Why I Killed Gandhi : Godse के अदालत में दिए बयान पर बनी फिल्म 

30 जनवरी को OTT पर रिलीज होगी 

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Why I Killed Gandhi

Why I Killed Gandhi : Godse के अदालत में दिए बयान पर बनी फिल्म 

मानसिंह की शार्ट फिल्म ‘व्हाई आई किल्ड गांधी’ (मैंने गांधी को क्यों मारा) गांधी के मर्डर ट्रायल के दौरान अदालत में नाथूराम गोडसे के कानूनी बयान को पर्दे पर उतारा गया है। नाथूराम गोडसे ने जस्टिस आत्मचरण की अनुमति से कोर्ट के सामने अपना यह बयान पढ़ा था। अपना बयान पढ़ने में नाथूराम गोडसे को लगभग साढ़े चार घंटे लगे थे।

इस बयान को बाद में एक किताब की तरह प्रकाशित किया गया, जिसका शीर्षक था ‘मैंने गांधी को क्यों मारा’ जो आसानी से उपलब्ध है। आज 15 नवंबर के दिन ही 1949 में नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को अंबाला जेल में फांसी दी गई थी।

Why I Killed Gandhi : Godse

कल्याणी मान सिंह द्वारा निर्मित और अशोक त्यागी द्वारा निर्देशित ‘व्हाई आई किल्ड गांधी’ 30 जनवरी 2022 को रिलीज होगी। यह फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज के लिए बनाई गई है। फिल्म निर्माता मान सिंह ने ‘मीडियावाला’ को बताया कि इस फिल्म का चयन ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल नोएडा (GFFN- 2021) और राजा बुंदेला द्वारा आयोजित ‘खजुराहो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ (KIFF-2021) के लिए हुआ है, जिसे अगले महीने दिसंबर में प्रदर्शित किया जाएगा।

Why I Killed Gandhi : Godse के अदालत में दिए बयान पर बनी फिल्म 

 इस शार्ट फिल्म के निर्माता मानसिंह का कहना है कि सभी जानते है कि महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी। लेकिन, किसी को नहीं पता कि उसे इतना बड़ा कदम उठाने के लिए किसने प्रेरित किया था! एक धारणा बनाई गई है कि नाथूराम गोडसे एक आतंकवादी या मानसिक रूप से असंतुलित होने के साथ हिंदू चरमपंथी था।

मान सिंह का कहना है कि जब उनका बयान पढ़ते हैं, तो पता चलता है कि नाथूराम पुणे के एक स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने वहाँ से ‘अग्रणी’ नाम के अखबार का संपादन किया था।

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1964 में भारत सरकार ने न्यायमूर्ति जेएल कपूर के अधिकार क्षेत्र में व्यक्ति आयोग की स्थापना की, जो गांधीजी की हत्या के कारणों की जांच करने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश थे। न्यायमूर्ति जेएल कपूर ने 1970 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस शार्ट फिल्म के शुरुआती 10 मिनट में उसी रिपोर्ट के चैप्टर-12 से चयनित अंशों को लिया गया है।

फिल्म के शेष 35 मिनट गोडसे के अदालत में दिए उसी बयान को फिल्माया गया है। मान सिंह के मुताबिक, फिल्म में बोला गया हर शब्द कानूनी दस्तावेजों से लिए गए शब्दों का मात्र अनुवाद है। नाथूराम गोडसे को फांसी दिए जाने के बाद से फिल्म जो खुलासा करती है, उसे दबा दिया गया था। ये 20वीं शताब्दी के भारत के इतिहास को देखने के लिए एक मौलिक वैकल्पिक परिप्रेक्ष्य देता है।