

World Earth Day 2025: हमारी शक्ति, हमारा ग्रह – एक जीवन संकल्प
डॉ तेज प्रकाश व्यास की खास रिपोर्ट
देश की माटी देश का जल
हवा देश की देश के फल
सरस बनें प्रभु सरस बने
देश के घर और देश के घाट
देश के वन और देश के बाट
सरल बनें प्रभु सरल प्रभु
देश के तन और देश के मन
देश के घर के भाई -बहन
विमल बनें प्रभु विमल बनें
–बंगला में रचनाकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर /हिन्दी अनुवाद-कविवर भवानी प्रसाद मिश्र
पृथ्वी, केवल एक ग्रह नहीं है। यह जीवन की धड़कन है, हर जीव के अस्तित्व की भूमि है। वेदों में इसे “वसुधा” कहा गया है – “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” (अथर्ववेद 12.1.12) – “पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।”
लेकिन क्या हम एक जिम्मेदार संतान की तरह इस धरती की रक्षा कर रहे हैं? क्या हमने इसकी धरोहर को संभाला है? विश्व पृथ्वी दिवस 2025 हमें यही सोचने, समझने और संकल्प लेने का दिन है।
इतिहास की झलक: कहां से शुरू हुआ यह आंदोलन?
22 अप्रैल 1970 को अमेरिका के सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने पर्यावरण के प्रति गहरी चिंता के साथ पहला पृथ्वी दिवस आयोजित किया। उस समय लाखों लोग वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण की मार झेल रहे थे।
यह दिन धीरे-धीरे एक वैश्विक चेतना में परिवर्तित हो गया – आज 192 से अधिक देशों में अरबों लोग इस दिन को मनाते हैं, पर्यावरण संरक्षण की प्रतिज्ञा करते हैं।
2025 की थीम: हमारी शक्ति, हमारा ग्रह
इस वर्ष की थीम है – “Our Power, Our Planet” अर्थात “हमारी शक्ति, हमारा ग्रह”।
यह थीम संदेश देती है कि पर्यावरण को बचाने की शक्ति हर व्यक्ति, हर समुदाय और हर देश में निहित है। अब समय है कि हम मिलकर इस धरती को उस संकट से बाहर निकालें जिसमें हमने उसे धकेला है।
वर्तमान संकट: पर्यावरणीय त्रासदी के तथ्य
वैज्ञानिक आंकड़े और वैश्विक रिपोर्ट्स के अनुसार:
1. ग्लोबल वार्मिंग से पिछले 100 वर्षों में औसत तापमान 1.2°C बढ़ चुका है।
2. IPCC रिपोर्ट (2023) चेतावनी देती है कि यदि तापमान वृद्धि 1.5°C से अधिक हुई तो महासागरों का जलस्तर 3 मीटर तक बढ़ सकता है।
3. प्रदूषण के कारण हर साल 70 लाख लोग समय से पहले मृत्यु को प्राप्त करते हैं (WHO) की रिपोर्ट।
4. विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2050 तक 20 करोड़ लोग जलवायु से प्रभावित बन सकते हैं।
भारतीय परंपरा और पर्यावरण: प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व
भारत का साहित्य, दर्शन और संस्कृति पर्यावरण संरक्षण की जड़ें हैं।
ऋग्वेद में वर्णित पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) ही जीवन के आधार हैं।
श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं –
“बृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर॥”
– “वृक्ष अपने फल नहीं खाते, नदियाँ अपना जल नहीं पीतीं – वैसे ही सज्जन अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए जीते हैं।”
यह संदेश वर्तमान युग के लिए अत्यंत प्रासंगिक है – पृथ्वी के संसाधनों का स्वार्थहीन उपयोग करें, दोहन नहीं।
हम क्या कर सकते हैं? – एक व्यावहारिक दृष्टिकोण
1. हर वर्ष नहीं, हर दिन लगाएं एक पेड़
वृक्ष न केवल ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर जलवायु को संतुलित करते हैं।
2. सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का बहिष्कार करें
प्लास्टिक के कारण समुद्री जीवन, जल स्रोत और मृदा प्रदूषित हो रही है।
3. स्थानीय और जैविक उत्पाद अपनाएं
कम दूरी से लाई गई वस्तुएं कार्बन उत्सर्जन घटाती हैं और स्थानीय किसानों को सहायता भी देती हैं।
4. ऊर्जा संरक्षण को जीवनशैली बनाएं
बिजली की बर्बादी कम करें, LED बल्ब, सौर ऊर्जा और सार्वजनिक परिवहन का उपयोग बढ़ाएं।
5. वृक्षारोपण और जल संरक्षण अभियान में भाग लें
गांवों, विद्यालयों, कार्यालयों में जागरूकता अभियान, रैली और कार्यशालाएं आयोजित करें।
युवा शक्ति से उम्मीद
आज की युवा पीढ़ी को पर्यावरण योद्धा बनना होगा। डिजिटल युग में सोशल मीडिया एक प्रभावी हथियार है – #SaveTheEarth, #GreenIndia जैसे अभियानों को बढ़ावा दें।
भावनात्मक संदेश: धरती माँ की पुकार
“जब अंतिम वृक्ष कट जाएगा,
अंतिम नदी प्रदूषित हो जाएगी,
और अंतिम मछली मर जाएगी –
तब तुम समझोगे कि धन खाया नहीं जा सकता।”
– एक नई शुरुआत का दिन*
विश्व पृथ्वी दिवस 2025 केवल एक स्मृति दिवस नहीं, बल्कि एक संकल्प दिवस के रूप में मनाएं –
हम अपने विचारों, कार्यों और निर्णयों से पृथ्वी माता की रक्षा करेंगे।
आइए, अपने अस्तित्व की जड़ों को मजबूत करें –
धरती को बचाकर, स्वयं को बचाएं।
एक व्यक्ति बदले तो युग बदल सकता है।
आलेख समापन पर बच्चन जी की अद्भुत पृथ्वी रोदन कविता:
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
ग्रह-ग्रह पर लहराता सागर
ग्रह-ग्रह पर धरती है उर्वर,
ग्रह-ग्रह पर बिछती हरियाली,
ग्रह-ग्रह पर तनता है अम्बर,
ग्रह-ग्रह पर बादल छाते हैं, ग्रह-ग्रह पर है वर्षा होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
पृथ्वी पर भी नीला सागर,
पृथ्वी पर भी धरती उर्वर,
पृथ्वी पर भी शस्य उपजता,
पृथ्वी पर भी श्यामल अंबर,
किंतु यहाँ ये कारण रण के देख धरणि यह धीरज खोती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
सूर्य निकलता, पृथ्वी हँसती,
चाँद निकलता, वह मुसकाती,
चिड़ियाँ गातीं सांझ सकारे,
यह पृथ्वी कितना सुख पाती;
अगर न इसके वक्षस्थल पर यह दूषित मानवता होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।