yatra vritant Dwarka- द्वारकाधीश मंदिर: गलियों से होते हुए भक्तों की भीड़ चली आ रही थी, गाजे-बाजे के साथ
द्वारिकाधीश मंदिर, भी जगत मंदिर के रूप मे जाना जाता है। यह हिंदू मंदिर भगवान श्री विष्णु के आठवे अवतार भगवान श्री कृष्णा को समर्पित है। मंदिर भारत के गुजरात केद्वारका में स्थित है। मंदिर 72 स्तंभों द्वारा समर्थित और 5 मंजिला इमारत का मुख्य मंदिर, जगत मंदिर या निज मंदिर के रूप में जाना जाता है, पुरातात्विक निष्कर्ष यह बताते हैं कि यह 2,200 – 2,500 साल पुराना है।मंदिर भारत में हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले चार धाम तीर्थ का हिस्सा बन गया, 8 वीं शताब्दी के हिंदू धर्मशास्त्री और दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने मंदिर का दौरा किया। अन्य तीन में रामेश्वरम , बद्रीनाथ और पुरी शामिल हैं । आज भी मंदिर के भीतर एक स्मारक उनकी यात्रा को समर्पित है। द्वारकाधीश उपमहाद्वीप में विष्णु के 98 वें दिव्य देशम हैं, जो दिव्य प्रभा पवित्र ग्रंथों में महिमा मंडित करते हैं।इसकी यात्रा के अनुभव और जानकारी विस्तार से बता रहे हैं –
लेखक श्री विक्रमादित्य सिंह
टोकरी में द्वारकाधीश मंदिर के लिए ध्वज—
द्वारका स्टेशन पर हमारी ट्रेन सुबह 9:30 बजे पहुंची, द्वारका पहुंचने के पहले से ही हमें समुद्र एवं उसके विस्तार के दर्शन होने लगे थे। ट्रेन से उतरकर जब हम अपने होटल की ओर गए तो रास्ते में दाएं ओर द्वारकाधीश मंदिर का भव्य द्वार एवं मंदिर का अधिकांश हिस्सा दृष्टिगोचर होने लगा, इसे देखकर मैं भावाविभोर होने लगा। होटल में चेक-इन एवं स्नान- भोजन करते एक बज गए, पता चला कि मंदिर के कपाट दोपहर में बंद रहते हैं, इसके पूर्व नागेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं रुक्मिणी मंदिर का दर्शन कर सकते हैं। तो हमने पहले नागेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं रुक्मिणी मंदिर का दर्शन किया। इनका वृत्तांत फिर कभी। अभी तो द्वारकाधीश मंदिर के विषय में चर्चा करते हैं।
हमारी कार के ड्राइवर सलीम ने द्वारका नगर के अंदर गलियों से होते हुए मंदिर की ओर हमें छोड़ दिया। मंदिर के शिखर को देखते हुए हम आगे बढ़े। मंदिर के निकट पहुंचने पर देखा कि दर्शन की कतार के लिए बेरीकेट लगे थे। मोबाइल, थैला, पदवेश जमा करने के काउंटर थे। यहीं पर कई युवा पंडित थे जो VIP दर्शन, रुपए 750 में करने के लिए आमंत्रण दे रहे थे। भीड़ काफी थी तो हम लोगों ने तय किया कि VIP दर्शन किया जाए।VIP दर्शन का यह मतलब नहीं है कि हम VIP हो गए थे, हमने दर्शन का शॉर्टकट अपनाया था। यह उचित तो नहीं था परंतु अच्छे से दर्शन करने, विस्तृत जानकारी प्राप्त करने की लालसा एवं कुछ तो उम्र के कारण शरीर की मांग, हमने यहां रास्ता अपनाया।
गलियों से होते हुए भक्तों की भीड़ चली आ रही थी, जो गाजे-बाजे के साथ थे, लोग सजे संवरे, माथे पर तिलक लगाए एवं राधे- राधे लिखा हुआ दुपट्टा पहने, भजन गाते,नाचते चले आ रहे थे। बीच में एक व्यक्ति टोकरी में फूलों से सजी हुई कोई सामग्री लिए हुए थे। पंडित जी ने बताया कि इस टोकरी में द्वारकाधीश मंदिर के लिए ध्वज है। प्रतिदिन ध्वज बदले जाते हैं, एवं यह ध्वज व्यक्ति या समुदाय के लोगों की मानता के आधार पर उनकी ओर से बदले जाते हैं। मंदिर में उनका पूरा समूह प्रवेश करता है।
फिर आते हैं दर्शन की कतार में।यहां अनेक लोग खड़े दिखाई दिए। क्योंकि हम लोगों ने VIP दर्शन की सहमति दे दी थी अतः एक युवा पंडित ने हमारे पदवेश एवं मोबाइल तुरंत जमा करवाकर हमें टोकन दिलवा दिया, एवं हमें गलियों से होते हुए मंदिर के निचले स्थान पर ले गया, वहां बलदाऊ जी का मंदिर था और अनेक देवी देवताओं के मंदिर, मूर्तियों के दर्शन कराया, उनका माहात्म्य बताया, भगवान कृष्ण का दर्शन कराया। इन सभी स्थानों पर पंडित जी ने हमें आसानी से प्रवेश दिलवा दिया। सभी सुरक्षाकर्मी एवं अन्य पंडित- पुजारी आपस में एक दूसरे से परिचित थे। किसी ने हमें रोका नहीं। मंदिर में क्योंकि कोई गाइड नहीं होते।परिसर में कहां पर क्या है, एवं उसका क्या माहात्म्य है, यह बताने के लिए कोई व्यक्ति नहीं होता, इन पंडित जी ने हमें सारी बातें विस्तार से बताई ।
आबादी बढ़ रही है इस अनुपात में दर्शनार्थी भी बढ़ रहे हैं परंतु दर्शनार्थियों को अच्छे से दर्शन हो, इसकी कोई व्यवस्था प्रशासन द्वारा सुनिश्चित नहीं की गई है। इसमें स्पष्ट रूप से गुजरात सरकार की लापरवाही दृष्टिगोचर होती है। टीवी पर एक विज्ञापन आता है कि “एक रात तो गुजारो गुजरात में” परंतु इसके अनुरूप गुजरात प्रशासन द्वारा व्यवस्था का सर्वथा अभाव है। जबकि इन मंदिरों में देश भर से श्रद्धालु आते हैं क्योंकि उनके मन में अत्यंत श्रद्धा का भाव होता है अतः वे सारी व्यवस्था एवं कष्ट को सहन कर जाते हैं।
भगवान के अच्छे से दर्शन हो गए। हम लोगों ने भी प्रसन्न मन से पंडित जी को यथा योग्य राशि भेंट की। पंडितों का समूह भी प्रसन्न हो गया । हमने सोचा कि इन युवा पंडितों के द्वारा भी परिश्रम किया जा रहा है, अतः इन्हें पर्याप्त मेहनताना क्यों नहीं मिलना चाहिए?
पंडित जी ने हमें नीचे गोमती नदी तक पहुंचाया एवं इसका भी महत्व बताया। यह गोमती वह नहीं है जो गंगा जी की सहायक नदी है एवं लखनऊ इसके किनारे बसा हुआ है। द्वारकाधीश मंदिर के निकट की गोमती की लंबाई, केवल लगभग एक किलोमीटर है, जो समुद्र से ही निकलती एवं मिलती जान पड़ती है एवं इसका पानी भी खारा है।
मंदिर परिसर के बाहर स्वच्छता का सर्वथा अभाव है। मोदी जी के स्वच्छता अभियान की, स्थानीय प्रशासन धज्जियाँ उड़ाता हुआ प्रतीत होता है। हम इस यात्रा में जहां भी गए नागेश्वर, ओखा,बेटद्वारका, सोमनाथ इत्यादि, हर स्थान पर कचरा, पॉलिथीन, गाय के गोबर एवं भारी संख्या में गाय, बैल, बछड़े घूमते दिखाई दिए। यह जान पड़ता है कि यहां के लोग अत्यधिक गुटखा खाते हैं एवं सड़कों पर थूकते रहते हैं। इसे नियंत्रित करना अति आवश्यक है।
पंडित जी के माध्यम से मंदिर दर्शन के कारण कम समय में दर्शन सुलभ हो गया और हमारे पास अतिरिक्त समय बच गया। द्वारका पश्चिमांत में होने के कारण यहां सूर्यास्त विलंब से होता है अतः हम लोग बड़केश्वर महादेव के दर्शन करने गए जो समुद्र के किनारे, थोड़ा अंदर है। यहां कभी बड़ का पेड़ हुआ करता था उसके नाम से मंदिर का नाम बड़केश्वर महादेव है। मंदिर के तल को समुद्र की उत्ताल तरंगे बार-बार स्पर्श करती हैं। यहां बैठकर एवं निरंतर समुद्र की ओर निहारते हुए मन को शांत किया जा सकता है।
मंदिर में फोटोग्राफी निषिध्द है, ध्वज यात्रा एवं बड़केश्वर महादेव मंदिर चित्र:-