राहुल गाँधी की यात्रा का लक्ष्य घावों पर नमक या मरहम ?

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राहुल गाँधी की यात्रा का लक्ष्य घावों पर नमक या मरहम ?

गांधीवादी रास्ते आदर्श ही हैं | लेकिन हर कोई महात्मा गाँधी नहीं हो सकता | विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण ने गांधीवादी रास्ते अपनाकर भूदान के लिए पदयात्राएं की | लाखों एकड़ जमीन संपन्न किसानों से लेकर गरीब किसानों को दिलवाई | यह सामाजिक क्रांति जैसा प्रयास था | भूदान के लिए देश भर में हजारों किलोमीटर की पद यात्रा में किसी सरकार को हटाना या कोई नई सरकार बनाना लक्ष्य नहीं था | राहुल गाँधी दावा तो यह कर रहे हैं कि उनकी पद यात्रा राजनीतिक और चुनावी लाभ के लिए नहीं है | लेकिन जगह जगह उनके भाषण भाजपा और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को हटाने और दो बड़े पूंजीपतियों की प्रगति पर रोक लगाने को लेकर चल रहे हैं | इससे उनके पार्टी के लोग अथवा वर्तमान सत्ता व्यवस्था से नाराज समूह उत्साहित – प्रसन्न हो सकते हैं | लेकिन सामान्य नागरिक सवाल उठा रहे हैं कि आर्थिक समस्याओं के घावों से राहत देने के लिए वह या उनकी पार्टी कहाँ कुछ कर रही है ? वह तो केवल घावों पर नमक मिर्च डालकर जनता का दर्द बढ़ा रहे हैं ? जबकि देश के 17 राज्यों में गैर भाजपा सरकारें भी हैं , दो तीन प्रदेशों में स्वयं कांग्रेस और सहयोगी दलों का राज है |

इस पद यात्रा के लिए  करोड़ों के खर्च से तैयार 60 ट्रक कंटेनर , उनमें आधुनिक सुख सुविधा , राहुल के लिए एयरकंडीशनर – फ्रिज का इंतजाम है | क्या गाँधी , विनोबा , जे पी की यात्रा में इसकी दस प्रतिशत सुविधा भी किसीने देखी या कल्पना की होगी ? जानकर 3750 किलोमीटर की राहुल यात्रा पर औसतन प्रतिदिन दो करोड़ रुपए  का  कुल खर्च होने का अनुमान लगा रहे हैं | इसमें ट्रक कंटेनर , उसका ईंधन , खाना पीना तथा अन्य व्यवस्था शामिल है | लेकिन यदि गांधीवादी रास्ता होता , तो इस ताम झाम के बजाय रास्ते के किसी गाँव कस्बे में सादगी से विश्राम आदि करके ग्रामीणों के लिए कुछ आवश्यक सुविधाएं देकर क्या जनता को राहत के साथ थोड़ा समर्थन नहीं मिलता |इसमें कोई शक नहीं कि यात्रा के दौरान राहुल गाँधी को लोगों से मिलकर बात करने के अवसर मिल रहे हैं | सुबह दो तीन

 घंटे  चलकर पांच छह घंटे विश्राम और चर्चा और फिर चार घंटे यात्रा सुखद अनुभव कहा जा सकता है | लेकिन कांग्रेस पार्टी इतनी पुरानी है और जन  समस्याओं की जानकारी तो क्षेत्र के कार्यकर्ता भी दे सकते हैं | देसी टूरिज्म की तरह लोगों से मिलना , फोटो खिंचवाना और पार्टी के अपने लोगों को सक्रिय करने से तात्कालिक लाभ भले ही हो , दूरगामी लाभ कितना होगा ?

भव्यता से एक हद तक गरीब लोग  चकाचौंध हो सकते हैं | लेकिन एक अन्य गैर भाजपा नेता मुख्यमंत्री के  गांधीवादी सादगी का उदाहरण शायद राहुल ही नहीं देश के बहुत कम लोग जानते होंगे | वह हैं ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक , जो लगातार पांच चुनाव जीतकर लगभग 23 वर्षों से सत्ता में हैं | वह ओडिसा के ही लोकप्रिय नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के पुत्र हैं | संपन्न परिवार का पैतृक निवास है , नवीन पटनायक सरकारी मकान के बजाय अपने घर में ही रहते हैं | हमेशा सादा कुर्ता पाजामा पहनते हैं | यह देखकर आश्चर्य होता है कि दफ्तर में उनकी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर लेदर का कवर भी थोड़ा फटा पुराना है |   वह   वर्षों तक सरकारी मारुति स्टीम कार का इस्तेमाल करते रहे , जबकि पुरानी होने पर उसकी हालत ख़राब थी | यहाँ तक कि ऊँचा कद होने से बैठने में थोड़ी असुविधा लोग देख सकते थे | आख़िरकार एक बार वर्षा के दौरान कार रुक गई , तब बदलने के लिए अधिकारियों ने एस यू वी गाडी लेने का प्रस्ताव रखा , लेकिन नवीन पटनायक ने सामान्य मारुति एस एक्स 4  लेने की ही स्वीकृति दी | निजी कार के नाम पर उनके पास अब भी 1980 के मॉडल की अम्बेसैडर गाडी है , जिसकी बाजार में कीमत दस हजार रुपए से कम की लगाई जाती है | पटनायक अपनी मारुति गाडी से प्रदेश के विभिन्न इलाकों – गांवों में घूमते हैं , सीधे जनता से संवाद करते हैं और निरंतर विकास के जरिये अपनी और बीजू जनता दल की ताकत बनाए रखे हैं | यही नहीं भाजपा की केंद्र सरकार , प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और प्रतिपक्ष के नेताओं से संवाद कामकाजी सम्बन्ध बनाए रखते हैं | वह प्रधान मंत्री बनने की किसी होड़ में शामिल होने के उत्सुक भी नहीं हैं | इसलिए उन्हें असली गांधीवादी रास्ते से जनता की सेवा करने वाले नेता कहा जा सकता   है |

जहाँ तक राजनीतिक दलों  और पूंजीपतियों के बीच संबंधों की बात है , राहुल गाँधी सत्तर के दशक का फार्मूला अपना रहे हैं | सत्ता में हों या प्रतिपक्ष में इस तरह की आरोपबाजी जनता भी समझती है | जय प्रकाश नारायण के बिहार से शुरु किए गए आंदोलन पर स्वयं प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने एक सभा में कह दिया था कि ‘ धनाढ्य लोगों से पैसे लेने वालों को भ्रष्टाचार के विषय में बात करने का कोई अधिकार नहीं है |’ अप्रत्यक्ष रुप से यह जे पी और रामनाथ गोयनका के संबंधों और उनके सहयोग पर हमला था | तब जे पी ने बाकायदा एवेरीमेंस अख़बार में लेख लिखकर कह दिया था कि सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में उनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और साधन संपन्न मित्रों के सहयोग के बिना कैसे काम कर सकते हैं | आज लोग यह बात उठा रहे हैं कि राहुल गाँधी की पद यात्रा या पार्टी के खर्चों में अधिक हिस्सा तो पूंजीपतियों का ही होगा | इसी तरह राहुल दिन रात अम्बानी अडानी को मोदी सरकार द्वारा ठेके , जमीन और लाभ देने के आरोप लगाते रहते हैं , लेकिन कांग्रेस की सरकारें राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इन पूंजीपतियों की कंपनियों से पूंजी निवेश करने के लिए ठेके , रियायती जमीन सुविधाएं दे रही हैं | सच तो यह है कि राजीव गाँधी , नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के कांग्रेस राज में ही इस तरह के पूंजीपतियों और  कंपनियों का साम्राज्य बढ़ता गया | इससे पहले बिड़ला टाटा की तरक्की और उन्हें सरकारी सहयोग पर कम्युनिस्ट तथा मजदुर संगठन नारेबाजी करते थे | पूंजी और उधोग व्यापार , सड़क बिजली , हवाई अड्डों , संचार – टेक्नोलॉजी के बिना आखिर समाज और देश की प्रगति कैसे हो सकती है | सरकार से अधिक रोजगार तो निजी क्षेत्र से ही मिलेगा | दुनिया का कौन सा देश सरकारी नौकरियों  से चल रहा है ? राजनीति , सत्ता और विरोध की कोई सीमा स्वयं राजनेताओं को तय करना चाहिए | जहरीले वातावरण से समाज में जागरुकता के बजाय नफ़रत और अराजकता पैदा होगी , जिसके दूरगामी परिणाम सबके लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क इंडिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं )

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।