अपनी भाषा अपना विज्ञान:संदेशवाहक जब स्वंय सन्देश हो

अपनी भाषा अपना विज्ञान:संदेशवाहक जब स्वंय सन्देश हो

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अनेक वैज्ञानिक खोजों और आविष्कारों की कहानियों में संयोग और किस्मत के अबूझ मोड़ो का उल्लेख मिलता है। जैसे कि 1925 में केम्ब्रिज, इंगलैण्ड में एक स्काटिश वैज्ञानिक एलेक्सेन्डर फ्लेमिंग के साथ हुआ था । गर्मी की छुट्टियों के बाद लौटने पर उन्होंने परेशान होकर पाया था कि पेट्री दिश में उगाये जाने वाले अनेक बेक्टीरिया की कालोनी में फफूंद लग गई थी जिसने उन्हें आंशिक रूप से नष्ट कर दिया था । उस फफूंद से पेनिसिलिन निकल कर जीवाणुओं को मार रही थी। इस समझ ने एन्टीबायोटिक्स के माध्यम से चिकित्सा विज्ञान में एक नया अध्याय जोड़ दिया था ।

कोविड -19 के वेक्सीन की कहानी में भी एक सुखद संयोग था, लेकिन संघर्ष, असफलताएं और निराशाएं अधिक थी । इस गाथा में दो प्रमुख पात्र हैं ।

  1. केटलीन करिको का जन्म पूर्वी यूरोपीय देश में 1955 में एक छोटे कस्बे में हुआ था, जब वहां घर में TV, नल से पानी और रेफ्रीजरेटर नहीं थे । मेधावी छात्रा थी । कम्यूनिस्ट तानाशाही के वातावरण मे बुद्धिजीवियों का दम घुटता या । 30 वर्ष की उम्र में पति और दो साल के बच्चे के साथ अमेरिका पहुंची । कार बेचने से मिले पैसों को एक टेडी बीयर खिलौने में छिपा कर निकले थे ।

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पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में पोस्ट डाक्टरल फेलो और फिर सह- प्राध्यापक के रूप में काम करते समय केटेलिन की [1985 – 1990] मेसेन्जर RNA में रुचि विकसित हुई। अगले 7 वर्षों में mRNA पर आधारित अनेक शोध अनुदान प्रस्ताव अस्वीकृत होते गये। ग्रान्ट देने वाली संस्थाओं को उस समय नहीं लगता था mRNA में कोई दम है। प्रोफेसर का पद जाता रहा।

1997 में संस्था की एक फोटो कापी मशीन पर कुछ शोध पत्र प्रिंट करवाते समय, वहां के इम्यूनोलाजी के प्रोफेसर ड्रियू वाइजमेन ने मुलाकात हुई । उन्हें केटेलिन की सोच में कुछ अच्छा लगा ।

  1. वाइजमेन का जन्म 1959 में यहूदी पिता और इटेलियन माता से मेसासुचेट्स, अमेरिका में हुआ था। चिकित्सा शिक्षा के दौरान वाइजमेन, एन्चॉनी फाउसी के शिष्य भी रहे। दोनों ने मिल कर करना शुरू किया ।

कोरोना की रोकथाम मे mRNA. तकनीक पर आधारित वेक्सीन का विकास सिर्फ एक वर्ष की अवधि में सम्पन्न हो पाया है । इसकी जमीन पिछले दो दशकों में अनेक वैज्ञानिकों द्वारा धीरे धीरे गढ़ी जा रही थी। विज्ञान में अचानक चमत्कार नहीं होते । इसी काम के लिये केटेलिन केरिको और ड्यू वाइजमैन को वर्ष 2023 का नोबल पुरस्कार दिया गया है ।

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जो लोग आनुवंशिकी [ जिनेटिक्स ] के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते उन्होंने भी DNA का नाम सुना होता है ।

मुहावरा चल पड़ा है: ”यह तो हमारे DNA में है ।“

(या) “हम सभी भारतीयों का DNA एक है ।“

डी – आक्सो – राइबो – न्यूक्लिक एसिड । D.N.A.

लम्बा अणु है। दो सर्पिलाकार धागे एक दूसरे से लपटे हुए रहते हैं । दोनो के मध्य जोड़ने आड़ी डण्डिया । यही जीन्स बनाते हैं ।

प्राणी या पौधे, प्रत्येक जीव की प्रत्येक कोशिका के नाभिक में 46 पतले पतले धागो (23 जोड़े में) को क्रोमोसोम कहते है। उन्हीं क्रोमोसोम पर DNA मौजूद रहते हैं।

आनुवंशिकता का अर्थ है माता-पिता व अन्य पूर्वजों से सन्तानों को प्राप्त होने वाले गुण । गुण हजारों प्रकार के। नाक का सुतंवा होना, आंख का नीला होना, बालों का घुंघरालु होना। दुबलापन, मोटापन, गंजापन, गोरा होना । आध गुण माँ से, आधे पिता से । बीमारी न होना या होना भी आनुवंशिकता पर निर्भर करता है।

मां के गर्भ में जब बच्चे का बीज बनता है उस समय आधी किस्मत तय हो जाती है। बाकी आधी किस्मत पर प्रभाव पड़ता है गर्भ के नौ महीने व जन्म के बाद की जिन्दगी का । परवरिश, खान पान, संस्कार शिक्षा-दीक्षा, वातावरण आदि सबका असर पड़ता है। गर्भ में बच्चे का बीज बनते समय आधी किस्मत की जो भृगुसंहिता लिखी जाती है उसमें से आधे मंत्र माँ के तरफ से व आधे पिता की तरफ से आते हैं। कुछ मंत्र शक्तिशाली होते हैं। जो कह दिया सो घटित होकर रहता है। अन्य मंत्रों की शक्ति कम या कमतर होती है। उनका फलित घटने के लिये “किन्तु-परन्तु यदि जबकि” वाली शर्तें पूरी होना । चाहिये। इन शर्तों का पूरा होना या न होना बाद वाली आधी किस्मत के हाथ होता है। अर्थात दोनों का मेल होना जरूरी है। कुछ मामलों में ये मंत्र मौन रहते हैं या तटस्थ रहते हैं। जिन्दगी को जो खेल खेलना है, खेल ले । आनुवंशिकता न इस तरफ, न उस तरफ। इसी को अंग्रेजी में कहते हैं नेचर (nature प्रकृति) और नर्चर (nurture परवरिश) की साझी पारी जो पूरी जिन्दगी चलती है।

गर्भ में बच्चे का बीज बनते समय आधी किस्मत की भृगुसंहिता के हजारों मंत्र मां की तरफ अण्डकोष में और पिता की तरफ से शुक्राणु में भर कर आते हैं। इन मंत्रों की भाषा संस्कृत से भी हजारों लाखों साल पुरानी और उससे अधिक क्लिष्ट है। उस भाषा की वर्णमाला में सिर्फ चार अक्षर हैं व उनसे मिलकर बनने वाले बीस-पच्चीस शब्द । गुप्त भाषा है। कूट लिपि है। लाखों संदेश हैं। प्रत्येक संदेश या मंत्र, शब्दों की एक लम्बी लड़ी है। प्रत्येक लड़ी में हजारों लाखों शब्द हैं। एक मंत्र यानि एक जीन । एक जीन यानि संकेत लिपि की एक लम्बी व दोहरी कड़ी। इन मंत्रों की एक खास विशेषता है ये अपनी फोटो कापी खुद बनाते हैं। चाहे जितनी बनाते हैं। खूब तेजी से बनाते हैं। सटीक व सही बनाते हैं। एक कोशिका से दूसरी कोशिका । एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी। फैलाते जाते हैं ।

ये संदेश, ये मंत्र, ये जीन कैसे किस्मत को नियंत्रित करते हैं ? प्रोटीन नामक रासायनिक पदार्थो की रचना व निर्माण को गति देकर। प्रोटीन भी लाखों प्रकार के। प्रोटीन के अनेक काम । कोशिकाओं व ऊतकों के निर्माण में । एन्जाइम या उत्प्रेरकों के रूप में। एण्टीबाडी के रूप में, जो विदेशी पदार्थों से लड़ती हैं । हार्मोन्स के रूप में। शरीर का चप्पा-चप्पा किसी न किसी किस्म के प्रोटीन का बना है तथा किसी न किसी किस्म के प्रोटीन द्वारा वहां की रासायनिक क्रियाएं नियंत्रित हो रही हैं। इनमें से किसी एक प्रोटीन की रचना में थोड़ी सी गड़बड़ी हुई तो पता नहीं क्या क्या ढा सकता है। हर किस्म की बीमारी सम्भव है। यदि उक्त मंत्र या संदेश कमजोर शक्ति व कम महत्व का हुआ तो शायद एकदम से बीमारी न हो, परन्तु बाद के हालातों पर निर्भर करता है। परिस्थितियां व वातावरण ठीक रहा तो स्वस्थ जिन्दगी गुजर सकती है अन्यथा बीमारी सिर उठा लेती है ।

कोशिका के नाभिक के भीतर क्रामोसोम रूपी धागों पर मौजूद DNA, अकेला कुछ नहीं कर सकता । उसके पास लिखित संदेश किसी काम के नहीं, जब तक कि उन मंत्रों की कापी बनाई न बनायी जावें तथा उस रेसिपी को नाभिक के  बाहर सायटो – प्लाज्म [ कोशिका – द्व्र्य ] में मौजूद हजारों, लाखों राइबोसोम तक न पहुंचाया जावे ।

राइबोसोम छोटे छोटे फेक्टरी है, प्लेटफार्म है, shop-floors हैं जहां नाना प्रकार के प्रोटीन का निर्माण होता है । यहां काम आते है RNA, राइब्रो-न्यूक्लिक एसिड । इस नाम के आगे डी-आक्सी जुड़े रहे तो DNA अर्थात आक्सीजन अवयव हट गया तो DNA, वरना RNA.

यह भी DNA के समान सर्पिलाकार होता है । इसकी संरचना भी DNA के समान 4-5 अक्षरों [Adenine, Thymine, Guanine, Cytosine और Uridine] को उलट पुलट कर जुड़ने वाले 20-25 शब्दों पर आधारित रहती है । RNA अणु में केवल एक सर्पिल होता है, DNA के समान दो नहीं । RNA का एक प्रमुख प्रकार है मेसेन्जर RNA______ mRNA______ संदेशवाहक आर. एन. ए. ।

कौनसा संदेश ? नाथिक के अन्दर स्थित DNA… के संदेश की कापी बन कर उसे बाहर cytoplasm में स्थित राइबोसोम तक लाना और वहां प्रोटीन निर्माण को निर्देशित करना ।

प्रोटीन प्राणियों के शरीर के निर्माण का साजोसामान है । जैसे एक इमारत के बनने में ईट, पत्थर, लकड़ी, सीमेन्ट आदि का उपयोग होता है वैसे ही काया रूपी बिल्डिंग अनेक प्रकार के प्रोटीन से बनती है । बड़े बड़े जटिल त्रि-आयामी सरचना वाले होते है प्रोटीन के मोलिक्युल्स । सेकड़ों हजारों अमीनो एसिड की श्रृंखला से बनते है प्रोटीन | हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका में अरबो खरबों प्रोटीन अणु और उतने ही mRNA रहते है — ब्रह्माण्ड में तारों की कुल संख्या के बराबर ।

DNA की खोज 1951 में तथा RNA की 1962 में हुई थी । DNA पर रिसर्च बहुत ज्यादा हुई है, RNA पर कम । क्योंकि, वह तो महज संदेश – वाहक है ।DNA जैसे बरगद वृक्ष की छाया से बाहर आने में RNA को आधी सदी लग गई। DNA के जलवे समझ में आते हैं । डबल – सर्पिल रचना, जिन्दगी के कूट संदेश, खोजे पहले हुई, नोबल पुरुस्कार मिला RNA बेचारा गरीब कजिन रह गया ।

DNA रानी मधुमख्खी के समान है । कोशिका साम्राज्य में उसके नाभिक” में क्रोमोसोम उसके सिहांसन है । RNA उसके सेवक हैं जो सन्देश बाहर ले जाते हैं ।

इन हरकारों को कम मत आंकिये । DNA रानी उनके बिना कुछ नहीं कर सकती । लेकिन अब पिछले तीन दशकों में सोच बदला है । धीरे धीरे ज्ञात हुआ है कि नाभिक में मौजूद 20 – 25 हजार जीनस [ जो DNA के लम्बे लम्बे रिबन नुमा अणुओं की बनी होती है ] का एक छोटा सा प्रतिशत [3 – 5%] ही नाभिक के बाहर प्रोटीन ऊणुओं के निर्माण को निर्देशित करता है । शेष भाग पता नहीं क्या करता ? शान्त बैठा रहता है ? RNA का निर्माण करता हैं ।

DNA की रचना में छोटे मोटे डिफेक्ट (म्युटेशन) के प्रभाव घातक होते है । अनेक प्रकार की बीमारियों का कारण बनते है । उस विकृति को ठीक कर पाने की जिनेटिक इंजीनियरिंग में अभी कम सफलताएं मिली है । अतः वैज्ञानिकों ने सोचा  कि मेल्युअल में या रेसिपी में गड़बड़ है, तो चलो ऐसा करते हैं कि सीधे प्रॉडक्ट पर ध्‌यान देते हैं। जो प्रोटीन गलत बना है उसे सुधारते है या रिप्लेस करते हैं ।

और अब जमाना आ रहा है RNA – उपचार का ।

DNA की मूल प्रति में गड़बड़ी है तो, होती रहे, उसकी संदेशवाहक कापी में एडिटिंग करके सही सही प्रोटीन क्यों न बनवाया जावे ?

वाह, कितना आसान ?

काश इतना आसान होता ।

mRNA की टीम में दो और छोटे सहायक होते हैं

tRNA – ट्रान्सफर RNA,

rRNA – राइबोसोमल RNA.

प्रोटीन के बड़े बड़े जटिल अणुओं की रचनात्मक इकाई होती है – अमीनो एसिड । लगभग बीस प्रकार के । इन्हीं के उल्टे उल्टै [ लेकिन निश्चित क्रम से ] संयोजन का काम ये तीन प्रकार के RNA करते हैं। अमीनो एसिड कोशिका के सायटोप्लाज्म में, [ नाभिक के बाहर ] भरे रहते हैं। प्रत्येक अमीनो एसिड का अपना एक विशिष्ट ट्रान्सफर RNA होता है जो उसे राइब्रोसोम [ फेक्टरी का प्लेटफार्म ] तक लाता है । mRNA की लम्बी रिबन राइब्रोसोम में से धीरे धीरे गुजरती है । चार या पांच प्रकार के न्यूक्लियासाइड [A, T, C, G या U] के क्रम के आधार पर अमीनो एसिड की पहचान होती है ।

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राइबोसोमल RNA, एक एक करके, अमीनो अम्ल को प्रोटीन के मालिक्यूल में जोड़ता जाता है।

डी. एन. ए. से mRNA कैसे बनता है?

यह प्रक्रिया भी जटिल है । एक एन्ज़ाइम काम आता है — RNA — पालीमरेज।

mRNA का पहला ड्राफ्ट, जरूरत से अधिक लम्बा होता है

RNA – Polymerare के प्रथम ड्राफ्ट की तुलना हम एक प्रेस रिपोर्टर की आरम्भिक स्टोरी से कर सकते हैं और SPLISOME नाम मालिक्यूल्स की तुलना कठोर अनुशासनप्रिय सम्पादकों से जो स्टोरी में कांट छांट करके उसे छोटा और सटीक बनाते हैं । इस प्रक्रिया को SPLICING [ SPLICING स्प्लीसिंग – समबंधन, संयोजन, सांठना, गूंथना ] कहते हैं ।

SPLICING में काम मैं एक चौथे प्रकार का RNA काम करता है snRNP-स्नर्प [SNURPS]

कोशिका के नाभिक में स्थित क्रोमोसोमस पर करीने से जमे हुए DNA जीनस की लड़ी की तुलना हम एक Cook-Book [ पाक – कला पुस्तक ] से कर सकते हैं जिसमें हजारों प्रकार की रेसिपि लिखी हुई है ।

मुश्किल यह है कि इस किताब में ढेर सारे पन्ने अतिरिक्त जुड़े हुए हैं, जो रेसिपि का भाग नहीं है । उन पर किसी काम की कोई जानकारी नहीं लिखी हुई है । इन पृष्ठों को Intron तथा काम वाले पृष्ठों को Exon कहते है । स्प्लाइसिंग प्रक्रिया में इन्हीं कचरा पेजेस को फाड़ कर निकाल दिया जाता है ।

उक्त तकनालाजी पर आधारित एक औषधि SPINRAZA को हाल ही में FDA के ने अनुमति दी । एक अति दुर्लभ न्यूरोलाजिकल रोग के उपचार मे । स्पाइनल मस्कुलकर एट्रोफी [ Spinal Muscular Atrophy ] लगभग दस हजार में एक शिशु को होने वाले इस रोग में हाथ पांव निशक्त होते जाते हैं तथा जल्दी ही मृत्यु हो जाती है । SPINRAZA को कमर की रीढ़ की हड्डी में इंजेक्शन द्वारा सीधे CSF में डाला जाता है । यह औषधि DNA की खराबी की तरफ ध्यान नही देती। Messenger RNA की Splicing के दौरान रेसिपी बुक में काम वाला एक चेप्टर जो गलती से कटाई छटाई का शिकार हो जाता है। उसे पुन: जोड़ दिया जाता है ताकि जरुरी प्रोटीन के निर्माण में बाधा न आये ।

प्रोटीन अणु के स्तर पर गड़‌बड़ी को सुधार पाना अधिक कठिन है, बजाय mRNA के स्तर पर।

कोल्ड स्प्रिंग हार्बर प्रयोगशाला, यू. एस. के बायोलाजिस्ट जस्टिन किन्नी और बायोकेमिस्ट एड्रियन कैनर, आयोनिस तथा बायोजन नाम की दवाई कम्पनियों के साथ शोध कर रहे हैं तथा नयी औषधियां विकसित कर रहे है। किन्नी और कैनर ने बताया कि स्प्लाइसोम कैसे RNA को पढ़ते हैं और कहां कहां काटना – छांटना और कहां कहां गांठ बंधना, ये सारे निर्णय कैसे लेते हैं – यह सब वर्तमान समय में शोध के अग्रिम मोर्चों में से एक है ।

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mRNA का उपयोग औषधियों के रूप में होने की उम्मीद अच्छी है क्योंकि किसी भी सफल-सुरक्षित औषधि के गुण उनमें है

(i) प्रभावशीलता सीमित समय के लिये

(ii) औषधि की मात्रा और प्रभावशीलता में समानान्तर रिश्ता

(iii) बार-बार दिये जाने पर वही वही, प्रभाव ।

अमेरिका और भारत सहित अनेक देशों में कुछ शासकीय बेबसाइट होती है clinicaltrials.gov नाम से । जहाँ जाना जा सकता है कि वर्तमान समय में किस किस बीमारी पर, किस किस औषधि द्वारा, किस किस विश्वविद्यालय में ड्रग ट्रायल जारी हैं, या पूरे हो चुके है या शुरु होने वाले है ।

वर्तमान समय मे mRNA पर पर आधारित औषधियो पर 175 क्लीनिकल ट्रायल जारी है तथा 54 शुरू होने वाले है ।

mRNA पर आधारित कुछ औषधियों का विकास
1. हृदय रोग – ओपर हार्ट सर्जरी के दौरान हृदय की मांसपेशियों में औषधि का इंजेक्शन ताकि नई मांसपेशियाँ व रक्त नलिकाएं बन पाये-
2. वॉन गिर्की रोग – एक मेटाबोलिक बीमारी । एक एन्जाइम का निर्माण न हो पाने से रक्त में ग्लूकोज की कमी
3. कैन्सर के मरीजों में प्रत्येक मरीज में पृथक पृथक वेक्सीन का विकास
4. कोविड-19 का टीका
5. आटोइम्यून रोग- साइटोकाइन्स की मात्रा का नियंत्रण
6. भविष्य आने वाली महामारियों के लिये टीका
7. ट्रांसथायरेटिन अमाइलाइडोसिस
8. हार्ट फैल्युर
9. घावों का भरना
10. फ्रेक्चर का जुड़ना
11. केन्सर की गांठ में mRNA का सीधा इन्जेक्शन
12. जीका वायरस का वैक्सीन
13. एनीमिया उपचार हेतु इरिथ्रोपाइटिन

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10 जनवरी 2020 को कोविड-19 वायरस का जीन – क्रम घोषित कर दिया गया था। राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान [ NIH, USA ] ने दो दिन में निर्णय लिया कि वायरस की सतह पर मौजूद नुकीले कांटे नुमा प्रोटीन्स में से किस प्रोटीन के विरुद्ध वेक्सीन का विकास किया जाना चाहिये। केवल एक घण्टे में, जी हां केवल एक घण्टे में उक्त प्रोटीन का निर्माण निर्देशित करने वाले mRNA को प्रयोग शाला में बना लिया गया तथा बड़े पैमाने पर मेन्यूफेक्चरिंग करने वाली कम्पनियो को सौप दिया गया । 45 दिन में उच्च क्वालिटी का mRNA क्लीनिकल ट्रायल के लिये NIH को उपलब्ध करा दिया गया था।

केटेलिन कराइको तथा ड्रू वाइजमेन का महत्वपूर्ण योगदान इस बात में रहा कि mRNA पर आधारित औषधियों द्वारा होने वाले घातक दुष्प्रभाव को कैसे कम किया जावे । हमारे शरीर का इम्यून तंत्र mRNA को विदेशी आक्रान्ता समझ कर उसे नष्ट करने में लग जाता और साथ साथ युद्ध भूमि की टूटफूट पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाती । अनेक वर्षों की कड़ी मेहनत व अगणित प्रयोगों के बाद विधियों विकसित हुई, जिनकी mRNA की रचना में कुछ परिवर्तन किये गये, एलर्जिक रिएक्शन नहीं हुई लेकिन जिस जरुरी प्रोटीन के निर्माण में उक्त mRNA का उपयोग होना था, उस कार्य में कोई खलल नहीं पड़ा । इस टीम ने एक और काम किया। mRNA को औषधि के रूप में डिलीवरी करने हेतु लिपिड (वसा) के नेनोपार्टिकल्स का वाहक के रूप में विकास करना ।

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अब स्थिति यह है कि mRNA के अनेक स्वरूपों का बड़े पैमानों पर उत्पादन करने के लिये आवश्यक फेक्टरी-मशीने आसानी से सिर्फ एक कन्टेनर में लाद कर दुनिया भर में कहीं भी भेजी सकती है ।

कटलींन अब पुनः अपने मूल देश हंगेरी लौट कर सागन यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं। हम उम्मीद करें कि  भारतीय मूल के वैज्ञानिक भी अच्छा काम करके मातृभूमि की ओर वापिस लौटें।

Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).