत्रों की प्रामाणिकता की जांच करने के लिए कड़ी मेहनत की है। उन्हें प्रकाशित करने से पहले उन्होंने खुद को संतुष्ट कर लिया है। वे स्वीकार करती हैं कि उनके पास इस बात का कोई पूर्ण प्रमाण नहीं था कि महात्मा गांधी के कलेक्टेड वर्क्स और गांधी के साथ उनके निजी सचिव, महादेव देसाई द्वारा दिन-प्रतिदिन के पत्रों के अलावा भी गांधी द्वारा पत्र लिखे गए थे। लेकिन वे लिखती हैं कि एक इतिहासकार के रूप में उनका प्रशिक्षण उन्हें बताता है कि वे वास्तविक हैं।
पुस्तक की नवीनता यह है कि इसमें ऐसे पत्र हैं जो आज तक प्रकाशित नहीं हुए थे। इस प्रकार, महात्मा गांधी के कलेक्टेड वर्क्स को अब तक का सबसे प्रामाणिक दस्तावेज माना जाता था जिसमें गांधी द्वारा दूसरों को लिखे गए पत्र हैं।
सरला देवी चौधुरानी और मोहनदास करमचंद गांधी के अलग होने के बहुत बाद में 1936 में मार्गरेट सैंगर के साथ एक साक्षात्कार में गांधी ने स्वीकार किया था कि उनका “व्यापक सांस्कृतिक शिक्षा” ( Broad Cutural education) वाली महिला के साथ “आध्यात्मिक साहचर्य” ( Spiritual Companionship) था और जिनके साथ वे “लगभग फिसल गए थे” (Nearly Slipped) लेकिन उनके आस-पास के लोगों द्वारा “बचा लिया” गया था। कुलीन टैगोर वंश से एक उच्च-वर्ग, विश्वविद्यालय-शिक्षित भद्र महिला सरला देवी निश्चित रूप से एक पहेली थी, जिन्होंने खादी साड़ी को अपनाया, गांधी के साथ दौरा किया और राष्ट्रवादी मुद्दों पर सार्वजनिक सभाओं में जोश से भरे भाषण दिए। जाहिर है, इसी बात ने गांधी को आकर्षित किया था।
आखिर यह सरला देवी थी कौन
सरला का जन्म 9 सितंबर 1872 को कोलकाता के जोरासांको में एक प्रसिद्ध बंगाली बुद्धिजीवी परिवार में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ घोषाल बंगाल कांग्रेस के पहले सचिवों में से एक थे। उनकी मां स्वर्णकुमारी देवी, एक प्रसिद्ध लेखिका थीं, जो एक प्रख्यात ब्राह्मण नेता और कवि रवींद्रनाथ टैगोर की बहन थी। उनकी बड़ी बहन हिरोनमोई, एक लेखिका और विधवा आश्रम की संस्थापक थीं। सरला देवी का परिवार ब्राह्मणवाद का अनुयायी था।
1890 में, उन्होंने कोलकाता के बेथ्यून कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में बीए किया था। बीए परीक्षा में शीर्ष महिला उम्मीदवार होने के कारण उन्हें कॉलेज के पहले पद्मावती स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाली अपने समय की अग्रणी महिलाओं में से एक थीं। विभाजन विरोधी आंदोलन के दौरान उन्होंने पंजाब में राष्ट्रवाद का प्रचार किया था और गुप्त क्रांतिकारी गतिविधियां चलाती थीं।
1905 में, सरला देवी का विवाह स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित हिंदू सुधार आंदोलन से संबद्ध एक वकील, पत्रकार, राष्ट्रवादी नेता और आर्य समाज के अनुयायी रामभुज दत्त चौधरी (1866-1923) के साथ हुआ था। शादी के बाद वे पंजाब चली गई। वहां, उन्होंने अपने पति के साथ राष्ट्रवादी उर्दू साप्ताहिक हिंदुस्तान को संपादित करने का काम करती थी। जब उनके पति को असहयोग आंदोलन में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, तो मनोबल बढ़ाने के लिए महात्मा गांधी लाहौर गए तो उनके घर पर अतिथि के रूप में ठहरे थे। गांधी और सरला के लिए यही टर्निंग प्वाइंट था। गांधी-सरला अपनी आपसी निकटता के कारण लाहौर में चर्चा का विषय बन गए थे। इस दौरान गांधी ने सरला द्वारा लिखी कविताओं और लेखों के अंशों को अपने भाषणों में और यंग इंडिया और अन्य पत्रिकाओं में लिखे लेखों में भरपूर इस्तेमाल भी किया। सरला ने गांधी के साथ पूरे भारत की यात्रा भी की।परिस्थितिवश अलग होने पर वे अक्सर पत्रों का आदान-प्रदान करते थे। रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सब्यसाची बसु रे चौधरी के अनुसार दोनों के बीच संबंध हालांकि घनिष्ठ, आपसी प्रशंसा से ज्यादा कुछ नहीं था। उनके इकलौते बेटे, दीपक ने गांधी की पोती राधा से शादी की थी।
सरला देवी चौधुरानी ने 1910 में इलाहाबाद में भारत स्त्री महामंडल की स्थापना की थी। यह भारत में पहला महिला संगठन था। संगठन के प्राथमिक लक्ष्यों में से एक महिला शिक्षा को बढ़ावा देना था।1923 में अपने पति की मृत्यु के बाद, सरला देवी कोलकाता लौट आईं और 1924 से 1926 तक भारती के लिए संपादकीय जिम्मेदारियों को फिर से निभाना शुरू किया। उन्होंने 1930 में कोलकाता में लड़कियों के एक स्कूल, शिक्षा सदन की स्थापना की। उन्होंने 1935 में सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लिया और धर्म की शरण में चली गई और गौड़ीय वैष्णव बिजॉय कृष्ण गोस्वामी, को अपना आध्यात्मिक गुरु बना लिया। 18 अगस्त 1945 को कोलकाता में उनका निधन हो गया था।
उनकी आत्मकथा जीवननेर झारा पाटा को 1942-1943 में एक बंगाली साहित्यिक पत्रिका ‘देश’ में क्रमबद्ध प्रकाशित की गई थी। इस आत्मकथा को बाद में सिकता बनर्जी द्वारा अंग्रेजी में द स्कैटर्ड लीव्स ऑफ माई लाइफ (2011) के रूप में अनुवादित किया गया था।