

World Earth Day 2025; रत्नगर्भा धरा हमारी सुरक्षित रहे!
इस वर्ष पृथ्वी दिवस 2025 की थीम ‘आवर पावर, आवर अर्थ’ है. इस थीम के जरिए दुनिया भर के लोगों, संगठनों और सरकारों को यह संदेश दिया जा रहा है कि उन्हें पारंपरिक, क्षय होने वाले ऊर्जा स्रोतों की जगह पुन: प्रयोग किए जाने योग्य ऊर्जा स्रोतों को अपनाना चाहिए.-सम्पादक
* माधुरी सोनी “मधुकुंज”
यह सच ही कहा है : पृथ्वी परमेश्वर की साकार और प्रत्यक्ष रचना है। उस पर तीन रत्न हैं : जल, अन्न और अच्छे वचन : पृथ्वीयां त्रिणी रत्नानी जलं, अन्नम, सुभाषितानी। आज पृथ्वी दिवस पर हर मानव को उस वसुंधरा के प्रति चिंतन, मनन के साथ संकल्प लेना चाहिए धरती के रक्षण का। इस पृथ्वी का जितना भी भू भाग है वह मातृका स्वरूप में है, पल्लवित है सारी सृष्टि जो सजीव रूप में है और निर्जीव रूप में भौतिकता के हर रूप में है।
सर्वप्रथम मंगल आह्वान में भी कहा जाता है : भूमिरापोनल: वायु …, द्यो: शांति:, पृथ्वी:। आदिकाल से वैदिक परंपरा रीति चली आ रही कि हमें जो प्रकृति द्वारा प्रदत्त है उसके प्रति नित्य कृतज्ञता अर्पण करें चाहे आह्वान, पूजन, प्रणाम, प्रार्थना द्वारा। पंच भूतानि समा: का भाव ही मनुष्य मात्र को रक्षिता से भाव से जोड़े रखेगा। कारण यही कि रक्षण से बचत ओर सुरक्षा हमारी ही होगी ना।
ग्रामों में जीवन है क्योंकि खेत खलिहान बचे हैं, धरती का मोल किसान जानता है और भौतिक युग में धरती का मोल व्यवसायियों ने भू भाग के हर खंड की कीमती बड़े शहरों में आवश्यकता से अधिक लगाना कर दी है।
धरा ने सभी सजीवता को उपजाऊ बनाया है तो पालनहार सा मानव क्यों नहीं बनता?
वर्तमान में बड़ी विकट स्थिति है कहीं अनावश्यक खुदाई पानी,परीक्षण, कब्ज़ा इन सबमें मानव ने ” अहं ब्रह्मस्मि ” सा स्वयं को समझना चालू कर दिया! दुःख होता है शहरीकरण के विस्तार को देखकर और उससे भी ज़्यादा क्षोभ होता है गांव भी इस चपेट में आने लगे? जिस भू भाग पर समतल मैदानों पर कृषक ने हरियाली दी इस पृथ्वी को उसी धानी चुनर को छोड़ भू बेच रहे है।
हमारे वेद ऋचाओं की हर सुक्तियों में भू के प्रति अर्पण भाव से पूज्य मानकर सृष्टि का विधान मानव मात्र के जीवन आविष्कार, पोषण हेतु इतना ही लिखा है जहां आवश्यक हो। अति सर्वत्र वर्जयते होगी।
नदियों, पहाड़ों, उपवनों, मंदिरों, खेतों, कल कारखानों, भवनों, ऐतिहासिक स्थलों सभी तो इस माधवी पर आश्रित है।
अद्भुत प्रकृति के उपादानों को देख यह वसुंधरा भी चाहती है हरिताभ रहना, निर्मल जल नदियों से प्लावन होना, उपवनों और मंदिरों में गूंजते मंत्रोच्चारण से उर्जिता पाती यह धरती मानव मात्र को सचेत भी करती है।
प्राकृतिक आपदाओं का कहर यूं ही नहीं आता। जब जब माता पर विपत्ति आती है, प्रकृति के पंच तत्व भी साथ सक्रिय हो उठते हैं, तभी तो ज्वालामुखी, भूकंप, जल प्रवाह, बाढ़, दावानल जैसी घटनाएं होती है।
धरती का संदेश है : खेत खलिहान बचाना,जल बचाना। यदि मानव विकास के क्रम में अग्रणी होता आया तो बचेगा क्या?कुछ भी नहीं। शायद पृथ्वी का अंश मात्र भी पनपने से रीता रहे।
पृथ्वी की रक्षा सदैव वैज्ञानिक परीक्षण और अनुसंधानों से भी प्रभावित होती है। विद्युत का सही उपयोग, बढ़ता प्रदूषण, यातायात से इस धरा को आघात लगता है। कभी तो मनुष्य एक माह में घर से ही शुरुआत करे।
बिजली, पानी का अपव्यय, वृक्ष लगाए, पर्यावरण हितैषी बने, पीपल, नीम,बरगद के पौधे लगाएं रक्षण करे यही तो समर्पण चाहती हे पृथ्वी।
समर्पण का भाव मानव मात्र को मन में धारण करना ही होगा। संकल्पों से सिद्धियां प्राप्त होती हैं और यही संकल्प रक्षण का हर नागरिक का कर्तव्य है। दोहन न करें, रक्षण करें। भूमि माता है, वसुंधरा को बचाना है हर मानव को।
World Earth Day 2025: हमारी शक्ति, हमारा ग्रह – एक जीवन संकल्प