Why Politicians’ Sons Behave Like Rulers: पापा का भाषण डेमोक्रेसी पर, बेटे राजे रजवाड़े संस्कृति के नुमाइंदे

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Why Politicians’ Sons Behave Like Rulers: पापा का भाषण डेमोक्रेसी पर, बेटे राजे रजवाड़े संस्कृति के नुमाइंदे

रंजन श्रीवास्तव की खास खबर 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कार पर लाल और नीली बत्ती वाले वीआईपी कल्चर के ख़िलाफ़ सख्त संदेश दे चुके हैं। अब तो सरकारी अधिकारी भी और यहां तक कि मुख्यमंत्री और मंत्री भी अपनी सरकारी गाड़ियों पर किसी भी तरह की बत्ती का प्रयोग नहीं करते,पर इंदौर के एक विधायक पुत्र ने अपने पापा और अपना रसूख दिखाते हुए ना सिर्फ लाल बत्ती लगा हुआ कार का प्रयोग किया बल्कि अपने साथियों के साथ देवास टेकरी के प्रसिद्ध मन्दिर में जिस तरह की दादागिरी दिखाई, मंदिर को अर्धरात्रि के बाद बंद होने के बाद भी खुलवाया और इस दादागिरी के दौरान पुजारी की पिटाई की गई वह अखबारों का हेडलाइन्स बन चुकी है। स्थानीय पुलिस का रवैया भी कम शर्मनाक नहीं रहा।

चूँकि मामला सत्ता पक्ष से इंदौर के प्रभावशाली विधायक गोलू शुक्ला के पुत्र रुद्राक्ष शुक्ला का था इसलिए पीड़ित पुजारी के साथ पुलिस थाने में ऐसा व्यवहार किया गया जैसे वह आरोपी हो। यही नहीं आरोपियों को बचाने के लिए पुलिस ने दोनों पक्षों के बीच सुलह करवाने के लिए भी अपने अधिकार का दुरुपयोग किया। होना तो यह चाहिए था कि प्रधानमंत्री के वीआईपी कल्चर के खिलाफ दिए गए सख्त संदेश को अमली जामा पहनाते हुए सरकार और भाजपा नेतृत्व विधायक पुत्र और उसके साथियों के ख़िलाफ़ पुलिस थाने में भारतीय नागरिक संहिता के उपयुक्त धाराओं में तुरंत प्राथमिकी दर्ज करवाना सुनिश्चित करते। पर, ना तो सरकार और भाजपा नेतृत्व की ऐसी कोई दृढ़ इच्छाशक्ति दिखी और ना ही पुलिस ने अपने स्तर पर आरोपियों के ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई करने का कोई जोखिम मोल लिया।

जाहिर है स्थानीय प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी सत्ता पक्ष के प्रभावशाली विधायक के पुत्र के ख़िलाफ़ कार्रवाई ना करके अपने लिए किसी अप्रिय स्थिति से बचना चाहते थे। पर शासन और भाजपा नेतृत्व तुरंत सख़्त कार्रवाई का संदेश नहीं देकर और सख़्त कार्रवाई को सुनिश्चित नहीं करके प्रधानमंत्री के वीआईपी कल्चर के ख़िलाफ़ दिए गए सख्त संदेश को पूरे प्रदेश में प्रभावी तरीक़े से पहुँचाने से चूक गया।

शायद शासन और भाजपा नेतृत्व यह भूल गया कि इंदौर के तत्कालीन विधायक आकाश विजयवर्गीय से संबंधित बल्ला कांड से प्रधानमंत्री बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने अपनी नाराज़गी आकाश विजयवर्गीय के पिता तथा प्रभावशाली भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय से ना सिर्फ़ एक मीटिंग में ज़ाहिर की थी बल्कि उनकी नाराज़गी के बाद आकाश विजयवर्गीय को अगले चुनाव यानि कि 2023 के विधान सभा चुनाव में पार्टी टिकट से भी हाथ धोना पड़ा। उनकी जगह कैलाश विजयवर्गीय को टिकट दिया गया और वे चुनाव जीतकर वर्तमान में मंत्री भी हैं। प्रधानमंत्री की नाराज़गी की क़ीमत भोपाल की तत्कालीन सांसद प्रज्ञा ठाकुर को भी चुकाना पड़ा था।

प्रज्ञा ठाकुर ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त के रूप में महिमामंडन करके जिस तरह से पार्टी के लिए पूरे देश में असहज स्थिति पैदा की उससे प्रधानमंत्री को यह बोलना पड़ा कि वो प्रज्ञा ठाकुर को कभी भी दिल से माफ नहीं कर पाएंगे। उनके बयान पर बहुत सारे मीम्स भी बने। पर सत्य यह है कि प्रज्ञा ठाकुर को अगले लोक सभा चुनाव यानि कि 2024 के लोक सभा चुनाव में पार्टी टिकट नहीं मिला। आकाश विजयवर्गीय और प्रज्ञा ठाकुर दोनों के उदाहरण किसी अन्य प्रदेश के नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के ही हैं। आकाश विजयवर्गीय अब भूतपूर्व विधायक हैं और प्रज्ञा ठाकुर भूतपूर्व सांसद।

फिर यह सवाल उठता है कि क्या मध्य प्रदेश में ही सत्ता पक्ष प्रधानमंत्री के संदेश को सही तरीके से समझने में फेल हो रहा है या राजनीति में सब चलता है कि तर्ज पर प्रधानमंत्री के संदेश को अमली जामा नहीं पहनाना चाहता। यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि भाजपा नेताओं के पुत्र या भाजपा नेताओं के दबंगई के किस्से लगातार सामने आते रहते हैं। बताया जाता है कि रुद्राक्ष शुक्ला इस तरह की दादागिरी उज्जैन के महाकाल मंदिर में भी पहले देखी जा चुकी है।

यह नहीं माना जा सकता कि विधायक पुत्र ने अपनी गाड़ी पर लालबत्ती पहले नहीं लगाया होगा और इस बात की तथा विधायक पुत्र के कथित अन्य दादागिरी की जानकारी भाजपा के स्थानीय नेतृत्व को नहीं रहा होगा। कुछ दिनों पूर्व इंदौर में ही एक भाजपा पार्षद के गुर्गों ने एक अन्य भाजपा नेता के घर में घुसकर उनके पुत्र की पिटाई की और नंगा कर दिया। पूरे देश में इसपर समाचार छपा। भोपाल में एक मंत्री पुत्र ने एक रेस्टोरेंट संचालक की पिटाई कर दी। जब पुलिस ने अपना रूप दिखाया तो मंत्री महोदय थाने में जाकर पुलिस वालों के खिलाफ ही अपना गुस्सा दिखाया और इसकी परिणति हुई चार पुलिसकर्मियों के निलंबन की। ऐसे कई किस्से हैं। सीधी का पेशाब कांड कौन भूल सकता है जब भाजपा के एक नेता ने एक आदिवासी के सर पर पेशाब कर दी थी।

जरूरत है मध्य प्रदेश में सरकार और भाजपा नेतृत्व को सत्ता पक्ष के नेताओं को यह बताने कि वे तथा उनके परिवार के लोगों को जो सम्मान मिला है वह लोकतंत्र के कारण है और वे राजे रजवाड़े संस्कृति के नुमाइंदे नहीं हैं। देवास तथा अन्य कई घटनाओं से मध्य प्रदेश की किरकिरी पूरे देश में हो चुकी है। क्या मध्य प्रदेश में सत्ता पक्ष का शीर्ष नेतृत्व इन घटनाओं का संज्ञान लेकर अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं का विशेष प्रशिक्षण राज्य स्तर से लेकर वार्ड तथा मंडल स्तर तक करेगा जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृति रोकी जा सके और मध्य प्रदेश के भाजपा संगठन जिसकी प्रशंसा पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी करता रहा है, उसकी साख को फिर से चोट ना पहुंचे?