पहला तिरंगा बनाने वाले बुनकरों का सम्मान क्यों नहीं?
नई दिल्ली । आजादी के 77 वर्षों के बाद भी पहला तिरंगा बनाने वाले बुनकरों और उन्हें प्रोत्साहन देने वाले खादी भंडारों का सम्मान क्यों नहीं किया जा रहा है? यह सवाल स्वतंत्रतासेनियों की गुजरी पीढ़ियों के साथ हर देश भक्त के जेहन में वेदना के साथ उठ रहा है।
140 करोड़ देशवासियों में से शायद कुछ लोगों को छोड़ कर किसी को यह मालूम नहीं होगा कि वर्ष 1947 में आजादी की पहली सुबह पर दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले पर देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा झंडा राजस्थान के दौसा जिला के आलूदा गाँव में बना था और उसे दिल्ली लाया गया था। हालाँकि भारत सरकार की ओर से इस तथ्य की दिनांक तक अधिकृत पुष्टि नहीं की गई हैं। बताया जाता है कि आजादी के पहले तिरंगे को लहराने की तैयारी के लिए चरखा संघ के देशपाण्डे एवं जनरल टॉड को झंडा लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आजादी के साक्षी लोगों का कहना है कि इस दौरान देश के विभिन्न भागों से तीन झंडों के सेंपल लाए गये थे। एक झंडा राजस्थान के दौसा जिले के आलूदा गाँव से,दूसरा राजस्थान के ही अलवर जिले के गोविन्दगढ़ से और तीसरा एक अन्य स्थान से लाया गया था। बताया जाता है कि दौसा के आलूदा कस्बे के बुनकर चौथमल द्वारा बनाया गया झंडा पहली बार देश के प्रथम प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के रुप में लाल किले पर लहराया गया था। हालांकि इसका भी कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
खादी समिति दौसा का भी कहना है कि हालांकि आज़ादी की पहली सुबह दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किला पर फहराया जाने वाला तिरंगा झंडा का सेंपल देश के अन्य स्थानों से भी गलाया था लेकिन दौसा में बने तिरंगे को ही पहली बार ऐतिहासिक लाल क़िले से आजाद हवा में लहराने का मौका मिला था। तिरंगे को लेकर राजस्थान के दौसा जिले का नाम तभी से इतिहास और चर्चा में जुड़ा हुआ हैं। दौसा जिले के बुनकरों की झण्डा बनाने की यह कारीगरी आज भी बदस्तूर जारी है। स्वाधीनता दिवस पर देश के हर ज़िले में तिरंगा फहराया जाता है। इस मौके पर देशवासी खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं और देश की आन,बान और शान के प्रतीक तिरगें को नमन कर आजादी के अमर शहीदों का स्मरण करते हैं।
राजस्थान के दौसा जिले के हर नागरिक को भी इस दिन एक अलग ही प्रकार की अनूभुति होती हैं, क्योंकि दिल्ली के लाल किला पर पहली बार फहराए गए तिरंगे का दौसा जिले से खास जुड़ाव माना जाता है।
हमारे देश में तीन प्रमुख जगह ऐसी थी जहां तिरंगे के कपड़े का निर्माण होता आया हैं,इसमें महाराष्ट्र में नांदेड़, कर्नाटका में हुबली एवं राजस्थान में दौसा का नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं। दौसा खादी समिति तिरंगे में लगने वाले कपड़े का निर्माण करती थी और यहां से मुंबई जाने के बाद खादी डायर्स एण्ड प्रिटिंग प्रेस में इस कपड़े पर तिरंगा उकेरा जाता था।
बताते है कि आजादी से ठीक पहले अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अधिवेशन में भी पं.जवाहरलाल नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा ध्वज भी राजस्थान के अलवर जिले के नीमराना से ताल्लुक़ रखने वाली अंजु नागर के घर मेरठ (हस्तिनापुर) में सुरक्षित रखा हुआ है। नागर के मौसेरे भाई तरुण रावल के अनुसार यह झण्डा 1946 में कांग्रेस के आखिरी अधिवेशन में मेरठ में फहराया गया था। इस तिरंगे को नागर परिवार ने आज भी बहुत ही सलीके के साथ सहेज का रखा हुआ है। यह ऐतिहासिक तिरंगा 14 फिट चौड़ा और 9 फिट लंबा है।
भारतीय तिरंगे झंडे की शान निराली है। दुनिया में इसने अपनी एक अलग ही पहचान बनाई है। ओलम्पिक खेलों सहित हर क्षेत्र में अर्जित उपलब्धियों पर हमारे राष्ट्रगान की मधुर धुन के साथ बहुत ही शान से यह तिरंगा क्षितिज में फहराता है। चन्द्र मिशन के अन्तर्गत चन्द्रयान-3 की सफलता के साथ ही चन्द्रमा पर भी भारत को अपना तिरंगा शान से फहराने का गौरव मिला हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2922 से हर घर तिरंगा अभियान चलाया है । यह अभियान 22 जुलाई, 2022 को भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने के साथ शुरू किया गया था । इस अभियान से करोड़ों लोग जुड़ें हैं।
केन्द्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के अनुसार वर्ष 2022 में 23 करोड़ से अधिक घरों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था और 6 करोड़ लोगों ने ध्वज के साथ अपनी सेल्फी हर घर तिरंगा डॉट कॉम पर अपलोड की थी । वर्ष 2023 में, हर घर तिरंगा अभियान के अन्तर्गत वर्ष 2023 में, 10 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा अपनी सेल्फी अपलोड की गईं थी।।देश में ही नहीं विदेशों में भी इस अभियान को ज़बरदस्त समर्थन मिला और दुनिया ने विश्व की प्रसिद्ध इमारतों को भी तिरंगे की आकर्षक रोशनी में नहाते हुए देखा हैं। प्रवासी भारतीयों में भी हर घर तिरंगा अभियान के प्रति बड़ा उत्साह देखा गया हैं।
पूरा देश गुरुवार को आजादी की 78वें स्वाधीनता दिवस का जश्न मनायेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नई दिल्ली के ऐतिहासिक लाल क़िले की प्राचीर से तिरंगा फहराने के बाद राष्ट्र को सम्बोधित करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने आजादी की 75वीं वर्षगाँठ को अमृत महोत्सव का नाम दिया है। उन्होंने ग़ुलामी की निशानियों से ऊपर आत्म निर्भर भारत के प्रतीक के रूप में नई दिल्ली में महत्वाकांक्षी सेण्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को भी हाथ में लेकर नए कर्तव्य पथ और संसद भवन का शुभारम्भ कराया है।स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने राष्ट्र को संबोधित किया है।
आजादी के इस अमृत लाल में पहला तिरंगा बनाने वाले बुनकरों का सम्मान होना चाहिए ऐसा मानने वाले राष्ट्र भक्त भारत सरकार की ओर टकटकी लगाए बैठे है। देखना है केंद्र सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है?
गोपेंद्र नाथ भट्ट
गोपेंद्र नाथ भट्ट सम-सामयिक विषयों के लेखक और सूचना एवं जनसंपर्क के क्षेत्र में एक जाने पहचाने नाम और लेखनी के सशक्त हस्ताक्षर है ।
भट्ट राजस्थान के कई मुख्य मंत्रियों जिसमें पूर्व उप राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, वर्तमान मुख्य मंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्य मंत्री वसुन्धरा राजे और दिवंगत मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी सहित प्रदेश के दस-ग्यारह मुख्यमंत्रियों के पीआरओ और प्रेस अटेची रहे है ।भट्ट के देश-विदेश और प्रदेश के सभी जाने माने पत्रकारों और अन्य सभी मीडिया जनों से हमेशा अत्यन्त मधुर सम्बन्ध रहें है।अपनी कार्य कुशलता और व्यवहार से भट्ट ने एक श्रेष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी के रूप में अपनी छाप छोड़ी । उन्हें पत्रकारिता और जनसम्पर्क के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए कई प्रतिष्ठित अवार्ड भी मिलें हैं।
भट्ट ने सरकारी सेवा से निवृत होने के बाद भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री महोदय के सीनियर मीडिया कसलटेंट के रूप में अपनी सेवाएं दी। साथ ही वे भारतीय उद्यमिता संस्थान,अहमदाबाद के अधिशासी अधिकारी भी रहें। वर्तमान में भट्ट कई जाने माने प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक संस्थानों के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी की कई सामाजिक-सांस्कृतिक एवं समाजसेवी और प्रवासियों से संबद्ध संस्थाओं से भी सक्रिय रूप से जुड़े हुए है ।
भट्ट सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग, राजस्थान के वरिष्ठतम अधिकारी रहे है तथा प्रदेश के विभिन्न जिलों और संभाग में सेवाएं देने के साथ ही एक मात्र ऐसे अधिकारी रहे है जिन्होंने लगातार 25 वर्षों तक राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में भिन्न-भिन्न दलों की सरकारों के मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया । साथ ही पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल सहित कई राज्यपालों और देश प्रदेश के अनेक लब्ध-प्रतिष्ठित प्रशासनिक अधिकारियों को भी अपनी सेवाएं दी।
दिल्ली पद स्थापन के दौरान भट्ट राजस्थान संवाद के अधिशासी निदेशक भी रहें।इसके अलावा वे दिल्ली में राज्यों के सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारियों की संस्था “सिप्रा” के दो बार निर्विरोध अध्यक्ष और पब्लिक रिलेशंस सोसायटी ओफ़ इंडिया (पीआरएसआई ) के विभिन्न पदों पर भी रहे।
भट्ट का जन्म और शिक्षा दीक्षा दक्षिणी राजस्थान के ऐतिहासिक नगर डूंगरपुर में हुई । उनके पिता भट्ट कांतिनाथ शर्मा बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से स्नातक और संस्कृत,हिन्दी और अंग्रेज़ी के प्रकाण्ड विद्वान थे। वे देश के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवती राजाजी राज गोपालाचारी के सहयोगी एवं भाषण अनुवादक रहने के अलावा राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डूंगरपुर महारावल लक्ष्मण सिंह के जीवन पर्यन्त राजनीतिक सचिव रहें । साथ ही तत्कानीन स्वतंत्र पार्टी की राजस्थान प्रदेश इकाई के महामंत्री तथा जयपुर की महारानी गायत्री देवी के राजनैतिक गुरु भी रहें । उन्हें गायत्री देवी को राजनीति में लाने का श्रेय भी मिला ।भट्ट अंतर राष्ट्रीय न्यायालय हेग के अध्यक्ष डॉ नागेन्द्र सिंह के विश्वस्त सहयोगी और भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष राजसिंह डूंगरपर और उनके सभी भाई बहनों के प्रारम्भिक शिक्षक भी रहें।उन्हें राज परिवार के सदस्य स्नेहपूर्वक मास्टर साहब पुकारते थे।