आपको मानना पड़ेगा, आप खतरे में हैं !

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आपको मानना पड़ेगा, आप खतरे में हैं !

*अन्ना दुराई*

अब तो मुर्खताएं अपनी हदें पार कर रही है। आसानी से आमजन को बेवकूफ बना दिया जाता है और वो चर्चाओं में मूल विषय से अलग हटकर उलजुलूल बहसबाजी में जुट जाती है। हर घटना दुर्घटना, आयोजन प्रयोजन में भी कोई नया एंगल ढूंढ कर जनता को बरगलाया जाता है। किसी भी घटना- दुर्घटना पर पुलिस प्रशासन की जाँच रिपोर्ट आए या न आए, लेकिन ऐसे संवेदनशील विषयों पर सर्टिफिकेट देकर अपनी राजनीति को चमकाने का खेल साफ नजर आता है। ये सच भी है कि आजकल कई राजनेताओं की राजनीति ही इस पर टीकी है। कभी देशी, कभी विदेशी साजिश की आशंका पैदा कर जन मानस में भ्रम फैला दिया जाता है। व्यर्थ के वाद विवाद में जन सामान्य फँस जाता है। जेहाद शब्द का अर्थ युद्ध से संदर्भित है लेकिन इसका उपयोग जन भावनाओं को उकसाने में होता है। हर घटना और दुर्घटना की तह तक जाने का काम पुलिस प्रशासन का है और दोषी को सजा देने का काम अदालत का। लेकिन यहां तो दोषी भी यही ठहराते हैं और सजा भी ये ही मुक़र्रर करते हैं।

नेताओं को अच्छी तरह पता है, चुनाव जीतने के लिए आजकल क्या जरूरी है। अपने क्षेत्र, शहर के बेहाल होते हालात को लेकर कोई कांक्रीट समाधान इनके पास नहीं होता। न इनकी कोई स्टडी होती है न सोच। बस हिंदू मुस्लिम का एंगल परोस दिया जाता है और जनता सिर्फ इसके पक्ष विपक्ष में चर्चा कर अपना कीमती वक्त बरबाद कर लेती है। आतंक का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन यहां हर घटना दुर्घटना में धर्म और आतंक का इस्तेमाल कर उससे राजनीतिक फायदे लेने के प्रयास शुरू हो जाते हैं। जनता में भय और असुरक्षा की भावना पैदा करना कहीं से कहीं तक उचित नहीं है। देखें बानगी, हम आपकी रक्षा करेंगे। नहीं भाई हमें अपनी रक्षा नहीं करानी। रक्षा के लिए पुलिस प्रशासन कानून है। नहीं हम ही आपकी सुरक्षा करेंगे, आप खतरे में हैं। आप रहने दें। नहीं हम करेंगे आपकी रक्षा। मान ना मान, तु मेरा मेहमान। लेकिन हो यही रहा है। भय पैदा करने वाले भी वही हैं और रक्षा का दावा भी वही करते हैं। रक्षा के नाम पर आमदनी करने वाले रक्षकों की एक लंबी फौज तैयार हो चली है। ये सबको भी अपनी जेब में लेकर चलते हैं। किसी को कुछ नहीं समझते। जनता को मान सम्मान का जीवन जीने का हक देना राजनीति का धर्म होना चाहिए, न कि धर्म के नाम पर भय और आतंक फैलाने का काम। जनता के असली मुद्दे भी तभी वास्तविक धरातल पर अमल में आते दिखाई देंगे जब राजनीति के पैरोकार धर्म को अपनी राजनीति चमकाने का हथियार बनाने की बजाय जन जन को उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति का साध्य बनेंगे।