चंपा पर भंवरे क्यों नहीं आते ?

क्यों शंकर भगवान को चंपा का फूल नहीं चढ़ाते ?

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चंपा पर भंवरे क्यों नहीं आते ?

चंपा के फूल को टेंपल फ्लॉवर (फ्रेंगिपनी या प्लुमेरिया ) भी कहा जाता है । इसे मंदिरों में लगाया जाता है क्योंकि यह मंदिर परिसर और आश्रम के वातावरण को शुद्ध करता है, सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, फूलों की सुगंध से मन प्रफुल्लित हो जाता है । इंडोनेशिया के बाली प्रवास के समय एरोड्रम पर हमारे ग्रुप का स्वागत चंपा फूलों से बनी फूलमाला से किया गया था। वहां इसके लाल सफेद एवं पीले फूलों के पेड़ सड़कों एवं घरों में बहुतायत में देखें थे। अब तो हमारे यहां भी डिवाइडर पर लगाने का चलन हो गया हैं। रूप रंग सुवास आकार में भिन्नता लिए इसकी लगभग 200 से अधिक अनेक किस्म सुगंधित एवं बगैर सुगंध की आती है ।

*चंपा पर भंवरे क्यों नहीं आते ?*

चंपा के सौंदर्य व सुवास पर भंवरे मंडराये नहीं, यह चंपा के फूल पर ही संभव है। इस संदर्भ में लोकोक्ति है कि –

‘चम्पा तुझमें तीन गुण- रंग रूप और वास,

अवगुण तुझमें एक ही भंवर न आएं पास।’

ऐसा इसलिए कहते है कि –

रूप तेज तो राधिके, अरु भंवर कृष्ण को दास,

इस मर्यादा के लिए भंवर न आएं पास।।

मान्यता है कि चम्पा के फूल का वर्ण राधाजी जैसा है,भंवरा कृष्ण वर्ण का है और अपने को कृष्ण जी का पुत्र मानता है । चम्पा को राधिका, कृष्ण को भंवरा और मधुमक्खियों को गोप और गोपिकाओं के रूप में माना गया है। राधिका कृष्ण की सखी होने से मातृ भाव के कारण भंवरा तथा मधुमक्खियां चम्पा पर कभी नहीं बैठते हैं।

 

*चंपा केतकी (केवड़ा ) व तुलसी पत्र शिव पूजा में क्यों नहीं चढ़ाते ?*

भगवान शंकर का प्रिय फूल होने पर भी उन्हें नहीं चढ़ाया जाता एवं कामदेव के प्रिय पांच पुष्पों में एक है। अनेक पौराणिक कथाएं अचम्भित कर देती है। ऐसी ही एक कथा से ज्ञात होता है कि भगवान शंकर को चंपा का फूल है तो बहुत पसंद .. फिर भी इसे शंकर भगवान पर नहीं चढ़ाया जाता। कितनी अजीब बात है न ! भगवान भी अपनी मनपसंद का नहीं कर पाते .. भगवान की पसंद के बावजूद भक्तगण सहज सुलभ चंपा फूल को शंकर भगवान को अर्पित नहीं करते।

नारायण .. नारायण की पुकार लगाने वाले नारद मुनि जी के श्राप के कारण ऐसा होता है। पौराणिक कथानुसार एक बार नारद मुनि को पता चला की एक ब्राह्मण ने अपनी बुरी इच्छाओं के लिए चंपा के फूल तोड़े और जब नारद मुनि ने वृक्ष से पूछा कि क्या किसी ने उसके फूलों को तोड़ा है तो पेड़ ने इससे इनकार कर दिया। लेकिन जब नारद मुनि ने पास ही के शिव मंदिर में शिवलिंग को चंपा के फूलों से ढ़ंका पाया तो उन्हें सारी सच्चाई समझ में आ गई और उन्हें यह बात समझते देर नहीं लगी कि ब्राह्मण ने भगवान शिव की यहां पर पूजा की और भगवान की कृपा से वह ब्राह्मण एक शक्तिशाली राजा बन गया, जिसने गरीबों को परेशान करना शुरू कर दिया था और भगवान शिव ने उस ब्राह्मण की मुराद भी पूरी की।

नारद मुनि ने भगवान से उस ब्राह्मण की मदद करने का कारण पूछा तो भगवान शिव ने कहा कि जो चंपा के फूल से मेरी पूजा करता था, उसे वो मना नहीं कर पाए। इसके बाद नारद मुनि वापस आए और चंपा के वृक्ष को श्राप दे दिया कि उसके फूल कभी भी भगवान शिव की पूजा में स्वीकार नहीं किए जाएंगे, क्योंकि वृक्ष ने उनसे झूठ बोला और उन्हें गुमराह करने की भी कोशिश की। जिसके बाद आज तक भगवान शिव को अपने पसंदीदा फूल से दूर रहना पड़ता है।

शिवपुराण के अनुसार केतकी के फूलों से ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर को झूठी गवाही दिलवाईं थी इसलिए केतकी के फूल भी भगवान शंकर से श्रापित होने के कारण नहीं चढ़ाते है।

शिवजी की पूजा में तुलसी पत्र भी नहीं चढ़ाया जाता है, क्योंकि वे भगवान श्रीहरि की पटरानी हैं और तुलसी जी ने अपनी तपस्या से भगवान श्रीहरि को पति रूप में प्राप्त किया था ।

एक अन्य कथा के अनुसार, चंपा का फूल भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी का पसंदीदा फूल है। इसलिए, शिवजी की पूजा में चंपा का फूल नहीं चढ़ाया जाता है, ताकि लक्ष्मी माता की भक्ति में कोई बाधा न आए।

इस तरह की विभिन्न पौराणिक कथाएं बताती है कि भगवान शिव को अपने पसंदीदा फूल से दूर रहना पड़ता है, एवं भंवरें चंपा पर नहीं आते।

*महेश बंसल, इंदौर*