

Why Silent Attacks Increased : कोरोना के बाद साइलेंट अटैक क्यों बढे, IIT इंदौर की स्टडी में खुलासा हुआ!
Indore : इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) इंदौर ने देश के प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ मिलकर कोविड-19 पर एक विस्तृत और महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। यह शोध प्रतिष्ठित ‘जर्नल ऑफ प्रोटिओम रिसर्च’ में प्रकाशित हुआ। इसमें यह तथ्य सामने आया कि कोरोना वायरस के अलग-अलग विभिन्न वैरिएंट्स ने शरीर पर अलग-अलग प्रभाव डाले और बीमारी की गंभीरता को भी अलग रूप में बढ़ाया।
इस वैज्ञानिक विश्लेषण का नेतृत्व आईआईटी इंदौर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ हेमचंद्र झा और किम्स भुवनेश्वर के डॉ निर्मल कुमार मोहकुद ने किया। यह रिसर्च भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और IIT इंदौर के सहयोग से किया गया। IIT इंदौर के अनुसार, यह रिसर्च 2021 में शुरू हुई थी और लगभग चार साल तक चली।
डॉ हेमचंद्र झा के अनुसार, इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि कोरोना के विभिन्न वैरिएंट्स, विशेष रूप से डेल्टा, ने शरीर के मेटाबॉलिज्म और हार्मोनल प्रक्रियाओं में बड़ी रुकावट डाली। इस वजह से मरीजों में बीमारी की जटिलता और गंभीरता ज्यादा देखने को मिली। यह महत्वपूर्ण शोध, कोरोना के निदान और उपचार की दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है।
कोरोना वायरस के रूपों का वैज्ञानिक अध्ययन
रिसर्च टीम ने कोरोना वायरस के पांच मुख्य वैरिएंट्स वाइल्ड टाइप (WT), अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा के असर का वैज्ञानिक विश्लेषण किया। इसमें यह जाना गया कि इन वैरिएंट्स ने इंसानी शरीर में किस तरह के रासायनिक (बायोकेमिकल), खून संबंधी (हेमेटोलॉजिकल), वसा से जुड़े (लिपिडोमिक) और ऊर्जा चक्र से जुड़े (मेटाबॉलिक) बदलाव किए।
इसके लिए भारत में कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान संक्रमित 3,134 मरीजों का मेडिकल डेटा लिया गया। शोधकर्ताओं ने इस डेटा पर मशीन लर्निंग तकनीक से गहन अध्ययन कर 9 अहम बायोमार्कर्स (जैविक संकेतकों) की पहचान की, जो किसी मरीज की हालत की गंभीरता से सीधे जुड़े पाए गए :
– सी-रिएक्टिव प्रोटीन (CRP) : शरीर में सूजन का संकेत देता है।
– डी-डाइमर : खून में थक्के बनने की संभावना बताता है।
– फेरिटिन : शरीर में आयरन स्टोरेज की स्थिति दर्शाता है।
– न्यूट्रोफिल्स : संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं।
– डब्ल्यूबीसी काउंट : कुल सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या।
– लिम्फोसाइट्स : शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ी कोशिकाएं।
– यूरिया : किडनी के कार्य को मापने वाला तत्व।
– क्रिएटिन : किडनी और मांसपेशियों की स्थिति दर्शाता है।
– लैक्टेट डिहाइड्रोजनेज (LDH) : ऊतकों की क्षति या तनाव का संकेत देता है।
इन सभी संकेतकों के स्तर में आए बदलावों से यह समझने में मदद मिली कि किस वैरिएंट ने मरीजों को कितना गंभीर रूप से प्रभावित किया।
फेफड़ों, आंतों की कोशिकाओं पर रिसर्च
मरीजों के डेटा का विश्लेषण करने के अलावा, वैज्ञानिकों ने यह भी अध्ययन किया कि जब इंसानी फेफड़े और आंत की कोशिकाएं इन वैरिएंट्स के स्पाइक प्रोटीन के संपर्क में आती हैं, तो शरीर पर क्या असर होता है। रिपोर्ट में सबसे खतरनाक असर डेल्टा वैरिएंट का देखा गया। इसने शरीर के रासायनिक संतुलन (बायोकेमिकल बैलेंस) को सबसे अधिक प्रभावित किया। विशेष रूप से कैटेकोल माइन और थायराइड हार्मोन से जुड़े रास्तों में बड़ी गड़बड़ियां मिलीं। इसका सीधा असर दिल और थायराइड की सेहत पर पड़ा।
साइलेंट हार्ट फेल्योर और थायराइड डिसऑर्डर
डेल्टा वेरिएंट की वजह से कई मरीजों में साइलेंट हार्ट फेल्योर, थायराइड विकार, और यूरिया व अमीनो एसिड मेटाबॉलिज्म में खराबी जैसे लक्षण देखने को मिले। इस शोध में मेटा-एनालिसिस भी किया गया, जिससे इन जटिलताओं की पुष्टि हुई।
यह रिसर्च केवल डेटा विश्लेषण तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसमें मल्टी-ऑमिक्स और रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी मॉडर्न तकनीकों का भी उपयोग किया गया। यह काम IIT इंदौर में प्रोफेसर राजेश कुमार की टीम द्वारा किया गया। वहीं, क्लीनिकल डेटा का विश्लेषण IIIT इलाहाबाद की प्रोफेसर सोनाली अग्रवाल के मार्गदर्शन में हुआ।
IIT इंदौर के डायरेक्टर प्रो सुहास एस जोशी ने कहा कि यह रिसर्च न केवल संस्थान की शोध क्षमताओं को दर्शाती है। बल्कि, यह भी साबित करती है कि कोविड-19 जैसे वायरस केवल सांस की बीमारी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह वायरस शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर असर डालता है। इससे जुड़े रिसर्च हमें आगे की बीमारियों और उनके इलाज को बेहतर समझने में मदद करेंगे।