

विश्व धरोहर दिवस पर विशेष लेख- साँची स्तूप को 1989 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया था।
World Heritage Day: “सांची और उदयगिर- संस्कृति की अमिट छाप”
डॉ. तेज प्रकाश व्यास
विश्व धरोहर दिवस (18 अप्रैल) पर भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों की महिमा का स्मरण करना न केवल गर्व का विषय है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का भी माध्यम है। इस अवसर पर प्रस्तुत है मेरा आंखों देखा, अनुभव-संवेदित, भावनाओं से भरा हुआ सांची के स्तूप और उदयगिरी गुफाओं का विशेष वर्णन — एक ऐसा दृश्य जो आत्मा को छू जाए और भारत की अध्यात्मिक, कलात्मक और स्थापत्य विरासत को सराहने पर विवश कर दे।
सांची स्तूप की दिव्यता:
1. समय और संवेदना में डूबी यात्रा:
जैसे ही सांची पहुंचा, हृदय में एक गूंज उठी — यह केवल पत्थरों का ढांचा नहीं, अपितु इतिहास का एक जीवंत संवाद है। लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित यह स्तूप न केवल बौद्ध धर्म का प्रतीक है, बल्कि मानवीय करुणा, ध्यान और शांति का अद्भुत संगम है।
2. स्थापत्य की विशेषताएं:
मुख्य स्तूप की गोलाई, उसके ऊपर बना ‘हरमिका’ (ध्यान स्थल) और ‘छत्रावली’ (तीन छतरियों वाली संरचना) हमें ब्रह्मांड की तीन अवस्थाओं (धर्म, ध्यान, निर्वाण) की याद दिलाती है। चारों दिशाओं में बने विशाल तोरण (द्वार) हमें बौद्ध धर्म की जातक कथाओं को जीवंत चित्रों में सुनाते हैं।
3. विशेष अनुभूति:
मैंने उस पवित्र स्थल पर ध्यान की अवस्था में कुछ क्षण बिताए — वहाँ की शांति, प्रकृति की सरसराहट, और दूर तक फैला धूप-छाया का खेल आत्मा को भीतर तक छू गया। सांची का प्रत्येक पत्थर, जैसे कह रहा था — “ध्यान में ही दिशा है, करुणा में ही क्रांति है।”
उदयगिरी गुफाएं: गुप्तकालीन भारतीय धर्मदर्शन की पराकाष्ठा:
1. चट्टानों में जीवन की लय:
सांची से लगभग 13 किमी दूर स्थित ये गुफाएं गुप्त वंश (4वीं-5वीं शताब्दी) की धार्मिक चेतना, कला और संस्कृति का जीवंत चित्रण हैं। मैंने इन गुफाओं को नमन करते हुए देखा — जैसे ये गुफाएं खुद एक तपस्वी की तरह वर्षों से ध्यानस्थ हैं।
यह रही उदयगिरि की पांच प्रमुख गुफाओं की क्रमबद्ध जानकारी
1. गुफा संख्या 5 – वराह अवतार
यह गुफा भगवान विष्णु के वराह अवतार को दर्शाती है, जिसमें वे पृथ्वी देवी (भूदेवी) को राक्षस हिरण्याक्ष से बचाते हैं। यह मूर्ति गुप्त काल की अद्भुत शिल्पकला का प्रमाण है। विष्णु का यह अवतार धर्म की रक्षा और पृथ्वी के उद्धार का प्रतीक है। यह भारत की धार्मिक परंपराओं में भक्ति और शक्ति का सुंदर समन्वय दर्शाता है।
2. गुफा संख्या 6 – गंगा और यमुना द्वारपालाएँ
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इस गुफा के प्रवेश द्वार पर गंगा और यमुना देवियों की सुंदर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। दोनों देवियाँ शुद्धता और जीवनदायिनी ऊर्जा की प्रतीक हैं। द्वारपाल के रूप में इनकी स्थापना दर्शाती है कि जो भीतर प्रवेश करता है, वह स्वयं को भीतर-बाहर से शुद्ध करता है। यह भारतीय स्थापत्य में प्रतीकात्मकता और धार्मिकता का अद्भुत उदाहरण है।
3. गुफा संख्या 19 – समुद्र मंथन दृश्य
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इस गुफा की दीवारों पर समुद्र मंथन का दृश्य बहुत प्रभावशाली रूप में दर्शाया गया है। देवता और असुर, मंदराचल पर्वत और वासुकी नाग के साथ समुद्र को मथते हुए दिखाए गए हैं। यह दृश्य सामूहिक प्रयास, संघर्ष और अंततः अमृत की प्राप्ति का प्रतीक है। यह भारतीय संस्कृति में संतुलन, धैर्य और सहयोग की शिक्षा देता है।
4. गुफा संख्या 20 – पार्श्वनाथ तीर्थंकर
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यह गुफा जैन धर्म को समर्पित है। यहाँ पार्श्वनाथ तीर्थंकर की शांत और ध्यानमग्न मुद्रा में मूर्ति स्थापित है। उनके चारों ओर उकेरी गई नाग की आकृति उन्हें विष से बचाने की पौराणिक कथा का संकेत देती है। यह मूर्ति ध्यान, करुणा और अहिंसा के जैन सिद्धांतों का प्रभावशाली प्रतीक है।
5. गुफा संख्या 13 – शेषशायी विष्णु
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इस गुफा में भगवान विष्णु को शेषनाग पर विश्राम करते हुए दिखाया गया है, जिसे शेषशायी विष्णु कहा जाता है। यह दृश्य सृष्टि की निरंतरता, पालन और संतुलन का प्रतीक है। लक्ष्मी माता उनके चरणों में विराजमान हैं, और ब्रह्मा कमल से उत्पन्न हो रहे हैं – यह सृष्टि के चक्र का रूपक है।
सांची और उदयगिरी की गुफाएं ईंट-पत्थर की संरचनाएं नहीं हैं। ये भारत की आत्मा हैं। ये वह प्रतीक हैं, जो बतलाते हैं कि भारत केवल ज्ञानभूमि नहीं, अपितु करुणा, समरसता, और शांति की धरती है। विश्व धरोहर दिवस पर मैं सभी से आग्रह करता हूँ — आइए, इस धरोहर को जानें, समझें, और उसकी गरिमा को अपनाएं।
“जो अपनी जड़ों को जानता है, वही आकाश की ऊँचाई को प्राप्त करता है।”
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