गडकरी का मन बेचैन क्यों है (Why Is Gadkari Restless)?

991
गडकरी का मन बेचैन क्यों है (Why Is Gadkari Restless)?
पूरा जीवन राजनीति को समर्पित करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी का मन आखिर बेचैन क्यों है? गडकरी को केंद्र में आठ साल तक लगातार मंत्री रहने के बाद राजनीति में घुटन हो रही है। उन्हें यह लग रहा है कि सत्ता में वापस लौटना ही राजनीति का एकमात्र लक्ष्य रह गया है। तो क्या राजनीति समाजसेवा और लोककल्याण के अपने वास्तविक लक्ष्य से पूरी तरह भटक गई है? यह सवाल तब और ज्यादा लाजिमी हैं, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की छवि को धूमिल करने और गोडसे के विचारों में तर्कसंगतता खोजने के प्रयास पूरे चरम पर हों। ऐसे में गडकरी गांधी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि आखिर राजनीति शब्द का अर्थ क्या है?
क्या यह समाज, देश के कल्याण के लिए है या सरकार में बने रहने के बारे में है? महात्मा गांधी के युग से ही राजनीति सामाजिक आंदोलन का हिस्सा रही है। लेकिन बाद में इसने राष्ट्र और विकास के लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित किया है। फिर गडकरी को इतनी बेचैनी क्यों है कि वह कह रहे हैं कि कि उन्हें कभी-कभी राजनीति छोड़ने का मन करता है। क्योंकि समाज के लिए और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। आजकल राजनीति सामाजिक परिवर्तन और विकास का वाहन बनने के बजाय सत्ता में बने रहने का साधन मात्र बन कर रह गई है। 21वीं सदी में जब भारत विश्व में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रहा हो, तब उस परिदृश्य को करीब से देखने वाले गंभीर, संवेदनशील और विकास के पर्याय गडकरी की यह बेचैनी बहुत मायने रखती है।
जब गडकरी अपनी वेदना को छुपा नहीं पा रहे हैं, तब वह भी बहुत कुछ है जो वह सीधे-सीधे शब्दों में बयां नहीं कर पा रहे हैं। यह तो उन्होंने कह ही दिया कि सत्ता में बने रहने का माध्यम बन गई है राजनीति, यानि सत्ता में बने रहने के लिए नेताओं को बहुत समझौते करने पड़ते हैं। यह समझौते राजनेता को समाजसेवा के उस लक्ष्य से पूरी तरह भटकने को मजबूर कर रहे हैं, जिनका मानस बनाकर उसने राजनीति की राह पर कदम रखा था। तो बहुत से दूसरे वह काम करने को राजनेता मजबूर है, जो यदि पारदर्शी तरीके से मतदाताओं के सामने आ जाएं तो शायद राजनेता की छवि पूरी तरह से तार-तार होकर विकृत नजर आने लगे।
गडकरी ने अपने उस भाषण में समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस का भी जिक्र किया। उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीस की सादगीपूर्ण जीवन शैली के लिए उनकी प्रशंसा की। समाजवादी नेता की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा क्योंकि उन्होंने कभी भी सत्ता की परवाह नहीं की। उन्होंने एक प्रेरक जीवन शैली का नेतृत्व किया। आज हमें उनके प्रेरक जीवन शैली से प्रेरणा लेनी चाहिए। मुझे भी इससे नफरत है कि जब लोग मेरे लिए बड़े-बड़े गुलदस्ते लाते हैं या मेरे पोस्टर लगाते हैं। यानि कि यूं कहें कि गडकरी को सत्ता में नेताओं की वह भूमिका कतई रास नहीं आ रही है, जो सहजता, सरलता से परे धनबली, बाहुबली और शक्ति के महत्वपूर्ण केंद्र की तरह नजर आने लगी है। जिसमें उनकी मंशा के अनुरूप सहजता-सरलता का अब कोई स्थान नहीं रहा। जिसमें प्रेरणा लेने जैसा कुछ नहीं बचा है।
सामान्य तौर पर नेता के तौर पर गडकरी की बेचैनी को समझा जा सकता है। उनका मानना है कि राजनीति सामाजिक-आर्थिक सुधार का एक सच्चा साधन है। इसलिए नेताओं को समाज में शिक्षा, कला आदि के विकास के लिए काम करना चाहिए। पर ताज्जुब की बात यह है कि गडकरी को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संगठन में अलग-अलग दायित्व संभालने के साथ महाराष्ट्र में मंत्री और केंद्रीय मंत्री रहने के बाद 65 साल की उम्र में यह अद्भुत ज्ञान प्राप्त हुआ है। जब वह युवा नेताओं को फॉर्चूनर, मर्सिडीज और महंगी गाड़ियों में फर्राटा मारते हुए देखते होंगे तो शायद उन्हें यह बेचैनी होती होगी कि राजनीति अपनी दिशा से भटक तो नहीं गई है।
हो सकता है कि उनकी बेचैनी महाराष्ट्र के राजनैतिक घटनाक्रमों को लेकर भी हो। शायद इसीलिए उनके मन में आया हो कि आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि आखिर राजनीति शब्द का अर्थ क्या है? क्या यह समाज, देश के कल्याण के लिए है या सरकार में बने रहने के बारे में है। पर गडकरी की बेचैनी समझने की जरूरत है, क्योंकि वास्तविक तौर पर देखा जाए तो वह भाजपा के उन वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने अटल-आडवाणी का नेतृत्व भी उतने करीब से देखा है जितना कि मोदी सरकार में वह सक्रिय भूमिका में रहते हुए बेचैनी बयां करने को मजबूर हैं।