
जिमीकंद: आखिर क्यों हमारी संस्कृति में दीवाली के अवसर पर सूरण सब्जी ग्रहण करने की परंपरा है?
अबकी दीवाली सूरण वाली: लेकिन क्यों, आखिर ये रिश्ता क्या कहलाता है? आखिर क्यों हमारी संस्कृति में दीवाली के अवसर पर सूरण ग्रहण करने की परंपरा है?
रोग निवारकम, स्वास्थ्य प्रदायक, उत्तमफल दायकम।
स्वादिष्टम, संस्कृति समायोजकम, प्रसन्न चित्तेन सर्वदा
स्वीकार्येत।
जो लोग सूरण को जानते हैं उनके लिए तो यह एक सामान्य और स्वादिष्ट मौसमी सब्जी है, लेकिन जो इसे करीब से नही जानते उनके लिए तो चंद्रकांता सरीखे किसी तिलिस्मी उपन्यास की कहानी से कम नही है। आखिर क्या क्या नही सुना लोगों ने इसके बारे में। और इतना सुने कि कभी खाने के हिम्मत नही जुटा पाये। खैर हमारे लिए तो मौसमी सब्जी है, जंगलों में भटकते भटकते कहीं न कहीं यह ग्रहण करने के लिए मिल ही जाती है। गाँव देहात में तो घर के पीछे खाली पड़े स्थान/ बाड़ी में इसके कन्द कइयों वर्षों से अपनी उपज दे रहे हैं। कभी किसी दिन आप और मैं इसकी सब्जी वाला भोजन ग्रहण करने बैठे न, तो न जाने कितनी कहानियाँ निकलेंगी जो मैंने यहाँ वहाँ से सुन रखी हैं। एक दो की चर्चा यहाँ भी छेड़ूँगा। लेकिन पोस्ट के अंत तक बने रहियेगा।
सूरण के पौधे भारत के लगभग सभी स्थानों पर पाये जाते है। Rafflesia arnoldii के बाद या सच कहूं तो साथ साथ Amorphophallus genus के नाम दुनिया के सबसे बड़े फूलों में से एक (Amorphophallus titanum- Titan arum) और भारत के सबसे बड़े फूल का विश्व रिकॉर्ड है, जो 10-12 फिट ऊंचे तथा 8 फिट व्यास वाले हो सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे इस जाति (Amorphophallus campanulatus) का फूल अपेक्षाकृत छोटा पौधा है, जो बारिस में ही निकलता है। इसका आकार भी इतना बड़ा तो है ही कि किसी का ध्यान आकर्षित कर सके।

कुछ खाने योग्य सूरण के कोमल तने तथा कन्द को भारत में सभी जगह सब्जी की तरह खाया जाता है, इसकी सब्जी बहुत मसालेदार बनाई जाती है, जिसे रोटी चावल के साथ परोसा जाता है। किंतु इसे बनाने के लिए विशेष अनुभव की आवश्यता होती है, क्योंकि इसमें खुजली पैदा करने वाले रसायन (कैल्शियम ऑक्सेलेट के नुकीले क्रिस्टल) होते है। ग्रामीण क्षेत्रो में इसे जाम के पत्तो के साथ उबालकर या अधिक खटाई में पकाया जाता है। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में दशहरा पूजन के दिन यह खास व्यंजन होता है। कहते हैं इसे साल में कम से कम एक बार अवश्य ग्रहण करना चाहिये इससे कई तरह के रोगों से शरीर की सुरक्षा हो जाती है। बहुत से स्थानों में यह दीपावली का खास व्यंजन है। दीपावली के बारे में तो सब जानते हैं, यह त्यौहार साफ सफाई वाला त्यौहार है। इस त्यौहार में गंदगी दूर की जाती है ताकि माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहे, ये सूरण भी शरीर की गंदगी यानी रोगों की सफाई करता है, जिससे माता लक्ष्मी की कृपा बरसती रहती है। क्योंकि स्वस्थ शरीर ही सबसे बड़ी पूंजी है दोस्तों….! है, कि नही?
भूमिगत कन्द तो कन्द इसके कोमल पत्ते भी कई स्थानों पर साग के रूप में खाये जाते हैं। कन्द की रसेदार सब्जी का स्वाद तो भुलाए नही भूला जा सकता। हमारे क्षेत्र में इसे एक बहुत ही महत्वपूर्ण पारंपरिक दवा रूप में भी जाना जाता है। इसके कन्द को दही के साथ रायता बनाकर खाने से बबासीर (पाइल्स) में आराम मिलता है। एक प्रसिद्ध पारंपरिक हर्बल जानकर बुजुर्ग के ठिकाने से बताऊँ तो इसे ग्रहण करने से पूर्व यह भी ध्यान रखना होता है कि मरीज को पथरी (Stone)या पेट के छालों (alcer) की शिकायत न हो, वरना इसके सेवन से पेट मे दर्द की शिकायत बन सकती है, इसीलिए इसका सेवन बिना विशेषज्ञ की सलाह के कतही नहीं करना चाहिए। खासकर उस समय जबकि जंगली किस्म प्रयोग की जा रही हो, क्योंकि मैंने पूर्व में ही कई बार बताया है, कि खुजली या एलर्जी से जुड़े कन्द सब्जी आदि की खेती की जाने वाली किस्मो में ये नुकसानदायक गुण बहुत हद तक कम हो जाते हैं।
लेकिन डरने वाली कोई बात नही है। सामान्य व्यक्तियों के लिए कहना चाहूँगा कि आपको इसकी पहचान नही है, और पहली बार सूरण का स्वाद चखना चाहते हैं तो बाजार से खेती वाली किस्म ही खरीदें। जंगलों में ढूढने की गलती न करें। और अधिक खटाई/ अम्ल में इसे उबालें। ऐसा करने से इसके खुजली या चुभन पैदा करने वाले क्रिस्टल या रसायन जल में घुल जाते हैं। व्यक्तिगत तौर पर मैंने इसकी सब्जी कई बार खाई है जो बहुत ही स्वादिष्ट होती है। इसे बनाने के लिये मसालेदार दम आलू या फिर कटहल की सब्जी वाली विधि अपनाई जा सकती है। सिर्फ उबालने में खटाई का प्रयोग करना आवश्यक है।
दर्दनिवारक दवाओं का सरताज है सूरन। गाँव के लोगो की फिटनेस हम शहर वासियों से लाख गुना बेहतर होती है। ये लोग रात दिन ताबड़तोड़ मेहनत करते हैं, और खूब आराम से जीवन जीते हैं। इन्हें हमारी तरह बात बात पर पेन किलर दवाओं का सहारा नही लेना पड़ता। आखिर जरूरत भी क्यों पड़े? देखिए ये लोग क्या क्या खाते हैं…? ये लोग खानपान के मामले में हमसे हमेशा इक्कीस ही मिलेंगे। इनकी खुराक में वो सब कुछ तो है जो कि इस मानव शरीर को चाहिए, फिर भला इन्हें दवाओं की क्या जरूरत होगी। जो लोग हाथ पैरों या शरीर की जकड़न तथा पाइल्स से लंबे समय से जूझ रहे हैं। उनके लिए एक सप्ताह में 3 बार सूरण की सब्जी या रायता सटीक उपाय है। सूरण चखिये और फिर देखिए कि ये रोग कैसे दुम दबाकर भागते हैं।
जब मैं अपनी रिसर्च पूरी कर छिंदवाडा लौटा था, तब गुरूदेव से सूरण की ही चर्चा हुई थी, उस समय खूब ढूंढा लेकिन मौसम विपरीत होने के कारण मिल नही था। फिर जब घूमते फिरते अपने क्षेत्र की खाक छानी तो पता चला कि ग्रामीण क्षेत्रो और जंगलों में तो इनके वन ही पनप रहे हैं। कईयों एकड़ में सूरण ही सूरण। हालांकि हमारे छिंदवाड़ा के स्थानीय बाजार में सूरन आसानी से मिल जाता है लेकिन खास मौसम में ही। कई सारे रिसर्च पेपर्स सूरण के औषधीय गुणों का बखान करते थकते नही हैं। यकीन मानिये, सूरन के दर्द निवारक गुणों को लेकर खूब सारी क्लीनिकल स्टडीज पब्लिश हो रखी है, फिर भी इसे क्यों नही अधिक उपयोग किया जाता? इसका जबाब मैं यानि आपका दोस्त Dr. Vikas Sharma Ethnobotanist आपको बताता हूँ। दरसल इसे बनाने के तरीके के आधार पर ब्राम्हण परिवारों में (सहजन, मशरूम, अरबी के साथ इसे भी) सूरण का निषेध है। दूसरा यह कि इसे खाने से गले मे खुजली होती है, और तीसरा ये कि इसकी उपलब्धता सभी स्थानों मे सुलभ नही है। लेकिन कमाल की बात बताऊँ दुनिया तरह तरह की वनस्पतियाँ खाई जाती हैं केवल उसके शोधन या पकाने की विधि से परिचय होना आवश्यक है। चाहे जो मसला हो, लेकिन सूरन में एक खासियत है, इसमें एंटीनोसिसेप्शन एक्टिविटी खूब है।

एक होती हैं दर्द निवारक क्रिया (Pain Killers), यानी जब दर्द हो तो दर्द को कम करने के गुण या इन्फ्लेमेशन को कम करने की खासियत और दूसरी होती है एंटीनोसिसेप्शन एक्टिविटी, दर्द होने से पहले ही सचेत होकर रोकने में सक्षम एक एक्शन। यही एंटीनोसिसेप्शन एक्टिविटी सूरन में देखी गयी है। हमारे सेंसरी न्यूरॉन्स को एक्टिवेट करके सूरन दर्द को पहले ही मार भगाता है। गुरूदेव ने बताया था कि इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मेसी और फार्मास्यूटिकल साइंसेज में सन 2014 में प्रकाशित एनीमल स्टडी में बाकायदा इस बात की पुष्टि होती है। सिर्फ एक ये स्टडी क्यों, बल्कि 1968 से लेकर 2020 तक 100 से ज्यादा टॉप इंटरनेशनल रिसर्च पेपर्स सूरन की आरती उतारते नजर आ जायेंगे।
अब आप क्या सोच रहे हैं? पेनकिलर गोली खाकर काम चलाना है या सूरन खाएंगे? हमने अपना काम कर दिया, अब आप अपने हिस्से का काम कीजिये। सूरन खाना शुरू करें, इसे अपने खानपान का हिस्सा बना लें। कैसे बनाना है, क्या बनाना है, वो आप अपने आसपास के बुजुर्गों से पता कर लें। इंटरनेट पर बहुत सारे यूट्यूब किचन योद्धा हैं, उनसे भी पूछ सकते हैं। थोड़ा भटकिये तो सही, देश का ज्ञान है, तूती बोलकर रहेगी..फायदा हुआ या नहीं हुआ, बाद की बात…कुछ अच्छा खाने का अनुभव तो होगा ही। मेरी बात जमी हो तो फटाक से शेयर मार दें, क्या पता किसी को इसकी बहुत ज्यादा जरूर हो। और हाँ चलते चलते एक बात और कह दूँ, अपने घर के सबसे काबिल सैफ को काम पर लगाइये, सीखिए उनसे। वो जो बड़े- बुजुर्ग, बूढ़े महामानव आपके घर बैठे हैं न, ज्ञान और अनुभव का भंडार हैं वे। सीख लीजिये जो उनके ध्यान में बचा है, कम से कम उतना ग्रहण कर लें। बाकि जो खो दिया उसे वापस पाने के लिये भटकना पड़ेगा। क्योंकि राम और अर्जुन सरीखे योद्धाओं को भी ज्ञान और बल भटकने से ही मिला था।
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिंदवाडा (म.प्र.)





