गणपति क्यों मोरया हैं-गणपति बप्पा “मोरया” क्यों कहते हैं..! आइए जानते हैं ?
महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के दौरान सारा माहौल गणपति बप्पा मोरया के नारे से गूंज उठता है, लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा, कि गणपति या गणेश को मोरया क्यों कहा जाता है? इस सवाल का जवाब पुणे शहर के औद्योगिक केंद्र पिंपरी चिंचवड में है, जहां मोरया गोस्वामी का मंदिर है। 13वीं सदी में मोरया गोस्वामी गणपत्य संप्रदाय या हिंदू धर्म के संत हुआ करते थे। यहां सदियों से आने वाले श्रद्धालू संप्रदाय की देवी और संत के सम्मान में गणपति बप्पा मोरया गाते थे। समय के साथ ये लोकप्रिय संस्कृति औऱ शब्दकोष का हिस्सा बन गया।
गणपत्य संप्रदाय हिंदू धर्म के पांच प्रमुख संप्रदायों में से एक है। अन्य संप्रदाय हैं-वैष्णव संप्रदाय (विष्णु भगवान के उपासक), शैव संप्रदाय (भगवान शिव के उपासक), शाक्त संप्रदाय (शक्ति अथवा देवी के उपासक) औऱ सौर संप्रदाय (सूर्य देवता के उपासक)। गणपति का शाब्दिक अर्थ गणों का भगवान होता है। हालांकि गणपति का आरंभिक उल्लेख ऋग्वेद औऱ ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है, लेकिन उपासना के रुप में ये संप्रदाय पांचवीं शताब्दी के आसपास ही बना।
शैव, शाक्ति-संप्रादाय और वैष्णव संप्रदाय जहां बहुत लोकप्रिय हैं, वहीं गणपत्य संप्रदाय के बारे में लोग इतना नहीं जानते। गणपत्य संप्रदाय के अनुयायियों का विश्वास था, कि गणेश सर्वोच्च भगवान थे। माना जाता है, कि इस संप्रदाय का उदय छठी शताब्दी के आसपास हुआ था और दसवीं सदी में ये अपनी लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गया था। तेरहवीं सदी के धार्मिक ग्रंथ शंकर दिग्विजय (आदि शंकराचार्य की जीवनी) में हमें छह रुपों में गणेश की उपासना का उल्लेख मिलता है। उपासना के लिए ख़ुद उनके मंत्र होते थे। ये छह रुप है-महागणपति, हरिद्रा गणपति, उच्छिष्ट गणपति, नवनीत गणपति, स्वर्ण गणपति और संतान गणपति। इन सभी की उपासना अलग अलग तरीके से होती थी।
भक्त मोरया गोस्वामी कर्नाटक के एक छोटे से गांव से थे, वे गणेश जी के परम भक्त थे, हर जीव में गणेश जी को ही देखते थे। किसी ने घर पर चूहा मार बाहर फेक दिया तो वो उसका अंतिम संस्कार कर दिया करते थे, कहते ये गणेश जी का वाहन है।
कोई स्वान मरा मिलता उसका भी अंतिम संस्कार कर देते, कोई चिड़िया, कोई भी जीव मृत मिलता तो उनका अंतिम संस्कार कर देते।
संत जी अपनी गणेश भक्ति में ही मगन रहते, सभी जीवो को अत्यन्त प्रेम करते थे जीव भी उनसे उतना ही प्रेम करते थे, वैसे भी जब प्रभु से प्रेम होता है न तब सब जीवो से प्रेम हो ही जाता है।
कुछ समय बाद उन्होंने कर्नाटक छोड़ दिया और महाराष्ट्र आ गए। यहां भी भक्त मोरया गणेश जी की वही नित्य की दिनचर्या, वहीं सेवा, वहीं कर्म। जो जीव मृत मिले उसका अंतिम संस्कार कर देना, श्रीगणेश का मनन, श्रीगणेश से प्रीति भक्ति।
अब यहां के गांव वाले भी उनकी इस कर्म से चिढ़ाने लगे, उन्होंने संत जी को गांव से निकाल दिया, गांव से उनको गणेश जी हाथ पकड़ ले जाने लगे तो संत जी ने भगवान से कहा, भगवन आप यही रहे, यही स्थापित हो जाइए कुछ भला हो गांव वालो का, तो गणेश जी ने उनकी बात मान अपने पोते आमोद से कहां की आप संत जी के संग रहे, तब आमोद भक्त मोरया गोस्वामी जी का हाथ पकड़े चलते रहे। ऐसे वे आठ गांव से गांव वालो द्वारा निकाले गए, संत मोरया गोस्वामी जी, और वही आठ गांवों में अष्ट विनायक के रूप में स्थापित है गणेश जी।
अन्तिम समय में गणेशजी ने भक्त मोरया को दर्शन दिए और उनसे पूछा आप क्या चाहते हो, बोलिए जो इच्छा हो वो पूर्ण होगी, तो भक्त जी ने कहा प्रभु मेरा नाम आप के नाम के संग जुड़ जाए बस…
फिर इन्होंने जीवित समाधि ले ली। तभी से कहते हैं, गणपति बप्पा मोरया… गणपति बप्पा मोरया कहने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं।
गणपति बप्पा मोरया, मंगळमूर्ती मोरया।
लेखिका मणिमाला शर्मा की सीता सेन के माध्यम से प्रस्तुति