‘भागवत’ ज्ञान देने को क्यों मजबूर हुए ‘मोहन’…

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‘भागवत’ ज्ञान देने को क्यों मजबूर हुए ‘मोहन’…

कुछ समय पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पार्टी उस समय से आगे बढ़ चुकी है जब उसे आरएसएस की जरूरत थी और अब वह “सक्षम” है और अपने काम खुद करती है। उन्होंने कहा था कि आरएसएस एक “वैचारिक मोर्चा” है और अपना काम खुद करता है। नड्डा ने यह भी कहा था, ” शुरू में हम अक्षम होंगे, थोड़ा कम होंगे, आरएसएस की जरूरत थी … आज हम बढ़ गए हैं, सक्षम है … तो बीजेपी अपने आपको खुद चलाती है।

संघ पर टिप्पणी चाहे सदाचारी नजरिए से की गई हो या फिर किसी दूसरे भाव से, पर संघ ने लोकतंत्र के महायज्ञ तक इसका भान नहीं होने दिया कि संघ ने इस ज्ञान का श्रवण भी किया है। पर अब लोकतंत्र की पूर्णाहुति होने और भाजपानीत एनडीए की सरकार बनने और मोदी के प्रधानमंत्री और नड्डा के स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद मोहन के मुख से भागवत ज्ञान ने हलचल पैदा कर दी है। अब अगर सेहत बिगाड़ने का काम नड्डा ने किया था या किसी के इशारे पर किया था तो सेहत सुधारने का काम भी नड्डा को करना पड़ेगा वरना सेहत किस-किस की बिगड़ेगी, यह वक्त ही बताएगा।

वैसे भागवत कथा का मूल मंत्र सदाचार है। जो इसे अपना लेता है, समाज उसे सम्मानित करता है। ऐसे व्यक्ति से भगवान भी प्रेम करते हैं।और ज्ञान की बात यह भी है कि परिवर्तन संसार का नियम है। जिस समाज में हम रह रहे हैं कुछ वर्षों पहले तक ये ऐसा नहीं था और न ही हमेशा ऐसा रहेगा। भागवत ज्ञान में मोहन के कड़े शब्द अब यह कयास लगाने को मजबूर कर रहे हैं कि क्या भाजपा और संघ के बीच सब ठीक चल रहा है?

दरअसल हुआ यह कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में 10 जून 2024 को संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग समारोह के समापन के मौके पर भाषण दिया। इसमें उन्होंने भाजपा और उसकी सरकार का नाम लिए बिना वह सब कुछ बोल दिया, जिसमें सरकार की सेहत ठीक न होने और कड़वी दवा की सख्त जरूरत होने जैसे संकेत मिल रहे हैं। भागवत ज्ञान देते संघ प्रमुख ने कह दिया कि जब चुनाव होता है तो मुकाबला जरूरी होता है। इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है। भागवत के मुताबिक इस बार चुनाव ऐसे लड़ा गया, जैसे यह युद्ध हो। जिस तरह से चीजें हुई हैं, जिस तरह से दोनों पक्षों ने कमर कसकर हमला किया है, उससे विभाजन होगा, सामाजिक और मानसिक दरारें बढ़ेंगी। उनके मुताबिक संसद में दो पक्ष जरूरी हैं, लेकिन हर स्थिति में दोनों पक्षों को मर्यादा का ध्यान रखना होता है। सरकार को नसीहत देते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि विपक्ष को विरोधी पक्ष की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए। भागवत ने इस दौरान ये भी कहा- ‘जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है, गर्व करता है, लेकिन अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है।’ मोहन भागवत मणिपुर पर भी बोले और कहा- मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है. बीते 10 साल से राज्य में शांति थी, लेकिन अचानक से वहां कलह होने लगी या कलह उपजी या उपजाई गयी, उसकी आग में मणिपुर अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है, उस पर कौन ध्यान देगा? जरूरी है कि इस समस्या को प्राथमिकता से सुलझाया जाए।’ मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा, ‘चुनाव खत्म हो चुके हैं और अब ध्यान राष्ट्र निर्माण पर केंद्रित होना चाहिए।’ उन्‍होंने कहा, ‘इस बार भी हमने अपने लोकमत जागरण का काम किया है। वास्तविक सेवक मर्यादा का पालन करते हुए चलता है। अपने कर्तव्य को कुशलता पूर्वक करना आवश्यक है।’ उन्‍होंने कहा, ‘काम करें, लेकिन इसे मैंने करके दिखाया… इसका अहंकार हमें नहीं पालना चाहिए, जो ऐसा करता है वही असली सेवक है।’

सरसंघचालक ने कहा कि डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर कहते थे कि कोई भी बड़ा परिवर्तन होने से पहले समाज में आध्यात्मिक जागृति होती है। सामाजिक परिवर्तन से ही व्यवस्था में परिवर्तन होता है। इसके लिए सबसे पहले आध्यात्मिक जागरण की आवश्यकता होती है। आक्रान्ताओं ने जब भारत पर आक्रमण किया तो समाज उनके अत्याचारों से त्रस्त हुआ, तब संतों ने आध्यात्मिक जागरण कर लोक में निर्भयता का भाव जगाया। हमें भी अपने व्यवहार में आत्मीयता और एकात्मता को अंगीकृत करना होगा। तभी समाज में समरसता आएगी।

तो सरसंघचालक मोहन के मुख से जो भागवत ज्ञान उच्चारित हुआ है, आधुनिक अर्जुन उस पर अमल करेंगे, तब ही शायद बात बन सकती है। और अगर नड्डा ने सेहत बिगाड़ने का काम किया है, तो स्वास्थ्य सुधारने में महत्वपूर्ण आहुति देने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। वरना यदि महाभारत की नौबत आई, तो तहस-नहस का दृश्य सभी देखेंगे। और तब तक बाजी हाथ से निकल कर बहुत दूर जा चुकी होगी। निश्चित तौर से यह भागवत का संयम ही है कि चुनावी बेला तक वह मौन साधे रहे। और मुखर होने के लिए भी उन्होंने सही समय चुनकर अभी चुटकी भर ली है। पर फिर से सवाल वही है कि ‘भागवत’ ज्ञान देने को ‘मोहन’ क्यों मजबूर हुए हैं…।