Woman Attacked in Train : ट्रेन में महिला को अटैक, घबराए परिजन और असहाय रेलवे!

ऐसे में हिम्मत जुटाकर उस महिला कि जान बचाने की सफल कोशिश!

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Woman Attacked in Train : ट्रेन में महिला को अटैक, घबराए परिजन और असहाय रेलवे!

घटना की आंखों देखी वरिष्ठ पत्रकार अरुण नाथानी द्वारा

Chandigarh : ट्रेन के बारे में कहा जाता है कि ये एक चलते-फिरते भारत का प्रतीक है। जिसमें रोजाना लाखों लोग यात्रा करते हैं। इन्हीं लाखों में कई बार ऐसी घटनाएं भी होती है, जो जहन में हमेशा के लिए कैद हो जाती है। दो दिन पहले मेरे सामने भी ट्रेन यात्रा के दौरान ऐसी घटना घटी, जिसने बहुत सारे सबक दिए। साथ ही यह भी सिखाया कि मुसीबत के समय हर पल कीमती होता है और वही पल जीवन बचा भी देते हैं और उन्हीं पलों में जीवन समाप्त भी हो जाता है। फिर वो अपना या अपनों का जीवन हो या किसी अंजान यात्री का।

मुझे नहीं मालूम वो महिला कौन थी। बीते बुधवार को इंदौर से चली मालवा एक्सप्रेस जब रेलवे स्टेशन से रवाना हुई तो भारत के सबसे साफ-सुथरे शहर का रेलवे स्टेशन उल्लासमय था। दरअसल, यह ट्रेन कटरा जा रही थी, इसलिए वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों के भी कई समूह थे। यात्रा किसी संगठन द्वारा प्रायोजित थी, तो ढोल की थाप के साथ श्रद्धालुओं के समूह यात्रा के लिए उल्लासित थे। उन्हीं में से करीब डेढ़ दर्जन लोगों का एक समूह भी था।

पहली नजर में तो लगा वे भी तीर्थयात्री हैं। बहरहाल दोपहर सवा बारह बजे ट्रेन चली, तो डिब्बो में खासी गहमा-गहमी थी। मैं पत्नी के साथ चंडीगढ़ के लिए इसी ट्रेन से रवाना हुआ। सामने की बर्थ में तीन महिलाएं अधेड़ उम्र की बैठी थी। उनके साथ के बच्चे बैठे मस्ती करने लगे। लेकिन, उज्जैन आने से दो स्टेशन पहले जो घटनाक्रम उभरा उसने हम सबको हिलाकर रख दिया। एक महिला की तबीयत खराब होनी शुरू हुई। वो बर्थ पर गिर पड़ी और उसके हाथ-पैर अकड़ने लगे। आंखों की पुतलियां घूमने सी लगी और मुंह से झाग निकलने लगा। कुछ समय पहले तक हंसी-मजाक कर रही महिला बेसुध हो गई। साथ बैठी महिलाएं भी उसकी हालत देखकर घबरा गई। ऊपर बैठा महिला का करीब चौदह पंद्रह साल का बेटा कातर निगाहों से मां को देखकर असहाय सा नजर आया।

महिला की हालत देखकर उसके कुछ रिश्तेदार आए। कुछ ने मुंह में पानी डाला। कुछ ने छाती पर दबाव बनाया। कहने लगे तीन-चार दिन से शादी का खाना खा रही है, शायद गैस बन रही है। कोई बोला वज्र आसन में बैठाओ। एक व्यक्ति ने कोई गोली भी दी। लेकिन, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि असली मर्ज क्या है। थोड़ी देर में वह कुछ सहज हुई। लेकिन वास्तव में उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। रेलवे इमरजेंसी नंबर पर फोन किया तो सुझाव था कि समूह में से कुछ लोग उतरकर उसे उज्जैन में डॉक्टर को दिखा दें। रेल में तो कोई डॉक्टर था नहीं। धीरे-धीरे परिजन अपनी सामान्य चर्या में व्यस्त हो गए। डॉक्टर को दिखाने की बात आई-गई हो गई।

ट्रेन के उज्जैन से अगले स्टेशन पर पहुंचने में कुछ समय था कि महिला फिर पछाड़ खाकर गिर गयी। हाथ पैर उखड़ने और अकड़ने लगे। मुंह से झाग निकलने लगा और आंखे बहुत तेजी से बाएं-दाएं जाने लगी। मेरे साथ बैठी पत्नी अलका ने महिलाओं से कहा कि इसे दिल का तेज अटैक पड़ा है, इसे तुरंत उतारकर एडमिट कराओ। आम लोगों को तो पता ही नहीं होता कि किस इमरजेंसी नंबर से रेल के भीतर डॉक्टर आ सकता है। उसके साथ चलने वाले रिश्तेदारों में सहमति नहीं बन पा रही थी कि उसे ट्रेन से उतारा जाए या नहीं।

मंथन चल ही रहा था एक तरफ महिला की सांसें उखड़ती दिखने लगी। परंपरागत समाज में किसी अनजान महिला को सीपीआर देने सहज नहीं था। मुंह से सांस देने में साथ की महिलाएं संकोच कर रही थी। क्योंकि, महिला के मुंह से झाग निकल रहा था। इस बीच ड्राइवर सीटी दी और ट्रेन चल पड़ी। मुझे लगा कि इस महिला के प्राण बचने अब मुश्किल है। आनन-फानन में हिम्मत जुटाकर मैंने ट्रेन की चेन खींची और धीरे-धीरे ट्रेन की गति थम गई। जीआरपी, गार्ड व स्टेशन कर्मचारी पूछताछ करने कोच में पहुंचे। महिला के अल्पवयस्क बेटे और महिला की बहन व कुछ रिश्तेदारों की मदद बिना स्ट्रेचर के ही महिला को उसी स्टेशन पर उतारा गया। वहां पहुंचते ही किसी भले मानस ने सीपीआर दी। फिर रेलवे कर्मचारी व जीआरपी के लोगों ने एंबुलेस बुलाई और उसे अस्पताल में दाखिल किया गया।

ट्रेन स्टेशन से निकल गई, हमें चंडीगढ़ पहुंचना था। बाद में महिला के रिश्तेदारों से पता चला कि महिला को प्राथमिक उपचार के बाद ड्रिप लगाई गई। उसकी स्थिति अब बेहतर है। मन में सोचता रहा है कि सफर पर निकले लोग कितने असहाय स्थिति में होते हैं। आम लोगों को उन चीजों की जानकारी नहीं होती, जो आज आम होती हार्ट अटैक की स्थिति में किसी की जान बचाने में मददगार हो सकती हैं। जरूरी है कि हम सचेत रहे अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें और मौका पड़ने पर किसी की मदद करने की स्थिति में भी रहें।