राष्ट्र निर्माण की बुनियाद वृद्धजन

आज़ादी के अमृत महोत्सव के साथ देश का हरवर्ग उत्साहित है । 1947 में लंबे संघर्ष के बाद मिली स्वतंत्रता बहुत महत्व रखती है ।
आज वर्तमान पीढ़ी और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी पीढ़ी के बीच सेतुबंध बना हुआ है जो हमेशा त्याग , बलिदान और प्राणोत्सर्ग का स्मरण कराता रहेगा ।
हमें कभी भूलना नहीं चाहिए कि कितनी यातनाओं और बलिदान उपरांत देश आज़ाद हुआ था । यह भी महत्वपूर्ण है कि तत्कालीन युवा देशवासियों और वर्तमान वृद्धजनों का समर्पण ही है जो हम सब स्वतंत्र भारत में सांस लेरहे हैं ।
आज अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस है । हम भारत के संदर्भ में देखें तो 2001 की जनगणना में 7.7 प्रतिशत बुजुर्गों की जनसंख्या थी जो अब बढ़कर 11 प्रतिशत से अधिक होने जारही है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि 2050 – 60 तक यह बढ़कर 44 करोड़ से अधिक होसकती है ।

आज देश युवा है पर यह बुजुर्गों की श्रेणी में होगा । ऐसे में सरकारें हो या समाज , यूएनओ हो या अंतर्राष्ट्रीय मंच सभी को बुजुर्ग होती पीढ़ी के अनुकूल नीतियां , कार्यक्रम और योजनाएं बनाना होगी ।
यह बहुत अहम है कि राष्ट्र निर्माण में वृद्धजनों की भूमिका बुनियादी रूप से बहुत बड़ी रही है । अनुभव का खजाना और राष्ट्र प्रेम वृद्धजनों में अटूट है । उनका संरक्षण और सुरक्षा देशहित में होगी ।

वृद्धजनों के स्वास्थ्य , सुरक्षा और संपत्ति जैसे मामलों में राज्य और केंद्र सरकार प्रयत्नशील रही हैं ।
सन 2000 को तो राष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष मनाया गया । जनवरी 1999 में बुजुर्गों के लिए राष्ट्रीय नीति बनी । मानव अधिकार आयोग देश – प्रदेश में
सभी के अधिकारों के साथ वृद्धजनों के हितसंरक्षण में सजग है ।
कई बार देखने में आया है कि बुजुर्गों को अन्यान्य कारणों और जानकारी के अभाव में समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।
अब जिला व तहसील स्तर पर वृद्धजन केंद्र बने हैं जो संगठित होकर मदद कर रहे हैं ।
आयकर में छूट , प्रधानमंत्री वयवन्दन योजना , पेंशन , सामाजिक सुरक्षा , सामुहिक बीमा , स्वास्थ्य देखभाल आदि को नीतिगत प्रावधानों में जोड़ दिया है । बुजुर्गों के परिजनों द्वारा दुर्व्यवहार , ठुकराया जाने जैसे मामलों में दंडनीय अपराध माना है । भरण पोषण मामले का निराकरण निश्चित अवधि में करना जरूरी है ।
बुजुर्गों को विधिक सहायता भी निःशुल्क उपलब्ध कराई जारही है । प्रताड़ना , दुर्व्यवहार , पारिवारिक झगड़े ,आदि मामले परिवार परामर्श केंद्र एवं काउन्सलर द्वारा हल किये जाते हैं ।

जीवन में चुनौती बनी रहती है । जीवन के व्यस्तता भरे 50 – 55 सालों बाद वृद्धजन समाज और सामाजिक विकास में भागीदारी के साथ सुरक्षित और स्वस्थ जीवन की अपेक्षा करते हैं
शरीर है जीवन के 50 – 60 आयु के साथ शारीरिक व्याधियों का प्रभाव होता है । अल्जाइमर , डिमेंशिया , शुगर , रक्तचाप , हार्ट डिजीज , अशक्तता , फुफ्फुस रोग आदि का प्रकोप होजाता है उन्हें देखभाल की जरूरत है ।

राष्ट्र निर्माण की बुनियाद वृद्धजनों को ऐसा वातावरण मिले ताकि वे शांतिपूर्वक , रचनात्मक और संतोषजनक ढंग से शेष जीवन व्यतीत कर सकें ।
सरकारी क्षेत्रों में पेंशन व अन्य सुविधाएं दी जारही हैं पर असंगठित क्षेत्रों में स्थिति ठीक नहीं है ।

तत्कालीन और वर्तमान पीढ़ी ने राष्ट्र विकास और निर्माण में योगदान किया है । यह अनुभवों का खजाना है । जीवन के उत्तरार्द्ध में बुजुर्गों की विशेष देखरेख होना चाहिए । यह जताने और बताने के लिए नहीं अपितु उन्हें महसूस भी होना चाहिए । क्योंकि उनके योगदान , समर्पण और संघर्ष के साथ कठिन परिश्रम से मजबूत राष्ट्र की नींव पड़ी ।
बुनियादी रूप से देश को मजबूत बनाने वाली पीढ़ी को बेहतर स्वास्थ्य और सुरक्षा मिले यह हम सबके साथ समाज और सरकार का दायित्व है ।
आज अक्षम और अशक्त होसकती है पर देश निर्माण और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में उनका बहुत बड़ा योगदान है ।

किसी ने सच ही लिखा है – – – – – –
है बुजुर्ग – वृद्ध नमन तुम्हें ,
तू देश की शान है ,
मेरा भारत महान है ।

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Ghanshyam Batwal
डॉ . घनश्याम बटवाल