World Photography Day 2025: ‘मेरी पसंदीदा तस्वीर’ – कहानी जो दिल में बसती है

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World Photography Day 2025: ‘मेरी पसंदीदा तस्वीर’ – कहानी जो दिल में बसती है

अनिल तंवर

आज, 19 अगस्त को, जब सारी दुनिया विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस मना रही है, तब इसकी थीम “मेरी पसंदीदा तस्वीर” हमें केवल एक कला के बारे में सोचने के लिए प्रेरित नहीं करती, बल्कि हमें अपनी सबसे गहरी यादों और भावनाओं की यात्रा पर ले जाती है।

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“एक चीज़ जो फ़ोटोग्राफ़ में होनी चाहिए, वह है उस पल की मानवता।” — रॉबर्ट फ़्रैंक, स्विस-अमेरिकी फ़ोटोग्राफ़र के इस उद्धरण का अर्थ यह है कि एक अच्छी तस्वीर केवल सुंदर दिखने वाली चीज़ों को कैद नहीं करती, बल्कि मानवीय भावनाओं, संघर्षों और अनुभवों को भी दिखाती है। फ़ोटोग्राफ़ी का इतिहास मानव जिज्ञासा और नवाचार का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसकी शुरुआत 1839 में लुई डैगरे की डैगरेरियोटाइप प्रक्रिया के सार्वजनिक अनावरण से हुई थी। उस समय की जटिल और महंगी प्रक्रिया के बावजूद, लोग उन तस्वीरों को अत्यंत सहेज कर रखते थे। वे स्याह-सफेद पोर्ट्रेट, परिवार के सदस्यों की पहली तस्वीर, या किसी ऐतिहासिक इमारत का पहला चित्र ही उनकी ‘पसंदीदा तस्वीर’ बन जाती थी। ये तस्वीरें सिर्फ देखने की चीज नहीं थीं, बल्कि एक अनमोल विरासत थीं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाई जाती थीं।

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बीसवीं सदी की शुरुआत में जॉर्ज ईस्टमैन की कंपनी ‘कोडक’ ने फिल्म कैमरों को आम लोगों तक पहुँचाकर इस कला को लोकतांत्रिक बनाया। अचानक, हर परिवार के पास अपनी शादी, बच्चों के जन्मदिन या छुट्टियों की तस्वीरें लेने का साधन आ गया। यही वह समय था जब ‘मेरी पसंदीदा तस्वीर’ का विचार हर घर में जड़ें जमाने लगा। एक पुरानी एलबम में छिपी हुई वह धुँधली तस्वीर, जिसमें दादा-दादी एक साथ हँस रहे हों, आज भी हमारी सबसे पसंदीदा तस्वीरों में से एक है।

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने हमें अपनी पसंदीदा तस्वीरों को दुनिया के साथ साझा करने का मौका दिया है। यह एक नई चुनौती भी पेश करता है—क्या हमारी पसंदीदा तस्वीर वह है जो हमें सबसे ज़्यादा लाइक्स दिलाती है, या वह जो हमारे दिल को सबसे ज़्यादा सुकून देती है?

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कैमरे के इतिहास ने भी लम्बी यात्रा तय की है । वर्ष 1826-1827 में फ्रांस के जोसेफ नाइसफोर निएप्स ने दुनिया की पहली स्थायी तस्वीर व्यू फ्रॉम दी विंडो एट ले ग्रास बनाई। इसके बाद वर्ष 1837 में लुई डागेयर का योगदान डागेयर ने डागेरोटाइप तकनीक विकसित की, जिसे 1839 में फ्रांसीसी सरकार ने दुनिया के लिए उपहार घोषित किया। प्रगति की रफ़्तार ने 19 अगस्त 1839 के दिन डागेरोटाइप तकनीक को आधिकारिक रूप से सार्वजनिक किया गया, और बाद में इस दिन को विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मान्यता प्राप्त हुई ।

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जहाँ तक भारत की बात है तो भारत में पहली तस्वीरें 1840 के दशक में खींची गईं । 1854 में फोटोग्राफिक सोसाइटी ऑफ़ बंबई (अब मुंबई) की स्थापना हुई, जो उपमहाद्वीप में फोटोग्राफी का केंद्र बनी ।आज फोटोग्राफी ने फिल्म कैमरा से लेकर डिजिटल, मिररलेस और स्मार्टफोन फोटोग्राफी तक लंबी छलांग लगाई है और फिर डिजिटल क्रांति ने स्मार्टफोन ने फोटोग्राफी को आमजन तक पहुँचा दिया । अब तो हर घर का हर व्यक्ति फोटोग्राफर बन गया । सोशल मीडिया साइट्स यथा इन्सटाग्राम , पिंटेरेस्ट, फ्लिकर, और 500 पीएक्स जैसी और बहुत सारे विकल्प ने सभी शौकिया और पेशेवर फोटोग्राफरों को वैश्विक मंच प्रदान किया ।

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जहाँ तक फोटोग्राफी कार्य के भविष्य की बात करे तो अब एआई आधारित एडिटिंग अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब तस्वीरों की गुणवत्ता सुधारने और क्रिएटिव इफेक्ट्स देने में अहम भूमिका निभा रही है । वीआर और 360° फोटोग्राफी वर्चुअल रियलिटी अनुभव के लिए इमर्सिव फोटोग्राफी का दौर शुरू हो चुका है। सस्टेनेबल फोटोग्राफी पर्यावरण के अनुकूल तकनीक और जिम्मेदार फोटोशूट की ओर रुझान बढ़ रहा है । यह कहा जा सकता है कि फोटोग्राफी सिर्फ़ प्रकाश और लेंस का खेल नहीं है, यह भावनाओं, यादों और कहानियों का संग्रहालय है। विश्व फोटोग्राफी दिवस हमें याद दिलाता है कि एक तस्वीर शब्दों से अधिक ताकतवर हो सकती है, वह इंसानियत, संघर्ष, प्रकृति और सौंदर्य को एक फ्रेम में समेट सकती है।

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*फोटोग्राफी के मौलिक नियम*

अच्छी फोटोग्राफी केवल अच्छे कैमरे पर निर्भर नहीं करती, बल्कि कुछ मौलिक नियमों का पालन करने पर भी निर्भर करती है। रूल ऑफ थर्ड्स नियम कहता है कि तस्वीर को नौ बराबर हिस्सों में बांटने वाली दो-दो क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर रेखाओं की कल्पना करें। मुख्य विषय को इन रेखाओं के प्रतिच्छेदन बिंदुओं पर रखें। यह नियम तस्वीर को अधिक संतुलित और देखने में आकर्षक बनाता है। लीडिंग लाइन्स नियम बताता है कि तस्वीर में ऐसी रेखाओं (जैसे सड़क, नदी, या बाड़) का उपयोग करें जो दर्शक की आँख को तस्वीर के मुख्य विषय की ओर ले जाएँ। यह तस्वीर में गहराई और गति का एहसास पैदा करता है। फ्रेमिंग नियम के अनुसार प्राकृतिक फ्रेम (जैसे खिड़की, दरवाज़े, या पेड़ों की शाखाएँ) का उपयोग करके मुख्य विषय को अलग करें। यह दर्शक का ध्यान सीधे मुख्य विषय पर केंद्रित करता है और तस्वीर को एक संदर्भ देता है। सिमेट्री और पैटर्न नियम को कुछ मामलों में, समरूपता और दोहराए जाने वाले पैटर्न का उपयोग करके एक शक्तिशाली और शांत छवि बनाई जा सकती है। वास्तुकला और लैंडस्केप फोटोग्राफी में यह नियम बहुत प्रभावी होता है। अंत में बैकग्राउंड नियम यह बताता है कि एक अव्यवस्थित बैकग्राउंड से बचें जो मुख्य विषय से ध्यान हटाता हो। एक साफ और सरल बैकग्राउंड विषय को बेहतर ढंग से उभारता है।

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विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस 2025 की थीम ‘मेरी पसंदीदा तस्वीर’ हमें यह याद दिलाती है कि फ़ोटोग्राफ़ी सिर्फ़ प्रकाश और छाया का खेल नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन का, हमारी यादों का और हमारे अस्तित्व का एक दर्पण है। एक पसंदीदा तस्वीर हमें केवल अतीत में नहीं ले जाती, बल्कि वह हमें आज के पल में भी जीना सिखाती है। फ़ोटोग्राफ़ी एक ऐसी भाषा है जो सीमाओं से परे जाकर हमें एक-दूसरे से, हमारी यादों से और हमारे अस्तित्व से जोड़ती है।

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