कहानी :“दूसरा जनम”

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कहानी

                                            “दूसरा जनम”

मधूलिका श्रीवास्तव

बस स्टाप पर बस का इन्तजार कर रही थी। अचानक लाइन में मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी, बड़ा जाना पहचाना सा चेहरा है। याद आया अरे ..ये तो उर्वशी है, कॉलेज की सबसे खूबसूरत और चंचल लड़की ,कहाँ ये उदास उजड़ा रूखा कांतिहीन चेहरा ! मुझे विश्वास ही नहीं हुआ।मन नहीं माना तो मैंने उसकी तरफ कदम बढ़ाया-
-“तुम उर्वशी हो ना?”। उसने मेरी तरफ पलट कर देखा, उसके चेहरे पर हल्की सी चमक आई और तुरन्त ही बुझ गई धीरे से बोली
– “हाँ ..मैं उर्वशी ही हूँ … ”
-“ ओह उर्वशी तुम्हें क्या हो गया है, … तुमने अपना ये क्या हाल बना रखा है, तुम्हारी तो शादी हो गई थी ना…और तुम … तुम तो अमेरिका चली गई थीं ना, यहाँ कैसे ? क्या हुआ ? सब ठीक तो है ना ?” मैंने हड़बड़ा कर पूछा!
-“अरे अरे मुझे कुछ बोलने दोगी या सवाल पर सवाल दागती रहोगी? “
-“अरे बताओ ना … तुम्हें इस रूप में देखने की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी ,कितनी हंसमुख खिले गुलाब सी हुआ करती थीं, अब क्या हो गया है, मुझे बहुत तकलीफ हो रही है तुम्हें इस तरह देखकर !”मैंने हैरानगी से कहा।
-“क्या बताऊँ,मैंने एसा नरक भोगा है कि तुम सुन नहीं सकोगी ।
-“क्या कह रही हो तुम तो शादी कर अमेरिका चली गईं थीं ना ? “ मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी ।
-“अमेरिका कोई स्वर्ग तो नहीं है मैंने … मैंने वहाँ नरक देखा है । सुनने का समय है तुम्हारे पास ?”
मैंने घड़ी देखी
-“अरे नहीं इस समय तो पाँच बज रहे हैं। बहुत देर हो जायेगी,कल मिलते हैं किसी समय। अच्छा मैं दो बजे तुम्हें कालेज के बाद मिलती हूँ। इतने में मेरी बस आ गई और मैं दौड़ कर बस में चढ़ गई।
रास्ते भर मैं उर्वशी के बारे में ही सोचती रही।कितनी हंसमुख और चंचल लड़की थी। पढ़ने में तो कुछ खास नहीं थी पर नाच गाने में सबसे आगे ,कॉलेज का कोई भी प्रोग्राम उसके बग़ैर अधूरा ही रहता। उसकी हर लड़की से दोस्ती थी। सब लोग उसे पसंद करते थे। ,
एक दिन कॉलेज आई तो बड़ी खुश थी, कहने लगी अगले महीने की 24 तारीख को मेरी शादी है। सब लोग पूछने लगे -कौन है, क्या करता है, कहाँ रहता है, तू उसे पहले से जानती थी क्या ?
-अरे अरे रूको, सब बताती हूँ। अरविंद नाम है उसका। हम लोग एक ही बिल्डिंग में रहते हैं। मैं उसे बचपन से जानती हूँ।
-अच्छा तो ये प्रेम का चक्कर है, तू तो बड़ी छुपी रूस्तम निकली लड़कियाँ चिल्लाईं। -अरे नहीं-नहीं वो तो अमेरिका में पढ़ कर वहीं नौकरी करने लगा है।पाँच साल से तो मैंने उसे देखा भी नहीं है। उसके अंग अंग से ख़ुशी टपक रही थी। उसके कुछ दिनों बाद उसकी शादी हो गई आज तकरीबन ढाई साल बाद मिली वो भी इस हाल में। अगले दिन दो बजे वो कॉलेज आ गई हम दोनों ही अपनी पुरानी जगह जा कर बैठ गये। उर्वशी ख़ामोश थी, मैं भी तय नहीं कर पा रही थी क्या बात करूँ ? काफी देर हम लोग चुप बैठे रहे।मुझसे रहा नहीं गया । -“बता न उर्वशी क्या हुआ है तेरे साथ, तेरी खामोशी मुझे बेचैन किये दे रही है, अरविंद तो ठीक है ना। वो ख़ामोश निगाहों से मुझे देखती रही, फिर बोली
– उस दिन कॉलेज के बाद जब घर पहुँची तो मम्मी ने बताया
-अरविंद आ गया है। उसके पास ज्यादा छुट्टी नहीं है, इसी सोमवार को शादी करके वह बुधवार को चला जायेगा , तुम्हारा वीसा जैसे ही तैयार होगा तुम्हें भी भेज देंगे।
मुझे क्या एतराज हो सकता था, सोमवार को खास लोगों के बीच हमारी शादी हो गई ।वीसा के लिये कोर्ट का रजिस्ट्रेशन जरूरी था। मंगलवार उसमें गुजर गया और बुध की अल सुबह वो अमेरिका चला गया, मैं उसे ठीक से देख भी नहीं पाई न ढंग से कुछ बात हो सकी।
-“अरे असल बात बता न तेरा ये हाल कैसे हुआ ।” मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी ।
-“वही तो बता रही हूँ थोड़ा धीरज रख ।
हाँ तो महीने भर बाद मेरा वीसा आ गया , अरविंद ने ही टिकट भेजा ।नियत दिन मैं अमेरिका पहुंच गई । अरविंद लेने आया था उसने मेरा सामान गाड़ी में रखा और मुझसे मेरा पासपोर्ट वीसा लेकर अपनी जेब में रख लिया ।
वह बिल्कुल चुप था । मैं भी उसे चुप देख बाहर का नजारा देखने लगी।
घर पहुँच कर बोला मैं काम से जा रहा हूँ, थोड़ी देर में आता हूँ।थोड़ी देर तो मैं चुपचाप बैठी रही फिर पूरे घर का मुआयना किया । साफ सुथरा सजा हुआ घर था। मुझे भूख लगी थी। खाने के बाद नहाकर तरोताजा हो गई अरविंद तब भी नहीं आये थे।
मैंने खाना बनाया और इंतजार करने लगी। मैंने भारत फोन लगा कर दोनों मम्मी से बात की, उन्होंने अरविंद के बारे में पूछा तो मैंने पहला झूठ बोला कि वो नहा रहा है। इन्तजार करते करते जाने कब आँख लग गई। आँख खुली तो देखा अरिवन्द टेबल पर बैठकर खाना खा रहा है। मुझे देखा तो कहने लगा
-“आओ खाना खा लो, बहुत अच्छा खाना बना है, तुम तो बहुत अच्छा खाना बनाती हो।” मुझे कुछ बल मिला मैंने कहा
-“मुझे जगाया क्यों नही।”
-“चलो आओ खाना तो खा लो।” मैं चुपचाप खाने लगी।मुझे चुप देख कहने लगा ।
– “लगता है नाराज हो, अरे भई जरूरी काम था कल से ये बन्दा एक हफ्ते तुम्हारी सेवा में रहेगा ।मैंने छुट्टी ले ली है।”
उसके बाद वो एक हफ्ता ही नहीं कई महीने पंख लगाकर हवा में उड़ते रहे। अरविंद मुझे खूब प्यार करते , मेरा खूब ध्यान रखते। पर नहीं जानती थी कि हलाल करने से पहले बकरे की जिस तरह खूब सेवा की जाती है ये वही सब था।
-“क्या मतलब हलाल करने का …” मुझसे रहा नहीं गया ।
-“वही तो बता रही हूँ ।एक दिन कहने लगा
-“बहुत मजे कर लिये अपना सब सामान उठाओ और वो पीछे वाले कमरे में रखो, अब तुम्हें वही रहना है। जैनी आने वाली है, मैंने उससे कहा है कि मैं इंडिया से एक मेड लाया हूँ ,जो हमारा घर सम्हालेगी और बेटे का भी ध्यान रखेगी। “
मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई ।
-“तुम शादीशुदा हो तो मुझसे शादी क्यों की ?” मैं तड़प कर बोली ।
वो ज़ोर से हँसा और बोला
-“ तुम्हें अपनी मेड बनाने … अब सुनो जैनी डिलीवरी के लिये न्यूयार्क गई हुई थी। मेरा बेटा अब चार महीने का है ।वो भी नौकरी करती है । तुम्हें हम लोगों के लिये सुबह का नाश्ता बनाना है और दिन भर बच्चे को सम्हालना है, सुबह 9 बजे से शाम के 8 बजे तक तुम इस घर की मालिकन हो चाहे जो करो। पर शाम 8 बजे से सुबह 9 बजे तक तुम्हें मेड ही बना रहना है ज्यादा होशियारी दिखाने की कोशिश मत करना ।मैं एकदम बिफर पड़ी
-“तुमने क्या मुझे अपना गुलाम समझा है, पढ़ी लिखी हूँ। तुम्हारी गुलाम बनने यहाँ नहीं आई थी मैं पुलिस में शिकायत कर दूँगी ।अभी इसी समय पापा को फोन लगाती हूँ। बेवकूफ समझा है क्या ? मैं कोई कमजोर लड़की नहीं हूँ। जैसा तुम चाहोगे वैसा नहीं होगा ।” वो जोर-जोर से हँसने लगा
-“मैडम कैसे फोन लगाओगी फोन में ये सुविधा ही नहीं है। पुलिस के पास जाओगी तो तुम्हारा पासपोर्ट माँगेंगे वीसा माँगेंगे..है तुम्हारे पास ? पासपोर्ट न होने की सूरत में अन्दर कर दी जाओगी । यहाँ कानून बहुत सख्त है।”
मैं एकदम चुप हो गई मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं अवाक् उसे देखती रह गई । वो एक बार फिर जोर से हंसा
-“हो गई बोलती बंद, उठाओ अपना सामान और निकलो यहाँ से। उसकी आवाज में बहुत क्रूरता थी और चेहरे पर एक वहशियाना चमक। पिछले कुछ महीनों का अरविंद न जाने कहाँ था। मैंने रोना शुरू कर दिया ।
-“अरविंद तुम्हें क्या हो गया है, तुमने मुझसे शादी की है, हमने अपना बचपन साथ गुजारा है, क्या हो गया है तुम्हें। अगर तुमने शादी कर ही ली थी तो मुझसे क्यों की, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था जो मेरा जीवन इस तरह खराब कर रहे हो ?”
-“चुप करो, तुम्हारा भाषण नहीं सुनना है मुझे। जल्दी करो मुझे जाना है। मैं नहीं चाहता जैनी को किसी तरह की परेशानी हो। “ वह चीखा ।
वो मेरी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं था ।मुझे बहुत ग़ुस्सा आ गया, मैं ग़ुस्से से चिल्लाई
– “मैं तुमसे दबने वाली नहीं हूँ। मैं जैनी को सब कुछ बता दूँगी ।”
मेरा इतना कहना था कि उसने अपनी कमर से बेल्ट खींचा और तड़ातड़ मुझ पर बरसाने लगा । मैं चीखने लगी पर उस पर कोई असर नहीं हुआ। मैं बेहोश हो गई । मुझे जब होश आया तो मैंने देखा मैं पीछे वाले कमरे में हूँ और मेरा सब सामान भी वहीं पड़ा है। मैं जैसे तैसे उठी, मेरा पोर-पोर दुख रहा था । मैं दुख और अपमान से रो पड़ी। काफी देर तक रोती रही। मैं घर में बिल्कुल अकेली थी । मैंने सोचा अभी मौका अच्छा है, मुझे यहाँ से भाग जाना चाहिये , पर मैं घर में बन्द थी। मैंने बहुत कोशिश की, पर बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला । मैं खूब चिल्लाई पर वहाँ दूर दूर तक कोई नहीं था। फोन भी काम नहीं कर रहा था।निराशा और हताशा में मैं फिर बेहोश हो गई । आधी रात को मुझे होश आया, घर में सन्नाटा था। मैं जैसे तैसे उठी। अरविंद अभी तक आया नहीं था। मुझे फिर रोना आने लगा । हफ्ता भर एसे ही निकल गया । अरविंद का कहीं पता नहीं था, मैं घर में कैद थी।एक दिन सुबह अरविंद आया और कहने लगा हम लोग शाम को आने वाले हैं, ध्यान रखना वरना फिर वही हाल कर दूँगा । मैंने आव देखा न ताव उसे एक जोरदार तमाचा जड़ दिया और उस पर टूट पड़ी, वो एकदम अचकचा गया। मगर फिर उसने मुझे धक्का देकर गिरा दिया और बहुत मारा। कहने लगा
– “वाह वाह, तू तो बड़ी हिम्मत वाली निकली, ये हिन्दुस्तानी चिड़िया तो बाज निकली ।मैं कह चुका हूँ तुम्हारा यहाँ कोई नहीं है ,मेरे रहमोकरम पर ही तुम्हें रहना पड़ेगा इसलिए भलाई इसी में है कि चुपचाप पड़ी रहो ।”
शाम को वो जैनी को ले कर आ गया, उसकी गोद में एक सुन्दर सा बच्चा था। उसने आते ही मुझे थमा दिया । सुबह आठ बजे जैनी तो घर से निकल गई,अरविंद घर पर रूका रहा। जैनी के जाते ही वो मेरे कमरे में आया और बिना कुछ कहे मुझे पीटने लगा और कहने लगा
-“ये दवा तुम्हें रोज मिलेगी। मैं अब जा रहा हूँ, अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि घर का सब काम करो और बच्चे को सम्हालो ।” कह कर मुझे बन्द कर चला गया।मैं अब उससे बहुत डरने लगी थी, उसको देखते ही मेरी घिग्घी बंध जाती। वो मुझे रोज मारता। जैनी ने मुझसे कभी बात करने की कोशिश नहीं की। वो हमेशा अरिवन्द के पहले घर से चली जाती और दोनों साथ ही लौटते। शनिवार इतवार या तो वे दोनों बच्चे को लेकर निकल जाते या दिन भर कमरे में रहे आते मैं दिन भर रोती। कभी मेरा मन करता कि अपना सारा ग़ुस्सा उस बच्चे पर निकालूँ पर उसकी मासूम सूरत देख मैं उसके साथ कोई अन्याय नहीं कर पाती ।अरविंद ने मुझे कैद कर रखा था। महीने में दो तीन बार मेरी बम्बई में सबसे बात करा देता पर पहले मुझे पीटता कि यदि मैंने उसके खिलाफ जबान खोली तो वो मुझे और मारेगा । मेरी हिम्मत पूरी तरह टूट चुकी थी। मैंने अपनी नियति से समझौता कर लिया था।
-“अरे तो तुम जैनी से बात करतीं ।”
मैंने जैनी से भी बात करनी चाही पर वो अंग्रेज़ी नहीं जानती थी और अरविंद भी मौक़ा नहीं देता था ।बच्चा भी आठ महीने का होने लगा था पर मेरी कैद खत्म नहीं हुई।मैंने भी हार कर समझौता कर लिया था।
मैं हमेशा भगवान से प्रार्थना करती कि मेरी मदद करो। इसके अलावा मेरे पास कोई रास्ता भी नहीं था।
आख़िर भगवान ने मेरी सुन ली। महीनों नरक भोगने के बाद एक दिन दोपहर को मैं बच्चे को सुला रही थी कि बाहर की घंटी बजी। मैं सन्न रह गई क्योंकि जब से मैं यहाँ कैद हूँ ,आज तक मैंने जैनी और अरविंद के सिवा किसी तीसरे को नहीं देखा था। पहले तो मैं डर गई फिर मुझे लगा शायद भगवान ने मेरे लिये कोई फ़रिश्ता भेजा है,पर दरवाजे तो सब बन्द थे। मैंने खिड़की से झाँका तो बाहर एक टैक्सी खड़ी थी। मेरे सास व ससुर जी बाहर खडे थे। मैं उन्हें देख रोने लगी और दरवाजा पीटने लगी। वे दोनों घबरा गये कहने लगे दरवाजा खोलो क्या कर रही हो ? पर मेरे मुँह से तो बोल ही नहीं फूटा मैं और जोर से रोने लगी। पापा जी ने दरवाजा खोलने की बहुत कोशिश की फिर टैक्सी वाले की मदद से उन्होने दरवाजा तोड़ दिया। वे दोनों बहुत घबराये हुये थे उन्होने मुझे सहारा देकर उठाया ।मैं जोर-जोर से रो रही थी, रोते-रोते मैं बेहोश हो गई । जब होश आया तो मम्मी पापा मेरे सिरहाने बैठे थे , उन्हें देख मैंने फिर रोना शुरू कर दिया , मुझे बचा लीजिए मुझे बचा लीजिए … मैं आप के पैर पड़ती हूँ मुझे मेरी मम्मी के पास ले चलिए मैं यहाँ नहीं रहूँगी ।मैं रोती जा रही थी और बोलती जा रही थी । रोते रोते ही मैंने उन्हें अपनी चोटें और बदन पर पड़े पक्के हो चुके नील के निशान दिखाये और अपनी पूरी आपबीती कह सुनाई ।
मेरी कथा सुन वे दोनों भी रोने लगे । पापाजी कहने लगे
-“तुमने हमें कभी बताया क्यों नहीं ,फ़ोन पर तो अक्सर बात होती थी हमें कभी कुछ ग़लत लगा ही नहीं ।”
-“वो तो हमने सोचा अरिवन्द का जन्मदिन है। तो चलकर तुम लोगों को सरप्राइस दें पर सरप्राइज तो उस कमीने ने हमें दिया है । बेटी तू चिन्ता न कर हम कल ही बम्बई चलेंगे ।” मम्मी जी बोलीं ।
शाम को जैनी और अरविंद आये तो मम्मी, पापा को देखकर ,एकदम अचंभित रह गये। पापा, मम्मी ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई और मेरा पासपोर्ट उससे ले लिया और अगले ही दिन बम्बई जाने का हम तीनों का टिकट ले लिया ।
अरविंद ने बहुत सफ़ाई देनी चाही पर पापा जी, मम्मी जी ने उसकी एक नहीं सुनी, कहने लगे
-“तू हमारे लिये आज से मर गया है। तू इतना नीच हो सकता है हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे।”
-“मुझे शरम आ रही है कि तू मेरी कोख से पैदा हुआ है ।”मम्मी जी रोते हुए बोलीं ।
-“इससे तो तू मर ही जाता … यूँ किसी निर्दोष लड़की का जीवन तो बर्बाद न करता।”
जैनी भी हक्की बक्की सब देखती रही । वह समझ चुकी थी पर चुप रही आई ।
और इस तरह मैं बम्बई आ गई । पापा जी, मम्मी जी ने ही बम्बई आकर मेरा इलाज करवाया मैं रात को सोते से जाग जाती थी, अक्सर रोने लगती और बेहोश हो जाती थी। उन दोनों ने मेरी बहुत सेवा की।
मेरे मम्मी पापा और भैया ने तो पुलिस में शिकायत दर्ज करानी चाही पर मेरी बुरी हालत देख सब मेरी तीमारदारी में लग गए ।
अब मैं उन्हीं के पास उनकी बेटी बनकर रहती हूँ। कभी-कभी माँ, पापा के पास भी चली जाती हूँ। मुझे अब लगता है जैसे ये मेरा दूसरा जनम है।कह कर वो चुप हो गई ।

मुझे गर्व हे की में भारतीय हु - #स्त्री , #समाज और #सायकल #दूसरी_आवाज़ मुझे मेरे लिए कुर्सी खींचने वाला या कार का दरवाजा खोलने वाला पति नही ...

उसकी आपबीती सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गये।हम दोनों के बीच सन्नाटा पसर गया ।थोड़ी देर बाद मैं ने पूछा
-“फिर अरविंद का क्या हुआ ?”
कुछ नहीं मेरे मम्मी पापा तो केस करना चाहते थे पर अपने सास ससुर के पश्चाताप को देख मैंने चुप रहना ही ठीक समझा ।वे दोनों ही अपने इकलौते बेटे से नाता तोड़ चुके हैं । बीच में एक बार अरविंद आया भी था पर ससुर जी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया ।मैं तो उसे देख थर-थर काँपने लगी और दौड़ कर मम्मी जी से लिपट गई ।वे घबरा गईं क्या हुआ क्या हुआ डर क्यों रही हो ।तभी बाहर से आवाज़ आई
-“निकल जा मेरे घर से … मैं तेरा मुँह भी नहीं देखना चाहता….
-“पापाजी मुझे माफ़ कर दीजिए मुझे लगा था कि यह मान जायेगी पर यह तो शेरनी बन रही थी ।”
-“शर्म नहीं आती तुझे … जब शादी कर ली थी तो इसका जीवन क्यों ख़राब किया ।”
-“हमारा बच्चा आनेवाला था मैंने सोचा कि हिंदुस्तानी लड़की से शादी के बहाने एक मुफ़्त की मेड मिल जायेगी ।”
पापाजी ने चप्पल उठा ली निकल मेरे घर से … तू मर गया मेरे लिए तूने तो मेरा परलोक भी बिगाड़ दिया ।
मम्मी जी भी बाहर निकलीं और उसे
देख रोने लगा
-“इतना बड़ा पाप करते तेरा कलेजा नहीं काँपा ।”
खूब बहस चली अरविंद बिल्कुल गिल्टी नहीं था । उन दोनों ही ने उसे घर में घुसने नहीं दिया । वह भी बड़बड़ाते हुए चला गया ।अब मैं ने तलाक़ के लिए आवेदन कर दिया है ।
-“तो तुम अब क्या कर रही हो ?” मैं ने उत्सुकता से पूछा ।
-“मैं … मैं अब पी.एस.सी. की तैयारी कर रही हूँ ।”
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मधूलिका श्रीवास्तव

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संस्थापक सदस्य व संचालिका श्री अरविन्दो स्कूल भोपाल

जन्म – 10:5:1959 जन्म स्थान-नागपुर (महाराष्ट्र)

शिक्षा – एम .ए.संस्कृत ( स्वर्ण पदक) एम. फ़िल.भाषा शास्त्र एवं बी. जे .

रचनाएँ –

अंतर्कथा (उपन्यास),मन की दहलीज़ (लघुकथा संग्रह),दस्तक (कहानी संग्रह)

प्रकाशित रचनायें-लघुकथा गवाक्ष , साझा संकलन (लघुकथा)

क्षितिज और भी हैं साझा संकलन (लघुकथा)

साझा लघुकथा संकलन (2 लघुकथा)

शैशव की गिन्नियाँ , सफ़र सुहाना (साझा संस्मरण संकलन )

उन्मेष (लघुकथा साझा संकलन)

कथा भोपाल (कहानी संग्रह)

समय समय पर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख समीक्षा कहानी आदि प्रकाशित

सम्मान – -पुष्पलता जोशी स्मृति बाल कहानी प्रतियोगिता 2021 में राष्ट्रीय स्तर पर तृतीय पुरस्कार

-लेखिका संघ म.प्र. भोपाल नाटक लेखन में प्रथम स्थान

– *श्रीमती सुशीलादेवी केशवराम क्षत्रिय स्मृति बाल प्रतियोगिता- 2022 में प्रथम दस कहानियों में द्वितीय स्थान *

-* रत्नावली सम्मान* तुलसी साहित्य अकादमी*