जिनके नयनों ने दिखाया तिब्बत, हिमालय, ब्रह्मपुत्र-स्वांगपो, ल्हासा और भी बहुत कुछ…

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जिनके नयनों ने दिखाया तिब्बत, हिमालय, ब्रह्मपुत्र-स्वांगपो, ल्हासा और भी बहुत कुछ…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

जिसने सबसे पहले दुनिया को बताया कि ल्हासा की समुद्र तल से ऊंचाई कितनी है, उसके अक्षांश और देशांतर क्या हैं? जो तिब्बत का सर्वेक्षण करने वाले पहले व्यक्ति थे। जो हिमालय के क्षेत्रों का अन्वेषण करने वाले शुरुआती भारतीयों में से एक थे। उन्होंने दुनिया को यह भी बताया कि स्वांग पो और ब्रह्मपुत्र एक ही नदी है। यही नहीं बल्कि हिंदी में आधुनिक विज्ञान में “अक्षांश दर्पण” नाम की एक किताब लिखने वाले वह पहले भारतीय थे। यह पुस्तक सर्वेयरों की आने वाली पीढ़ियों के लिये भी एक ग्रंथ के समान है। जिन्होंने त्सांगपो का नक्शा बनाया और थोक जालुंग की सोने की खदानों के बारे में बताया। उनके कामों को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें ‘कम्पेनियन आफ द इंडियन एम्पायर’ का खिताब दिया गया। उपलब्धियों के ऐसे ही सागर थे पंडित नैन सिंह रावत। आज यानि 21 अक्टूबर 2025 को उनका जन्मदिन है। तो जिनके नयनों ने हमें वह बहुत कुछ दिखाया, आज हम ऐसे पंडित नैन सिंह रावत को अपनी यादों में बसाते हैं ।

नैन सिंह रावत ( जन्म- 21 अक्टूबर, 1830, कुमाऊँ; मृत्यु- 1 फरवरी, 1882, मुरादाबाद) हिमालयी इलाकों की खोज करने वाले पहले भारतीय थे। वे 19वीं शताब्दी के उन पण्डितों में से थे, जिन्होंने अंग्रेज़ों के लिये हिमालय के क्षेत्रों की खोजबीन की। नैन सिंह रावत कुमाऊँ घाटी के रहने वाले थे। उन्होंने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्रण किया। उन्होंने ही सबसे पहले ल्हासा की स्थिति तथा ऊँचाई ज्ञात की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया। नैन सिंह रावत को एक एक्सप्लोरर के रूप में ही याद नहीं किया जाता, बल्कि हिंदी में आधुनिक विज्ञान में “अक्षांश दर्पण” नाम की एक किताब लिखने वाले वह पहले भारतीय थे। यह पुस्तक शोध कार्य करने वाली पीढ़ियों के लिए एक ग्रंथ के समान है।

नैन सिंह रावत कुमाऊं क्षेत्र के रहने वाले थे। उनका जन्म 21 अक्टूबर सन 1830 में कुमाऊं के पिथौरागढ़ जिले के मिलम नामक गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हासिल की थी, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वह जल्द ही पिता के साथ भारत और तिब्बत के बीच चलने वाले पारंपरिक व्यापार से जुड़ गए। अपने पिता के साथ उन्हें तिब्बत के कई स्थानों पर जाने और उन्हें समझने का मौका मिला। उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी, जिससे उन्हें काफी मदद मिली।हिन्दी और तिब्बती के अलावा उन्हें फारसी और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था। महान अन्वेषक, सर्वेक्षक और मानचित्रकार नैन सिंह रावत ने अपनी यात्राओं की डायरियां भी तैयार की थीं।

 

19वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत का नक्शा तैयार कर रहे थे और लगभग पूरे भारत का नक्शा बना चुके थे। अब वह आगे बढ़ने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन उनके आगे बढ़ने में सबसे बड़ा रोड़ा था तिब्बत। यह क्षेत्र दुनिया से छुपा हुआ था। न सिर्फ वहां की जानकारियां बेहद कम थीं बल्कि विदेशियों का वहां जाना भी सख्त मना था। ऐसे में अंग्रेज कशमकश में थे कि वहां का नक्शा तैयार होगा कैसे? हालांकि ब्रितानी सरकार ने कई कोशिशें कीं, लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी। पंडित नैन सिंह रावत पर किताब लिख चुके और उन पर शोध कर रहे रिटार्यड आईएएस अधिकारी एसएस पांगती के अनुसार- “अंग्रेज अफसर तिब्बत को जान पाने में नाकाम हो गए थे।” कई बार विफल होने के बाद उस समय के सर्वेक्षक जनरल माउंटगुमरी ने ये फैसला लिया कि अंग्रेजों के बजाए उन भारतीयों को वहां भेजा जाए जो तिब्बत के साथ व्यापार करने वहां अक्सर आते जाते हैं। और फिर खोज शुरू हुई ऐसे लोगों की जो वहां की भौगोलिक जानकारी एकत्र कर पायें, और आखिरकार 1863 में कैप्टन माउंटगुमरी को दो ऐसे लोग मिल ही गए। 33 साल के पंडित नैन सिंह रावत और उनके चचेरे भाई माणी सिंह।

नैन सिंह रावत को एक एक्सप्लोरर के रूप में ही याद नहीं किया जाता, बल्कि हिंदी में आधुनिक विज्ञान में “अक्षांश दर्पण” नाम की एक किताब लिखने वाले वह पहले भारतीय थे। यह पुस्तक सर्वेयरों की आने वाली पीढ़ियों के लिये भी एक ग्रंथ के समान है। ब्रिटिश राज में नैन सिंह रावत के कामों को काफी सराहा गया। ब्रितानी सरकार ने 1977 में बरेली के पास तीन गावों की जागीरदारी उन्हें पुरस्कार स्वरूप प्रदान की। इसके अलावा उनके कामों को देखते हुए ‘कम्पेनियन आफ द इंडियन एम्पायर’ का खिताब दिया गया। इसके अलावा भी अनेक संस्थाओं ने उनके काम को सराहा।एशिया का मानचित्र तैयार करने में उनका योगदान सर्वोपरि है।

ब्रिटिश 19वीं शताब्दी में तिब्बत का नक्शा बनाना चाहते थे, लेकिन उस समय यूरोपीय लोगों का हर जगह स्वागत नहीं हुआ करता था। ब्रिटेन के लिए हिमालय के क्षेत्रों का अन्वेषण करने वाले वह शुरुआती भारतीयों में से थे। नैन सिंह रावत ने सबसे पहले 1855-1857 में अपनी यात्रा जर्मन लोगों के साथ शुरू की थी। उन्होंने मानसरोवर और रकस ताल झील की यात्रा की। इसके बाद वे गारटोक और लद्दाख गए। तिब्बत का सर्वेक्षण करने वाले नैन सिंह रावत पहले व्यक्ति थे। तिब्बती भिक्षु के रूप में प्रसिद्ध रावत कुमाऊं क्षेत्र के अपने घर से काठमांडू, ल्हासा और तवांग तक गए। नैन सिंह रावत भौगोलिक अंवेषण में प्रशिक्षित, उच्च शिक्षित और बहादुर स्थानीय पुरुषों में से एक थे। ल्हासा के सटीक स्थान और ऊंचाई को नैन सिंह रावत ने निर्धारित किया, त्सांगपो का नक्शा बनाया और थोक जालुंग की सोने की खदानों के बारे में बताया।

ऐसे व्यक्तित्व कृतित्व बहुत कम ही होते हैं जो विषमतम स्थितियों में भी अपना विशेष स्थान बनाने में सफल हो जाते हैं। ऐसे ही एक नैन सिंह रावत थे, जिनके नयनों ने दुनिया को तिब्बत,

हिमालय, ब्रह्मपुत्र-स्वांगपो, ल्हासा और भी बहुत कुछ दिखाया… ऐसे नैन सिंह रावत अगर आज होते तो 95 साल के हो गए होते…।

 

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।