World Music Day: आखिर किस मजबूरी के चलते रामचन्द्र को छोड़ अकबर के दरबार पहुंचे तानसेन!

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World Music Day: आखिर किस मजबूरी के चलते रामचन्द्र को छोड़ अकबर के दरबार पहुंचे तानसेन!

विधिना यह जिय जानि के शेषहि दिये न कान।

धरा मेरू सब डोलि हैं, सुनि तानसेन की तान।।

 

अर्थात- “ब्रह्मा ने यह जानकर ही शेषनाग को कान नहीं दिए क्योंकि तानसेन की तान से मुदित होकर शेषनाग नाचने लगते व पहाड़ों समेत यह धरती डोलने लगती”

 

तानसेन की महानता को रेखांकित करने वाला यह दोहा आज भी बहु श्रवणीय है।

 

तानसेन और उनकी रचनाएं संगीत की वैश्विक निधि हैं। इतिहास के सबसे दुर्दांत बादशाह जलालुद्दीन अकबर को जब यह जानकारी मिली कि यह महान विभूति वांधवगढ (प्रकारांतर में रीमा राज्य) के नरेश महाराज रामचंद्र की दरबार में शोभायमान हैं तब उसने उनका अपहरण करने के लिए विशाल सेना भेजी..।

 

इस युद्ध में बहुत से सैनिक मारे गए तथापि महाराज रामचंद्र ने पराजय स्वीकार नहीं की। इस विषम परिस्थिति में स्वयं तानसेन ने महाराज से आग्रह किया कि बादशाह कुपित है..वह ऐसे नहीं मानेगा। प्रजा का अनभल न हो इसलिए आप मुझे उसे सौंप दीजिए।

 

स्वाभिमानी महाराज ने एक शर्त रखी कि अकबर आपके लिए मुझे एक याचना पत्र लिखे तभी संभव है। धूर्त अकबर ने याचना पत्र लिखा..तब कहीं रामचंद्र तानसेन को आगरा दरबार भेजने के लिए तैय्यार हुए।

 

महाराज रामचंद्र ने तानसेन की विदाई के समय स्वयं उनकी पालकी में कंधा दिया..। तानसेन ने महाराज का मान रखने के लिए के लिए निश्चिय किया कि वे दाएं हाथ से जुहार सिर्फ रामचंद्र का ही करेंगे। तानसेन ने जीवन भर अकबर की जुहार बाँए हाथ से की..। इस घटना पर उनका एक पद भी है..। अकबर ने तानसेन के धर्मपरिवर्तन की भी कोशिश की। इसपर विद्वानों के दो मत हैं..। लेकिन यदि तानसेन की मजार है तो स्वयंसिद्ध है कि वह उन्हें मुसलमान बनाने में सफल रहा।

आगे चलकर तानसेन प्रकरण का गुस्सा अकबर ने रामचंद्र के पुत्र वीरभद्र के अपहरण के साथ निकाला..। वीरभद्र को आगरा में अपनी नजरबंदी पर रखा। बाद में एक संधि के बाद वीरभद्र को बांधवगढ़ लौटाने को राजी तो हुआ..लेकिन पीठ पीछे सेनापति को यह भी समझा दिया कि वीरभद्र जीते जी अपने मातृभूमि न पहुंचे। लिहाजा उन्हें रास्ते में मार दिया गया और प्रचारित यह किया गया कि वे पालकी से गिरकर मरे हैं।

आज विश्व संगीत दिवस पर तानसेन को याद करना है तो उन्होंने महाराजा रामचंद्र और ग्वालियर नरेश मानसिंह तोमर के साथ जोड़कर याद करिए, दुर्दांत अकबर के साथ नहीं। क्योंकि इतिहास में हमारे धर्म और संस्कृति को किसी ने सबसे ज्यादा भ्रष्ट किया तो वह यही जलालुद्दीन था जिसने स्वमेव अकबर(महान) की उपाधि धारण की, खुद को पैगम्बर घोषित किया और अपना निजी धर्म दीन-ए-इलाही चलाया..।