ऊंची पेंग बढ़ाता तन मन हर्षाता , डालियों पर बंधा झूला

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झूला

ऊंची पेंग बढ़ाता तन मन हर्षाता , डालियों पर बंधा झूला

सावन जब बादलों में झूम-झूम मेघ बरसाता है , ऋतु का उछाह जन जन के आतप्त मन को शीतल कर जाता है ।सावन के आते ही गांवों में ,बागों में ,घरों में नीम की डाली पर झूले डलने लगते हैं। महिलाएं सावन के गीत गाते हुए झूलती है ।सारा माहौल खुशनुमा बन जाता है। हमारे अनेक पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि प्राचीन युग से ही सावन मास में झूला झूलने की परंपरा प्रचलित है।

दरअसल झूला झूलना महज आनंद की अनुभूति ही नहीं ,बल्कि एक स्वास्थ्यवर्धक प्राचीन योग भी है ।विद्वानों का मानना है की जलवृष्टि के कारण धरती वाष्प निष्कासन करती है ।इसी के साथ साथ इस ऋतु में जल में अम्ल दोष के कारण जठराग्नि कमजोर हो जाती है ।ऐसे समय झूला झूलना ऊंची ऊंची पेंगे बढ़ाना तन मन को हर्षाता ही नहीं , वरन डालियों पर बंधा झूला स्वास्थ्य का सुधार करने वाला एक सुगम व्यायाम बन जाता है । झूला झूलने से हमारे मन मस्तिष्क में हर्ष और उत्साह की वृद्धि होती है ,तनाव काफूर हो जाता है इससे सांस लेने की गति में तेजी आती है , वर्णित तो यहां तक है की फेफड़ों का उत्तम स्वास्थ्य व क्रियाशीलता में वृद्धि होती है झूलने से बढ़कर व्यायाम फेफड़ों के लिए कोई है ही नहीं ।

भूल गए अब झूले सावन में अब नहीं दिखता पहले जैसा रंग Aligarh news - Forgot the swing now the color is no longer visible in Sawan

पानी में घुलनशील तमाम गैसे वर्षा काल के जल के साथ साथ पृथ्वी पर आ जाती है और वायु शुद्ध हो जाती है । झूले से शुद्ध हवा का सेवन अधिक होता है ,जो स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है ,आंखों की ज्योति के लिए हरा रंग लाभदायक है । इस मौसम में छाई हरियाली आंखों को अनूठा ऑक्सीजन दे देती है । झूला झूलते समय हाथों की मजबूत पकड़ रस्सी पर होती है, इसी प्रकार खड़े होकर झूलते समय बार-बार हचकी- मचकी लेने उठक- बैठक भी लगानी पड़ती है ।

इन क्रियाओं के कारण, जहां एक और हथेली और उंगलियों की ताकत बढ़ती है, वहीं दूसरी ओर हाथ पावँ तथा पेट का व्यायाम भी होता है । सावन में झूलने का विशेष महत्व इसलिए भी है कि, इस मौसम में समस्त वनस्पतियां अपने गुणों के उफान पर रहती है ,ऐसे समय में तमाम वनस्पतियों को स्पर्श कर आने वाली ,बहने वाली हवा, अन्य देशों की तुलना में बहुत ही लाभदायक होती है । ऐसी हवाओं के अपने विशिष्ट प्रभाव होते हैं ।इसलिए नींम , पीपल ,आंवला ,आम और जामुन के वृक्षों पर भी झूला डालने की विशेष प्रथा है ।

कहा जाता है की पीपल पर झूला बांधकर झूलने वाला रुधिर एवं अंदरूनी विकारों से मुक्त होता है आम पर झूला डाल सावन में झूलने से दिलो-दिमाग दुरुस्त होता है। बबूल की डाली पर झूला झूलने से मेद वृद्धि रुक जाती है ,तो किसी कमल युक्त तालाब में किनारे का डला झूला आमाशय के विकारों को समाप्त करता है । नीम पर डाला झूला त्वचा विकारों के लिए लाभदायक है । आप भी सावन में कभी तो झूला झूले होंगे और सावनी सेरों के बीच ऊंची ऊंची पेंग भी बढाई होगी , यह डालियों पर बंधा झूला तन मन को हर्षाता ही नहीं है , कई खट्टी मीठी हस्ती खेलती खिलखिलाती स्मृतियों से अनूठा साक्षात्कार कराता है ,बचपन की यादें झूला झूलने के उछाह को दुगुना कर देती है ।

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