Wrestler In Trouble:फोकट सहानुभूति की नहीं दंड की पात्र है विनेश

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Wrestler In Trouble:फोकट सहानुभूति की नहीं दंड की पात्र है विनेश

पेरिस ओलिंपिक में भारत की महिला पहलवान विनेश फोगट को अपने तय वजन से सौ ग्राम ज्यादा होने पर अयोग्य करार देकर स्पर्धा से बाहर कर देने से भारी बवाल मचा हुआ है। कुछ भावुक खेल प्रेमी इसे भारत के साथ काले-गोरे वाला व्यवहार का नतीजा बता रहे हैं तो कुछ का कहना है कि सौ ग्राम तो चल सकता था। यह तो ज्यादती है। जितने मुंह,उतनी बातें। मसला यहां न तो भारत का है, न काले-गोरे का, न किसी भेदभाव का। यह विशुद्ध खेल नियम और आचरण का ही मामला है और विनेश सौ प्रतिशत गलत है। मूल बात तो सिर्फ इतनी-सी है कि जब आप 50 किलोग्राम वजन में कुश्ती लड़ने के योग्य ही नहीं थी तो भाग क्यों लिया? आपने यह निजी हठधर्मिता के चलते किया और आपके इस आचरण से देश का भी नाम खराब हुआ। इसलिये विनेश किसी सहानुभूति की नहीं, बल्कि प्रताड़ना और दंड की भागी है। उस पर तो खेलने पर आजीवन प्रतिबंध लगा देना चाहिये।

 

अब जबकि एक के बाद एक मसला बाहर आ रहा है,तब यह समझ आ रहा है कि विनेश को तो मंगोलिया के उलानबटार में 2016 के वर्ल्ड ओलिंपिक क्वालीफाइंग से भी अधिक वजन के कारण ही बाहर किया गया था। तब 400 ग्राम ज्यादा वजन था। इस बार की चयन प्रक्रिया की कहानियां भी सामने आई तो पता चला कि मैडम तो 50 किलो वर्ग में जबरदस्ती चयनित हुई थी। दरअसल हुआ यह था कि विनेश का वजन 57-58 किलो रहता है। वह 53 किलो वर्ग में लड़ती रहती है, लेकिन ओलिंपिक के चयन प्रक्रिया के समय वह अड़ गई कि एकसाथ 53 व 50 किलो के परीक्षण में उतरेगी।

 

बताया जाता है कि करीब 5 माह पहले जब पटियाला् के साई सेंटर में चयन प्रक्रिया जिस दिन दोपहर 1 बजे प्रारंभ होना थी, उसे 3 घंटे विनेश ने इसलिये रोका रखा कि वह दोनों वर्ग में उतरेगी, जो नियमानुकूल नहीं था। फिर भी कुश्ती संघ ने पहलवानों के धरना-प्रदर्शन के परिप्रेक्ष्य में उसे अनुमति दे दी। तब विनेश 53 किलो का मुकाबला तो अंजू से हार गई।वहां विजयी होती तो भी उसे अंतिम पंघाल से भिड़ना पड़ता जो जोखिम भरा था,क्योंकि अंतिम पहले ही कोटा प्राप्त कर चुकी थी। फिर 50 किलो वर्ग में जूनियर शिवानी पवार को परास्त कर ओलिंपिक कोटा प्राप्त कर लिया,क्योंकि वह तो 53 किलो वर्ग की भारी पहलवान जो थी। इस तरह से एक जूनियर पहलवान का हक मारा।

 

विनेश के इस आचरण का चयन के समय जूनियर पहलावनों ने विरोध भी किया, लेकिन कुश्ती संघ दबाव में था। इसमें उल्लेखनीय और अफसोस की बात तो यह है कि इन पांच महीनों में भी विनेश ने अपने वजन की चिंता नहीं की और अभ्यास करती रही। नियम है कि किसी आयोजन से पहले और पदक वाले मुकाबले के पहले भी वजन लिया जाता है। यह वजन 52 किलो से अधिक निकला तो केवल एक रात का मौका,था, जिसमें विनेश ने जॉगिंग,साइकिलिंग,रस्सी कूद,बाल कटाने वगैरह जैसे तमाम काम किये,लेकिन 100 ग्राम फिर भी ज्यादा रहा। उसने कुछ दिनों से आहार भी कम कर दिया था याने वह जानती थी कि वजन नियंत्रण में नहीं आ रहा है। यह देश के साथ धोखाधड़ी से कम नहीं । सब कुछ मालूम होते हुए भी मुगालते में मुकाबला लड़ा और नतीजा सामने है। विनेश के इस स्त्री हठ से उसका जो नुकसान हुआ,उसके लिये तो वह स्वयं जिम्मेदार है ही, लेकिन उसने भारत की प्रतिष्ठा को मिट्‌टी में मिला दिया।

 

विनेश फोगट की जिदबाजी के अनेक किस्से भी अब सामने आ रहे हैं। वह चार लोगों का निजी स्टाफ भी साथ ले गई, जिसका खर्च कुश्ती संघ ने उठाया। सवाल यह है कि इसके बाद भी वे क्या घास काटते रहे? यह भी सामने आया है कि विनेश समेत कुछ पहलवान बिना ट्रायल के ही ओलिंपिक कोटा प्राप्त करना चाहते थे, जिसे कुश्ती संघ ने मान्य तो नहीं किया, लेकिन चंद पहलवानों ने काफी दबाव जरूर बनाया। इस तरह से देखा जाये तो विनेश के साथ किसी रियायत या सहानूभूति की आवश्यकता नहीं है। वह तो दंड की भागीदार है। केवल इसलिये कि आप महिला हैं , पहलवान हैं, ओलिंपिक से कोई पदक ला सकती थी, इसलिये आपको माफ नहीं किया जा सकता। यह भी सोचिये कि यदि विनेश सही वजन वर्ग में खेलती तो संभव है कि वहां भी पदक प्राप्त करती और 50 किलो वर्ग में जो पहलवान आती, वह भी पदक ला सकती थी। पदक न भी लाती तो उसे एक अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने का अवसर तो मिलता।

 

भारत आगमन पर उसके लिये वंदनवार सजाने की मुझे तो कोई जरूरत नहीं लगती। हमें नहीं भूलना चाहिये कि विनेश के अलावा 4 और खिलाड़ी भी अयोग्य घोषित किये गये हैं। ये हैं एमानुएला लिउजी(इटली) 50 किलो फ्री स्टाइल कुश्ती, मेसाउंड ड्रिस(अल्जीरिया) जूडो, बेटीरब्रेक साकुलोव(स्लोवाकिया) 65 किलो फ्री स्टाइल कुश्ती और दानिला सेमेनोव(रूस), 92 किलो लाइट हेवी वेट कुश्ती। इसी ओलिंपिक का एक और मुकाबला याद कीजिये, सौ मीटर दौड़ का, जिसमें सभी 10 धावकों का समय 10 सेंकड के भीतर ही था और यह पहली बार हुआ था। इसमें सैकड़ों बार टीवी स्क्रीन देखकर विजेता का फैसला किया गया, जिसमें विजेता उसे घोषित किया गया, जो सेकंड के हजारवें हिस्से में फिनिश लाइन से अपना धड़ बाहर निकाल पाया था। जहां इतने कड़े मुकाबले होते तों वहां 100 ग्राम अधिक वजन की अनदेखी किये जाने की आशा करना चरम मूर्खता ही तो मानी जायेगी। इसलिये इसे पक्षपात कहना बंद कीजिये और विनेश से जनता की अदालत में सवाल कीजिये, ताकि आयंदा कोई भी पहलवान,खिलाड़ी व खेल संघ तय मानकों के उल्लंघन की किंचित भी चेष्टा नहीं करे ।

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।