क्या देश का संविधान बदल सकती है भाजपा?  

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क्या देश का संविधान बदल सकती है भाजपा?  

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– नवीन कुमार की खास रिपोर्ट

 

भाजपा और एनडीए ने मिलकर 400 से ज्यादा लोकसभा सीटें जीत ली तो क्या होगा? क्या देश के संविधान में बदलाव किया जाएगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी तो यहां तक कहते हैं कि खुद संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर भी संविधान को नहीं बदल सकते। मोदी की बात में कितना दम है, यह तो वही जानें। लेकिन, भाजपा के ही कुछ नेता दोहरा रहे हैं कि केंद्र में भाजपा के लौटने के बाद संविधान को बदल दिया जाएगा। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने साफ कहा कि संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटा दिया जाएगा। मोदी या शाह अपनी पार्टी के नेताओं को संविधान बदलने वाले बयान देने से रोक क्यों नहीं रहे हैं। इससे उनकी मंशा पर भी सवाल खड़े होते हैं।

अभी देश में चुनावी माहौल है। इस चुनाव में भाजपा मान रही है कि मोदी लहर है और लोग मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए उन्हें 400 के पार पहुंचाना चाहते हैं। हालांकि, इसको लेकर एक भ्रम जैसी स्थिति बनी है। 400 पार पहुंचने के बारे में खुद भाजपा आश्वस्त नहीं है। देश की 140 करोड़ जनता अभी संविधान बदलने के पक्ष में नहीं है। इसलिए चुनाव प्रचार में भी संविधान बदलने के मुद्दे पर लोगों की राय अलग-अलग है। जब मोदी सत्ता में लौटेंगे तब लोगों को पता चलेगा कि क्या मोदी सच बोल रहे थे। संविधान एक संवेदनशील विषय है। देश का संविधान ही लोकतंत्र को बचा सकता है। अगर संविधान जिंदा नहीं रहा तो लोकतंत्र भी जिंदा नहीं रह सकता। लोग खुली हवा में सांस तो ले लेंगे। लेकिन, इस हवा में कुछ ऐसे जहरीले तत्व भी मिले होंगे जिससे इंसान जिंदा रहकर भी मरा हुआ ही दिखेगा। इसलिए विपक्ष की तरफ से यह लगातार प्रयास हो रहा है कि लोग जागरूक रहें, ताकि चुनाव के बाद भाजपा संविधान को बदलने का प्रयास नहीं कर सके।

भाजपा के नेता यह भी कह रहे हैं कि इंदिरा गांधी ने संविधान के साथ जो किया था वह संविधान को बदलने का ही मामला था। इसका मतलब है कि भाजपा को पता है कि संविधान को कैसे बदला जा सकता है और उसमें बदलाव के बाद आम आदमी चुप ही रहने वाला है। एक बात तो तय है कि देश में लोकतंत्र है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश के सारे कार्य हो रहे हैं। ऐसे में पूरे विश्वास के साथ मान लिया जाए कि भारत का संविधान बदला जा सकता है? एक तरह से देखा जाए तो चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार को इतनी शक्ति मिली होती है कि उसी शक्ति के बल पर उसके लिए संविधान बदलना भी आसान है। संसद में बहुमत का ही जोर चलता है और यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है। यह संविधान बहुमत वाली सरकार को एक शक्ति प्रदान करता है। संविधान को बदलने के लिए कुछ शर्तें हैं, जो संविधान के आर्टिकल 368 में है। इसके जरिए संविधान में संशोधन किया जा सकता है और उसे संविधान में बदलाव के स्वरूप में पेश किया जा सकता है।

हालांकि, आर्टिकल 368 इस्तेमाल करने में केंद्र को राज्य सरकारों की भी जरूरत पड़ती है। यही वह शक्ति है जिससे विपक्ष परेशान है और आम नागरिक को इस शक्ति के बारे में बताना बहुत जरूरी है। महाराष्ट्र के लोकसभा की चुनावी रैलियों में भी विपक्ष संविधान बदलने की बात करता है। लेकिन, विपक्ष भी उस शक्ति के बारे में बात नहीं करता जो बहुमत वाली सरकार के पास एक ब्रह्मास्त्र की तरह है। इसका प्रयोग एक ही बार पूरी ताकत के साथ करना है और इसके प्रयोग से जैसे ही संविधान में बदलाव हो गया उसके बाद क्या होगा इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। हालांकि, लोग आपातकाल को भी याद करते हैं। भाजपा के कुछ नेताओं ने संविधान बदलने के मामले में जो एक गंभीर बात कही है वो यह कि संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को हटा दिया जाएगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम तो खुले तौर पर कहते हैं कि चुनाव के बाद जब भाजपा की नई सरकार बनेगी तो संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाकर संविधान को नए स्वरूप में देश के सामने पेश करेगी। गौतम का तो यह भी आरोप है कि संविधान की प्रस्तावना में कांग्रेस ने ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल किया था जिससे आंबेडकर की आत्मा को ठेस पहुंची है।

कांग्रेस के नाम पर गौतम भले ही कुछ कह लें, लेकिन यह तो सबको पता है कि देश का संविधान किस तरह से अपने सही स्वरूप में आया और उसे देश के साथ देशवासियों ने स्वीकार किया। संविधान के बारे में कोई कुछ भी बोले लेकिन उनकी बातों को सच के रूप में स्वीकार करना मुश्किल है। अगर संविधान के साथ इंदिरा गांधी ने छेड़छाड़ की थी, तो वही काम करने की छूट भाजपा को नहीं दिया जा सकता है। अगर भाजपा को छूट दी गई, तो भाजपा और कांग्रेस में फर्क ही क्या रह जाएगा और देश एवं देश के लोगों का भला कैसे होगा। भाजपा अगर इंदिरा गांधी की राह पर चलना चाहती है तो देश की जनता ने जिस तरह से इंदिरा गांधी को सबक सिखाया था, उसी तरह के सबक के लिए भाजपा को तैयार रहना पड़ेगा। वैसे, अगर भारतीय संविधान को देखा जाए तो इस संविधान की सबसे बड़ी खासियत या खूबसूरती ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द ही है। दुनिया के किसी और देश के संविधान में यह शब्द इतनी प्रमुखता से नहीं है।

कुछ हिंदूवादी मानसिकता वाले लोगों को यह शब्द चुभता है। क्योंकि, वो हिंदू राष्ट्र के बारे में सोचते हैं। यह उनकी सोच है और किसी की सोच का विरोध भी नहीं होना चाहिए।अब भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं किया जा सकता। आजादी के बाद से ही देश में हर जाति, धर्म के लोग बसते हैं और उनके बीच सांप्रदायिक एकता भी है। अलग-अलग धर्म के बहुत सारे लोग हैं जो हर धर्म को मानते हैं और बिना किसी भेदभाव के धार्मिक रीति-रिवाज में भी शामिल रहते हैं। सांप्रदायिक एकता को तोड़ने के लिए कई तरह से प्रयास भी हो रहे हैं। लेकिन भारत में मानवतावादी विचार भी काफी मजबूत है जिसके जरिए पूरी दुनिया में भारत का नाम ऊंचा है।

महाराष्ट्र में चुनावों के दौरान भी राम मंदिर और हिंदुत्व की बात जरूर की गई । लेकिन, यह मुद्दा नहीं बन पाया। क्योंकि,.महाराष्ट्र में लोग छत्रपति शिवाजी महाराज को मानते हैं। यह दीगर बात है कि शिवाजी महाराज हिंदवी स्वराज के संस्थापक थे। लेकिन, उन्होंने सर्वधर्म समभाव की नीति अपनाई थी। यह नीति महाराष्ट्र में मानी जाती है। महाराष्ट्र आंबेडकर और महात्मा फुले की भी धरती है। इसलिए यहां चुनाव में हिंदुत्व बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। चुनावी रैलियों में भाजपा की ओर से कांग्रेस के अलावा उद्धव ठाकरे और शरद पवार को निशाना बनाया जा रहा है। ठाकरे और पवार पलटवार करते हुए संविधान बदलने के मुद्दे को उठा रहे हैं। आज के दौर में राजनीतिक स्तर पर युवाओं को भ्रमित भी किया जा रहा है। अगर विपक्ष ने संविधान बदलने के मुद्दे को राजनीतिक हथियार बनाया है और इस मुद्दे पर भाजपा खुद को साधु बताते में लगी है, तो युवाओं को इस बारे में अपनी तरह से अध्ययन करने की जरूरत है।

आजादी के बाद से संविधान में अब तक सौ से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं। संशोधन ही बताता है कि संविधान कितना बदल गया है। हालांकि, संविधान में संशोधन होना भी जरूरी है। क्योंकि, संविधान समय और काल के अंतर्गत लिखे गए हैं और बदलते समय में उसमें दर्ज कई कानून कमजोर पड़ जाते है। इसलिए उसमें बदलाव करके उसे देश और आम नागरिक के लिए मजबूत भी किया जाता है। लेकिन, संविधान की अपनी आत्मा भी होती है जिसे बदला नहीं जा सकता है। ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भी हमारे देश के संविधान की आत्मा है। संसद को जो शक्ति मिली हुई है उसका प्रयोग करके ‘धर्मनिरेपक्ष’ शब्द का भी संशोधन किया जा सकता है। इस बारे में कानून के जानकारों की राय अलग हो सकती है। लेकिन इसी संविधान में जो प्रक्रिया बनी हुई है उसकी शक्ति का प्रयोग करके संविधान के कुछ पन्नों पर कुछ शब्दों को बदलना आसान हो सकता है। बावजूद इसके भाजपा की मंशा को भी समझना जरूरी है।

क्या भाजपा की राजनीति में सिर्फ कांग्रेस को मिटाना ही है या संविधान में संशोधन करके शासक के तौर पर देश और दुनिया में कोई और बदलाव लाना चाहती है। संविधान बनाने के बाद आंबेडकर के नवंबर 1949 में दिए गए भाषण में उनका यह कथन काफी महत्वपूर्ण है-संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है। यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों। यह कौन कह सकता है कि भारत की जनता और उसके दल कैसा आचरण करेंगे। अपना मकसद हासिल करने के लिए वे संवैधानिक तरीके अपनाएंगे या क्रांतिकारी तरीके? यदि वे क्रांतिकारी तरीके अपनाते हैं तो संविधान चाहे जितना अच्छा हो, यह बात कहने के लिए किसी ज्योतिषी की आवश्यकता नहीं कि वह असफल ही रहेगा।