अपनी भाषा अपना विज्ञान: “न्यूरो”- के वर्ण- संकर रिश्ते

अपनी भाषा अपना विज्ञान: “न्यूरो”- के वर्ण- संकर रिश्ते

अधिकांश समाजों में जाना जाता है और माना जाता है कि रिश्तों में या एक ही खानदान में या गोत्र में शादी नहीं होनी चाहिये । सैकड़ों वर्षों के अनुभवों से यह समझ पनपी होगी । इसकी विपरीत दिशा वाला गलत सोच भी चलता रहा । जिसके कारण जाति व्यवस्था रूढ़ और संकीर्ण हो गई । कबीले या जाति के बाहर विवाह को गलत माना जाने लगा । यदि एक ही Gene Pool के भीतर भीतर In-breeding होता रहेगा तो संतानों की गुणवत्ता कमतर होती जायेगी । बड़े विशद विविध जीन – सागर में सम्मिश्रण होगा तो नई नई गुण वाली संततियां विकसित होने की संभावना बढ़ेगी । कितने दुर्भाग्य की बात रही कि “वर्णसंकर” एक निंदात्मक विशेषण और गाली बन गया । तथाकथित Purity या शुद्धता के भूत ने मनुष्य को बहुत हानि पहुंचाई ।

सेक्स के द्वारा जीनस के सम्मिश्रण के समानांतर आपस में कम सम्बन्ध रखने वाले विषयों और विचारों का संसर्ग भी नूतन रचनात्मकता का वाहक बनता है । मेरे प्रिय लेखक मेट रिडली [ पुस्तकें Rational Optimist, Genome, Innovation ] का, प्रसिद्ध वाक्यांश है “When Ideas have sex” जब “विचार आपस में सेक्स करते है”! इन्हीं परिस्तिथियों में बेहतर विकास होता है । विश्वविद्यालयों के अकादमिक विभागों के मध्य Inter-Disciplinary और Cross Displinary [अंतर विषयक] अध्ययनों के महत्व और उपयोगिता को स्वीकार किया जाता है, प्रोत्साहित किया जाता है, सम्मानित किया जाता है ।

एक न्यूरोलॉजिस्ट के रूप में मेरे लिये यह नितान्त संभव और सम्भाव्य था कि मैं अपने विषय के गड्डे में या खोल में भीतर ही भीतर घुसा रहता, वहीं वहीं अध्ययन व शोध करता रहता । शायद किसी एक सुपर-डुपर उप-विशेषज्ञता में निष्णात होकर कुछ ठीक ठाक काम कर लेता, शोधपत्र प्रकाशित हो जाते, पहचान बनती, प्रसिद्धि मिल जाती ।

लेकिन मेरी चित्ती और प्रवृत्ति थोड़ी अलग रही । न्यूरोलॉजी के आसपास और दूर दूर तक मेरी रुचियों का दायरा बढ़ता रहा । मैंने वाचाघात या अफेजिया का विषय चुना । ब्रेन अटैक और हेड-इंजुरी के बाद 20-25% मरीजों में भाषा-वाणी-संवाद संबधी विकार रह जाते है । इस विषय की चर्चा यहां नहीं । केवल इतना बताना चाहूँगा कि इस निमित्त मेरा परिचय दो Cross-Displinary धाराओं से हुआ – सायको – लिंग्विस्टिक्स (मनोभाषिकी) और न्यूरो लिंग्विस्टिक्स (न्यूरो भाषिकी) जिनकी चर्चा आगे है ।

न्यूरो— एक उर्वरक प्रत्यय

“न्यूरो”-शब्द के लिये हिन्दी में तंत्रिका और स्नायु का उपयोग होता है परन्तु चलन की बहुलता के कारण “न्यूरो”-प्रत्यय काम में लाया जा सकता है । न्यूरोसाईंस (न्यूरोविज्ञान) एक वृहत्‌ अर्थ वाला शब्द है जिसमें न्यूरोलाजी (स्नायु रोग विज्ञान) के अतिरिक्त बहुत से दूसरे सम्बन्धित विषय समाहित हैं ।

न्यूरोसाइंस ही ऐसा विषय हैं जो ज्ञान विज्ञानं की अनेकानेक शाखाओं को न केवल छूता हैं बल्कि उनके साथ गहन जुगलबंदी करता हैं, उन्हें प्रभावित करता हैं और उनसे प्रभावित भी होता हैं । यहाँ तक कि मेडिकल साइंस से परे, कला संकाय या Humanities (मानविकी) के अनेक विषयों के साथ भी न्यूरो के महत्वपूर्ण सम्बन्ध हैं । ये रिश्ते झूठमूठ के या सतही नहीं है । इन समस्त उप-विशेषज्ञताओं में प्रचुर साहित्य व वैज्ञानिक कलेवर उपलब्ध है । सक्रिय शोध के बहुत सारे प्रकल्प जारी हैं, रिसर्च जर्नल प्रकाशित होते हैं, इनके संगठन नियमित सम्मलेन आयोजित करते हैं ।

कोशिश कर के देखिये, चिकित्साविज्ञान की किसी अन्य शाखा के प्रत्यय के साथ ऐसे Pair बनाने की…….. कार्डियो, गेस्ट्रो, एंडोक्राइनो, पल्मो, नेफ्रो, यूरो, आंको, हिमेटो, रह्युमेंटो| किसी के साथ इतने सारे Inter-disciplinary (अंतर्विषयक), Cross-disciplinary(इतर-विषयक) क्षेत्र निर्मित नहीं होते ।

न्यूरो प्रत्यय के साथ ज्ञान विज्ञान और यहाँ तक कि कला संकाय (ह्यूमेनिटीज) और वाणिज्य संकाय की अनेक शाखाएं जुड़ कर नित नये अन्तरसम्बन्धीय विषयों को जन्म देती हैं ।

न्यूरोलाजी

तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) के विभिन्न भागों में होने वाली बीमारियों के अध्ययन को न्यूरोलाजी कहते हैं । नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) शरीर के अनेक अंग-तंत्रों (आर्गन सिस्टम्स) में से एक प्रमुख हैं | नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) के प्रमुख भाग है:- मस्तिष्क, स्पाइनल कार्ड (मेरु रज्जू), उपरोक्त दोनों से निकलने वाली Nerves (नाड़ियाँ), इन्द्रियां और मासंपेशियां । इनमें से एक या अनेक के रोगों का अध्ययन न्यूरालाजी (तंत्रिका रोग विज्ञान) कहलाता है ।

न्यूरोलॉजिस्ट कौन होते हैं?

न्यूरोलॉजिस्ट वे मेडिकल डॉक्टर होते हैं जिन्होंने नर्वस सिस्टम की बीमारियों के इलाज की अतिरिक्त स्पेशल ट्रेंनिंग के बाद डी.एम. डिग्री प्राप्त की होती हैं । इसके पहले इन्होने एम.बी.बी.एस. (साढ़े पांच वर्ष) तथा एम.डी. (मेडिसिन) (तीन वर्ष) की योग्यता हासिल करना अनिवार्य होता हैं ।

न्यूरोलॉजिस्ट बनना एक कठिन और लम्बी प्रक्रिया हैं ।

(1)    पी.एम्.टी. की तैयारी (10+2 के बाद) शुन्य से 1-2 वर्ष

(2)    एम.बी.बी.एस 4 ½ – 5 वर्ष

(3)    इंटर्नशिप 1 वर्ष

(4)    अनिवार्य ग्रामीण सेवा शुन्य से दो वर्ष

(5)    प्री.पी.जी. परीक्षा की तैयारी शुन्य से 2 वर्ष

(6)    एम्.डी. मेडिसिन 3 वर्ष

(7)    डी.एम. प्रवेश परीक्षा की तैयारी शुन्य से 2 वर्ष

(8)    डी.एम्. तीन वर्ष

(9)    फेलोशिप (सुपर स्पेश्लाइज़ेशन) एच्छिक (1-2 वर्ष)

कुल समय 12-18 वर्ष

नौकरी या प्रेक्टिस शुरू करते करते एक न्यूरोलॉजिस्ट की उम्र 30 से 40 वर्ष तक हो चुकी होती हैं । ऐसी ही गति न्यूरोसर्जन्स की होती है ।

न्यूरोलॉजिस्ट विशेषज्ञ मेडिसिन के डॉक्टर होते हैं । औषधि उपचार उनका प्रमुख उपाय होता हैं, हालांकि अन्य विधियाँ भी हैं । कुछ लोग गलती से इन्हें न्यूरो सर्जन कहते हैं । अधिकाँश विशेषज्ञ जनरल न्यूरोलॉजिस्ट होते हैं, जो न्यूरोलॉजी की सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज़ करते हैं लेकिन ऑपरेशन नहीं करते । पिछले दस वर्षों में न्यूरोलॉजी की उपशाखाओं खूब विकास हुआ हैं । अनेक विशेषज्ञ जनरल न्यूरोलॉजी के बजाय निम्न में किसी एक सब-स्पेशलिटी में चुनिन्दा काम करने लगे हैं । स्ट्रोक, एपिलेप्सी, सिरदर्द, डिमेंशिया अन्य अनेक ।

न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का सामुदायिक बोझ [ Community Burden ] बहुत अधिक है विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार न्यूरोलाजी रोग ग्रस्थ का तीसरा प्रमुख कारण होते है । लेकिन मृत्युदर से कहीं अधिक घातक है दीर्घकालिक विकलांगता का सर्वोच्च कारण होना ।

कुछ रोग ऐसे हैं, जिनसे प्रभावित मरीजों की संख्या करोड़ों में हो । शेष न्यूरोलॉजिकल अवस्थाएं कम लोगो को ग्रस्त करती हैं (लाखो या हजारों) तथा कुछ इतनी रेयर (या अत्यल्प) दुर्लभ होती हैं, कि पूरे देश में उनकी संख्या सिर्फ कुछ सैकड़ो में होगी ।

“न्यूरो” के साथ मेडिकल साईन्स के अंतर्गत बनने वाले जोड़ें

  1. न्यूरो-एनाटामी

मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) की संरचना । बाह्य स्वरूप, बड़ा स्वरूप (मेक्रो), सूक्ष्म रचना (माईक्रो) आदि सब इसमें आते हैं ।

  1. न्यूरो-फिजियोलाजी

तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) की कार्यप्रणाली । समस्त अंग कैसे काम करते हैं – उदाहरण के लिये चेतना (होश), स्मृति, व्यक्तित्व की पहचान, प्रेरक-क्रियाएं-मांसपेशियों द्वारा अंग संचालन, संवेदनाएं – विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों द्वारा बाहरी और आंतरिक संसार की जानकारी को प्राप्त करना, छांटना, संग्रहित करना, वर्गीकृत करना । उपरोक्त समस्त कार्य सम्पादित होते समय मस्तिष्क और नाड़ियों में होने वाली रासायनिक और विद्युतीय गतिविधियों के अध्ययन द्वारा कार्यप्रणा (कार्यकी) को समझा जाता है ।

  1. न्यूरो-पेथोलाजी

विभिन्न बीमारियों में नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) की रचना और कार्यप्रणाली में पैदा होने वाली विकृतियों और खराबियों के अध्ययन द्वारा समझने की कोशिश की जाती है कि रोग क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या बुरा असर डाल रहा है आदि ।

  1. न्यूरो–फार्मेकोलाजी

न्यूरालाजिकल बीमारियों के उपचार में काम आने वाली औषधियों का अध्ययन – उनकी रासायनिक संरचना, बनाने की विधि, शरीर पर प्रभाव और दुष्प्रभाव आदि ।

न्यूरोसर्जन वे मेडिकल डाक्टर होते हैं जिन्होंने नर्वस सिस्टम की बीमारियों के शल्य उपचार (आपरेशन द्वारा) की अतिरिक्त स्पेशल ट्रेनिंग के बाद एम.सी.एच. डिग्री प्राप्त की होती है । इसके पहले इन्हें एम.बी.बी.एस (साढ़े पांच वर्ष) तथा एम.एस. (जनरल सर्जरी) (तीन वर्ष) की योग्यता हासिल करना अनिवार्य होता है ।

  1. न्यूरो-सर्जरी

जैसे मस्तिष्क में ट्यूमर (गांठ), फोड़ा (एब्सेस), खोपड़ी में पानी अधिक भर जाना (हाईड्रोसिफेलस), कुछ जन्मजात विकृतियाँ, मेरू तंत्रिका पर रीढ़ की हड्डी का दबाव आदि । सिर की चोट (हेड-इन्ज्युरी) और रीढ़ की हड्डी की चोट (स्पाईनल इन्ज्यूरी) का उपचार मुख्यतया न्यूरोसर्जन द्वारा किया जाता है । हालांकि प्रत्येक चोट ग्रस्त मरीज में आपरेशन सदैव जरूरी नहीं होता । एपिलेप्सी (मिर्गी), पक्षाघात (लकवा), पार्किन्सोनिज़्म जैसे मरीजों में भी कभी-कभी शल्य उपचार उपयोगी होता है । किस मरीज को न्यूरोसर्जरी की जरूरत पड़ेगी यह फैसला, अधिकांश मामलों में न्यूरोफिजिशियन स्वयं अथवा न्यूरोसर्जन के साथ संयुक्त परामर्श द्वारा लेता है । अनेक मरीज न्यूरालाजिस्ट और न्यूरोसर्जन में भेद नहीं करपाते। चूंकि अधिकांश बीमारियों के लिये आपरेशन की आवश्यकता है या नहीं यह निर्णय प्राथमिक रूप से न्यूरोफिजिशियन द्वारा ही लिया जाता है अत: उचित होगा कि संभावित न्यूरालाजिकल बीमारी के मरीज अपने फेमिली फिजिशियन से पहले उचित राय ले लेवें ।

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  1. न्यूरोसाइकिएट्री

मनोरोग या मानसिक रोगों के लक्षण अनेक अवसरों पर न्यूरालाजिकल या न्यूरोसर्जिकल रोगों से मिलते जुलते प्रतीत होते हैं । इसलिये बहुत से मरीज शुरु में गलत विशेषज्ञ के पास पहुंच जाते हैं । पागलपन या मानसिक विक्षिप्तता (सायकोसिस) में मरीज का सोच-विचार गड़बड़ा जाता है । बोल-व्यवहार बदल जाता है, अजीब हो जाता है । शक करना, वहम करना, उत्तेजित होना, चिल्लाना, गुमसुम हो जाना, उदास रहना, आत्महत्या के बारे में सोचना जैसे लक्षण देखे जाते हैं । गलती से इनमें कुछ मरीज न्यूरोलाजिस्ट के पास परामर्श हेतु पहुंच जाते हैं । इन्हें मनोरोग विशेषज्ञ (साइकिएट्रिस्ट) के पास जाना चाहिये । न्यूरोसिस जैसे कि व्यग्रता, बैचेनी, तनाव, चिन्ता, घबराहट, निराशा हताश, ओसीडी भय आदि का उपचार भी मनोरोग विशेषज्ञ ही करते हैं ।

मन का वास कहाँ है, हमारा दिमाग । मानसिक बीमारियाँ क्‍यों पैदा होती हैं, दिमाग की सोच प्रक्रिया में गड़बड़ी आने से । फिर मनोरोग व न्यूरालॉजी में क्या अन्तर हुआ । मनोरोग में दिमाग की रचना या कार्यविधि में किसी भी जांच (जैसे सी.टी. स्कैन, एम.आर. आई. स्कैन) या मृत्यु उपरान्त शव परीक्षण द्वारा कोई खराबी या विकृति नहीं चीन्हीं जा सकती है – न गूढ़ स्तर पर (मेक्रो) न सूक्ष्म स्तर पर (माईक्रो) इसके विपरीत न्यूरोलाजिकल (और न्यूरोसर्जिकल) बीमारियों में मस्तिष्क में कोई न कोई विकृति को पहचाना जा सकता है । न केवल मस्तिष्क या नर्वस सिस्टम, बल्कि शरीर के अन्य सभी अंग तंत्र (हृदय, फेफड़े, लीवर, गुर्दा, आंतें आदि) में रोग पैदा करने वाली विधियाँ गिनी चुनी होती हैं जैसे कि – ट्यूमर, कैंसर, इन्फेक्शन (संक्रमण), प्रदाह, चोट, रक्तप्रवाह में कमी इत्यादि । मानसिक रोग के मरीजों में इनमें से कोई सी भी दिमागी खराबी जिम्मेदार नहीं होती । फिर मस्तिष्क ठीक से काम क्‍यों नहीं करता है ? कारण अज्ञात है, अल्पज्ञात है, व कठिनाई से समझे जा रहे हैं । बायोलाजिकल कारणों की भूमिका वहाँ भी हैं पर तुलनात्मक रूप से गौण । परिस्थिति जन्य व वातावरण जन्य कारण तथा जीवन अनुभव और इन्सान का जन्मजात व्यक्तित्व अधिक जिम्मेदार है ।

  1. न्यूरो-सायकोलाजी

इसके विशेषज्ञ मेडिकल डॉक्टर नहीं होते । वे दवाइयों का नुस्खा नहीं लिखते । न्यूरोसायकोलाजिस्ट ने मनोविज्ञान में एम.ए. के बाद क्लीनिकल सायकोलाजी में डिप्लोमा या डिग्री हासिल करी होती हैं । ये विशेषज्ञ मरीजों की मानसिक अवस्था के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से आकलन करते हैं ।

  1. न्यूरो-एनेस्थीसिया

न्यूरोसर्जिकल शल्य क्रिया के दौरान जब मरीज को बेहोश या सुन्न करना हो अथवा दीर्घकालिक कठिन दर्द का उपचार करना हो तो निश्चेतना विज्ञान की इस शाखा के सदस्य अपनी भूमिका निभाते हैं ।

  1. न्यूरो-एण्डोक्रायनोलाजी
    अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ (पिट्यूटरी, थायराईड, पेराथायराईड,एड्रीनल, अण्डकोष) जो तरह-तरह के हार्मोन्स बनाती हैं अन्तत: नर्वस सिस्टम द्वारा नियंत्रित होती हैं और बदले में उस पर असर डालती हैं ।
  2. न्यूरो-आंकोलाजी

नर्वस सिस्टम के केंसर (जैसे ब्रेन ट्यूमर) तथा शरीर के अन्य अंगों के केंसर का नर्वस सिस्टम पर प्रभाव ।

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  1. बच्चों के न्यूरोलॉजिस्ट (पीडियाट्रिक न्यूरोलाजी)

हालांकि सभी न्यूरोलॉजिस्ट को बच्चों के नर्वस सिस्टम सम्बन्धी बीमारियों की जानकारी होती हैं, मगर कुछ न्यूरोलॉजिस्ट इसमें विशेष दक्षता हासिल कर बच्चों के विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट होतें हैं । ये न्यूरोलॉजिस्ट इस क्षैत्र में विशेष ट्रेनिंग लिए होते हैं ।

यह न्यूरोलॉजी नहीं हैं?

निम्न तथा कुछ अन्य अवस्थाओं से प्रभावित मरीज गलती से न्यूरोलाजिस्टि के पास ईलाज़ करने पहुँच जाते है ।

  1. वेरीकोस वेन्स

इसका सम्बन्ध रक्त नली (शिरा) से न कि नर्व या तंत्रिका से । हमारे शरीर में दो तरह की रक्त नलियाँ होती हैं, धमनियाँ (आर्टरीज़) एवं शिराएं, (वेन्स) । धमनियों का कार्य शुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचाना होता है एवं शिराओं का कार्य अशुद्ध रक्त को शरीर के विभिन्न अंगों से लेकर वापस हृदय को पहुंचाना है । विभिन्न कारणों से शिराओं का मुड़ना व आकार में बड़ा हो जाना जिससे वो त्वचा के समीप नंगी आंखों से दिखने लगती है, इसे ही वेरिकोज़ वेन कहते हैं । बहुतायत में यह पांव में होती है ।

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कारण शिराओं में एक तरफा वाल्व होते हैं जो हृदय तक रक्त पहुंचाने में मदद करते हैं । किसी कारण से जब यह वाल्व अपना काम सही नहीं कर पाते तो शिराओं व अंगों में खून का जमाव होने लगता है । ‘किन्हें अधिक होता है ? प्राय: मोटे व्यक्ति, गर्भवती महिलाएं व ऐसे व्यक्ति जिनका कार्य लम्बे समय तक खड़े रहने का होता है । ऐसे व्यक्तियों में यह समस्या बहुतायत से । देखी जाती है ।

लक्षण वेरीकोज वेन त्वचा के नीचे दिखने में गहरी नीली, फूली एवं मुड़ी दिखती है । कुछ व्यक्तियों में कोई लक्षण नहीं दिखता, मगर कुछ में पांव का भारीपन पांव में जलन, थकावट पाँव में दर्द आदि समस्याएँ पाई जाती हैं । पाई जाती हैं। लम्बे समय तक खड़े रहने से या पांव लटका कर लम्बे समय तक बैठे रहने से यह समस्या प्राय: बढ़ जाती है । कुछ लोगों में गम्भीर लक्षण जैसे पांव की सूजन, पिंडलियों में असहनीय दर्द पांव त्वचा के रंग में परिवर्तन भी पाए जाते हैं ।

उपचार सामान्य लक्षण वाले मरीजों में निम्न उपाय से फायदा होता है । दबाव वाले मौजे पहनना, लेटते समय पांव को शरीर के अनुपात से उपर उठाकर रखना, लम्बे समय तक खड़े रहने या बैठने वाले कार्य से बचना / पांव के सक्रीय व्यायाम करते रहना । शरीर के वजन को नियंत्रित रखना । गम्भीर लक्षण वाले मरीजों में सर्जरी से फायदा होता है, इस हेतु सर्जन से सलाह लेनी चाहिये । प्राय: देखा गया है कि वेरीकोज वेन को नसों की बिमारी समझ कर लोग न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाते हैं, लेकिन यह रक्त-नलियों से संबंधित है, जिसके लिये सामान्य सर्जन व चर्म रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिये ।

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  1. नामर्दी, यौन-कमजोरी

यौन कमजोरी की शिकायत लेकर कुछ पुरूष कभी-कभी न्यूरोलॉजिस्ट के पास इलाज कराने पहुंचते हैं । थोड़े से मामलों में न्यूरोलॉजिकल बीमारी हो सकती है परन्तु अधिकांश में मानसिक उदासी, व्यग्रता, स्री-पुरूष में सहयोग का अभाव, डायबिटीज़, कुपोषण, उच्च रक्तचाप, अनेक दूसरी दवाईयों के दुष्प्रभाव आदि कारण होते हैं । उचित डिग्री प्राप्त सेक्‍स विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिये ।

  1. जोड़ों का गठिया

जोड़ों का गठिया आस्टियोअर्ध्रॉईटिस, खास कर घुटने के जोड़ के दर्द के मरीज न्यूरोलॉजिस्ट के पास गलती से पहुंच जाते हैं। प्रभावित घुटने के ऊपर, नीचे, आगे, पीछे कुछ मांसपेशियाँ तथा हड्डी से जुड़ने वाले टेंग्डन (कण्डरा) में सूजन व दर्द को लोग “नसों का दर्द” समझते है ।

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हिन्दी शब्द ‘नस’ के अनेक भ्रामक अर्थ इनके उपयोग से बचिये

पता नही लोगों के मन में “नस” का क्या अर्थ रहता है ? शायद हर इन्सान के समझ कुछ अलग अलग । लेविस केरोल की प्रसिद्ध कृति Adventures of Alice in wonderland, एलिस नाम की लड़की एक बार कहती है – जब मैं किसी शब्द का उपयोग करती हूँ तो उसका वही अर्थ होता है जो सिर्फ मेरे मन में रहता है, न कम, न ज्यादा । कुछ ऐसी ही स्थिति हिंदी शब्द “नस” के साथ है । ढेर सरे गलत सलत अर्थ । इस शब्द पर प्रतिबन्ध लग जाना चाहिये ।

  1. वेन्स (Veins)

रक्त नलियाँ जो पूरे शरीर से अशुद्ध/कम आक्सीजन वाला रक्त हृदय तक लाती हैं ।

बीमारी के उदाहरण – वेरिकोज़ वेन (फूली हुई शिराएं) इन्हें हिन्दी में शिराएं कहिये, नस मत बोलिये ।

यह न्यूरोलॉजी नहीं है ।

  1. आर्टरी (Artery)

रक्त नलियाँ जो आक्सीजन वाला रक्त हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं । बीमारी के उदाहरण – गेंग्रीन

इन्हें हिन्दी में धमनी कहिये, नस मत बोलिये । यह न्यूरोलॉजी नहीं है ।

  1. टेंडन, मसल लिगामेंट (Tendon, Muscle, Ligament)

मांसपेशियाँ और उन्हें जोड़ों तथा हड्डियों से बांधने वाले सख्त तन्तुओं के बण्डल । बीमारी के उदाहरण– गठिया, आस्टियोअर्राइटिस इन्हें हिन्दी में कण्डरा या तन्तु तथा मांसपेशियाँ कहिये । नस मत बोलिये । यह न्यूरोलॉजी नहीं है ।

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  1. नर्व (Nerves)

तंतु या धागों के बण्डल जिनमें बिजली बहती हैं तथा सूचना का आदान-प्रदान होता हैं । बीमारी के उदाहरण न्यूरोपेथी जिसके लक्षण है झुनझुनी, सुन्नपना, अशक्तता

इन्हें हिन्दी में स्नायु या नाड़ियाँ कहिये, नस मत बोलिये । यही न्यूरोलॉजी है ।

  1. रीढ़ की हड्डी से बाहर निकलने वाली Roots । इन्हें भी नाड़ीया या नर्व या “रूट” कहिये, “नस” नहीं ।
  2. मस्तिष्क और स्पाइनल कार्ड के अंदरूनी अंग – इनके अपने नियत नाम है । इन्हें “नस” मत कहिये ।

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“न्यूरो” – की पहुंच मानविकी के (Humanities) विषयों तक

मानविकी में वे विषय आते है जिनमे B.A. या M.A. की डिग्री मिलती है । बेचलर आफ आर्ट्स । मास्टर आफ आर्ट्स । इन्हें हम कला संकाय कहते हैं । आमतोर पर माना जाता रहा है कि विज्ञान और कला की दुनियाओं का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है । एक उत्तरी ध्रुव हैं तो दूसरा दक्षिणी । साइंस और ह्यूमेटीज का न केवल कलेवर [Content] भिन्न है बल्कि उनके सरोकार, सोचने का तरीका, शोध की विधियाँ, शिक्षण के तरीके और अभिव्यक्ति की भाषाएँ भी नितान्त जुदा है । लेकिन पिछले पचास वर्षों में परिदृश्य बदला है ।

वैज्ञानिकों ने कला क्षेत्रों में रूचि बढ़ाई । अपनी शोध की विधियों को वहां लागू करना शुरू किया । मानविकी के बहुत थोड़े से लोगों से झिझकते झिझकते हाथ बढ़ाया । ज्यादातर लोग संकोच में या विरोध में रहे । विज्ञान की पांव फ़ैलाने की प्रवृत्ति से कला वाले असहज हो उठते हैं । लेकिन इस परिवर्तन को रोकपाना उनके बूते की बात नहीं हैं ।

विज्ञान की शाखाओं में सबसे अधिक विस्तारवादी रहा है न्यूरोसाइंस । मेडिकल या अन्य साइन्स के अलावा और किसी के भी Humanities/Arts के साथ इतने विविध, विशद, प्रगाढ़, Meaningful और उपयोगी जोड़े नही बनते जितने कि “न्यूरो” के साथ ।

  1. Neuro-Psycho-Linguistics

स्वस्थ व्यक्तियों में मन के स्तर पर भाषा का संचालन कैसे होता है ?

  1. Neuro-Linguistics

स्वस्थ और रोगग्रस्त व्यक्तियों में मस्तिष्क के स्तर पर भाषा सम्बन्धी विकारों की एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और पेथालॉजी का भाषाविज्ञान की दृष्टि से अध्ययन करना ।

  1. न्यूरोफिलोसफी: चेतना, ‘स्वं का’ अहसास, स्वतंत्र-इच्छा जैसी अवस्थाओं और धारणाओं का न्यूरोसाइन्स की विधियों से अध्ययन करना, पारम्परिक दर्शन शास्त्र के सिद्धान्तों को नवीन वैज्ञानिक प्रयोगों और प्रमाणों की कसौटी पर कसना ।
  2. न्यूरो-आर्ट: कला और रचनात्मकता का प्रस्फुटन मस्तिष्क में कैसे होता है, व्यक्तिगत भिन्नताएं क्यों और कैसे होती है, कला का रसास्वादन करने वाले मस्तिष्क में क्या क्या क्रियाएं होती है? विभिन्न रोगों में कलाओं के सृजन और ग्रहण करने की क्षमताओं पर क्या असर पड़ता है?
  3. न्यूरो-एस्थेटिक्स: सोंदर्य अनुभूति मस्तिष्क में कहां और कैसे होती है? सोंदर्य की कसौटियां कितनी सार्वभोमिक व सार्वदेशिक और कितनी देश-काल के सापेक्ष होती है ? इसके मूल में दिमाग की एनाटामी, फिजियोलाजी, पेथालाजी आदि की क्या भूमिका है ?
  4. न्यूरो–इकोनॉमिक्स: मनुष्यों की आर्धिक समझ और सोच के साथ उनकी निर्णय प्रकिया का न्यूरोलाजिकल अध्ययन ।
  5. न्यूरो–पोलिटिकल साइन्स क्या रुढ़िवादी विरुद्ध प्रगतिशील या दक्षिण पन्थी विरुद्ध वामपन्धी व्यक्तियों के मस्तिष्क की एनाटामी-फिजियोलाजी-सायकोलाजी-काग्निटिव प्रक्रियाओं आदि में विशिष्ट भेद होते है ? ये अन्तर कितने जन्मजात या जिनेटिक होते और कितने वातावरण/परवरिश द्वारा ढले जाते है ।
  6. न्यूरोएन्थ्रोपोलाजी विभिन्न कबीलों, नस्लों, समाजों के नागरिकों की ब्रेन-प्रोसेसस का अध्ययन ।
  7. न्यूरोलिटरेचर गद्य और पद्य साहित्य का उदभव मस्तिष्क में कैसे होता है ? साहित्य की भाषा मस्तिष्क में कहां कहां से प्रभावित होती है ? साहित्य की समझ और उसके आनन्द की अनुभूति की न्यूरोलाजी क्या है ?

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“न्यूरो”-की दोस्तियों का राज क्या है ?

गूढ़ और सूक्ष्म स्तरों पर एक प्रकार की समानता का उल्लेख करना उचित होगा ।

मनुष्य एक समाजिक प्राणी है । रिश्ते और दोस्तियां बनाना उसका सहज प्राकृतिक स्वाभाव है । एक इन्सान के कितने रिश्ते, कितने दोस्त ? किसी के कम, किसी के ज्यादा । कुछ सतही, कुछ गहरे । कुछ क्षणिक, कुछ जीवन पर्यन्त ।

ऐसा ही मस्तिष्क की न्यूरान कोशिकाओं के साथ है । प्रतेय्क न्यूरान हजारों अन्य न्यूरान्स के साथ नेटवर्क बनाता है । न्यूरान्स के दो प्रकार के तन्तु Axon और Dendrite “साथी हाथ बढ़ाना” की तर्ज पर अगणित Synapse (अन्तगर्थन) बनाते जाते है ।

है न मजेदार बात । कुछ कुछ ऐसा ही “न्यूरो” प्रत्यय के साथ है । न्यूरोविज्ञान के साथ है । उसे भी दूर देश के बाशिन्दों के साथ अन्तरंग सम्बन्ध बनाना अच्छा लगता है ।

कहते है “सबै ज्ञान न्यूरोज्ञान” । क्योंकि समस्त ज्ञान की निष्पत्ति और भण्डारण मस्तिष्क में ही होता है ।अत: यह सहज सम्भाव्य है कि कठोर खोपड़ी में भरे हुए सवा किलो के मांस के नरम लोंदे में आटोमेटिक तार जुड़ते जाते है । विज्ञान और कलाएं, दोनों की क्रीड़ा स्थली या लीला स्थली अंततः मस्तिष्क है ।

Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).