“Creative groups”
आज से mediawala.in पर “Creative groups” नाम से नया स्तम्भ शुरू कर रहे हैं. इसके अंतर्गत हम रचनात्मक लोगों से मिलकर बने ग्रुप ,क्लब या संस्थाओं के विषय में बात करेंगे .यदि आप भी किसी ऐसे सकारात्मक समूह से जुड़े हैं तो हमें लिख भेजिए. समूह के चित्र ,वीडियो, गतिविधियाँ और जानकारी को हम उसे इस कॉलम में प्रकाशित करेंगे जो रचनात्मकता को बढाने में सहायक होंगे और दूसरों की प्रेरणा भी बनेगें .स्वागत हैं इन समूहों का ………
1.Creative Groups: ‘Plant Exchange Club – MP-09’ बगीचा ग्रुप और ‘वाटिका’,व्हाट्सएप के बागवानी समूह हरियाली बढ़ाने में सहायक
घर पेड़ पौधों से हरा-भरा रहे … हरियाली में मन रमा रहे … अवसाद की स्थिति में यही हरियाली मन को सुकून प्रदान करें … घर की हरियाली तपती दोपहरी को नियंत्रित करती रहे । पेड़ पौधों की घर में उपस्थिति के अनेक फायदों में से यह कुछ चंद फायदों का ही उल्लेख किया है। इन फायदों से रूबरू करवाने एवं मार्गदर्शन देने हेतु लगभग अधिसंख्य शहरों में बागवानी के व्हाट्सएप ग्रुप बने हुए है, जिसमें बागवानी प्रेमी, एक दूसरे का मार्गदर्शन करते हुए बगीचे के विस्तार में सहायक बनते है। मेरा मानना है कि ये समूह बागवानी की पाठशाला के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे है।
कुछ ग्रुप स्थानीय स्तर पर तो कुछ अखिल भारतीय स्तर पर कार्यरत है। कुछ ग्रुप किसी फूल विशेष (जैसे गुलाब, अडेनियम, लोटस इत्यादि) तो अधिकांश सभी तरह के फल, फूल व सब्जियों पर केन्द्रित है। सदस्य आपस में पौधों एवं बीज का आदान-प्रदान कर बगीचों को समृद्धि प्रदान करते है। वर्कशॉप व पिकनिक के माध्यम से रूबरू मिलकर आभासी दुनिया की मित्रता प्रत्यक्ष मित्रता में परिवर्तित हो जाती है। ग्रुप का स्थान बागवानी परिवार के रूप में बदल जाता है। गत वर्ष अखिल भारतीय स्तर के एक ग्रुप में एक महिला सदस्य का विवाह था। ग्रुप के अलग-अलग सदस्यों ने शगुन के गीत तीन दिनों तक गाएं, उसका वीडियो पोस्ट किया, कुछ सदस्यों ने मिलकर ग्रुप की ओर से सामूहिक भेंट उपहार के रूप में भेजीं। धर्म एवं जात-पात से परे केवल बागवानी परिवार का सदस्य होने के नाते सभी सदस्यों को ऐसा आभास हो रहा था कि परिवार में ही शादी है ।
जब अन्य शहर में जाना होता है, एवं वहां का कोई ग्रुप का सदस्य है तो उससे मिलकर उसका बगीचा देखना प्राथमिकता हो जाता है। स्थानीय स्तर पर तो मिलना जुलना प्रायः होता ही रहता है। सदस्य के परिवारजनों से भी आत्मियता हो जाती है। जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ एवं अन्य उपलब्धियों पर बधाई का सिलसिला भी जारी रहता है।
बागवानी की रूचि की शुरुआत पर यदि व्यक्तिगत रूप से खोजबीन की जाए तो वर्तमान के अनेक प्रकृति प्रेमी कहीं न कहीं.. किसी न किसी अवसाद से घिरे हुए थे। यह अवसाद पारिवारिक, आर्थिक अथवा समय व्यतीत करने का भी हो सकता है। लेकिन बागवानी से अवसाद मुक्ति की राह आसान हो गई।
हर शनिवार, रविवार को ग्रुप में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की गई जिनमें सभी सदस्यों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इनमें से प्रमुख प्रतियोगिताएं थी – बीज से अंकुरण, बूंदों की तस्वीरें, लताओं के लपके ( tendrils) , अपने बगीचे में सूर्योदय और सूर्यास्त, बगीचे में बारिश, बेस्ट पौधा, पत्तों पर रेखाओं का मायाजाल, धूप – छाँव का खेल, तुलसी मेला, अडेनियम, बोंसाई, कैक्टस के फूल इत्यादि!j
बागवानी की एक वर्कशॉप का दृश्य कुछ इस प्रकार था – रिमझिम बारिश की बुंदे.. सर्वत्र हरियाली.. प्रश्नों की बौछारें.. उत्तर की मिसाइलें.. सुस्वादु अल्पाहार.. पौधों का उपहार .. रविवार का अवकाश.. उस अवकाश दिवस पर.. ‘जो कुछ बांट दिया वहीं तो अपना था’… कुछ इसी विचारधारा को लेकर इंदौर में बागवानी के दो समूह के लगभग 100 सदस्य रविवार को एक बहुत ही रमणीय फार्म हाउस पर एकत्रित होते हैं .. अपने साथ में लाए सैकड़ों पौधे, जिन्हें बगैर किसी अपेक्षा के उपहार स्वरूप सदस्यों को वितरित करते हैं .. लग रहा था कि पौधों का हाट बाजार लगा हुआ है अथवा कह सकते है कि पौधों का भंडारा है.. जहां प्रसाद स्वरूप पौधों के आदान-प्रदान से अधिसंख्य प्रकृति प्रेमी गदगद हो रहे थे ।
कृष्ण भक्त पानीपत की गीताप्रिया सीमा बब्बर ने कविता के माध्यम से बागवानी के व्हाट्सएप ग्रुप की उपयोगिता को रेखांकित किया है –
कभी सोचा न था
******
एक परिवार मिलेगा
जिस में सब अनजाने होंगे
पर सब के सब दीवाने होंगे
ऐसी भी कोई दुनिया होगी
कभी सोचा न था
किसी को धन की आशा नहीं
मन में किसी के निराशा नहीं
ऐसे भी किसी की सोच होगी
कभी सोचा न था
फूल किसी और के आंगन में खिले
पर ख़ुशी सारे परिवार को मिले
ऐसे भी कुछ लोग होंगे
कभी सोचा न था
सब एक दुसरे की कला सराहते हैं
सब से प्रेरित हो अपनी बगिया सजाते हैं
ऐसे भी कोई टोली होगी
कभी सोचा न था
प्रकृति प्रेम ही सब के होने की वजह है
जिस में न जाति न धर्म की जगह है
ऐसी भी कोई जगह होगी
कभी सोचा न था
जयपुर की डाँ अनिता कृष्णा द्वारा निर्मित ‘बगीचा’ , इंदौर की विजया ओझा द्वारा ‘वाटिका’ एवं इंदौर के ही अमित जैन द्वारा कोरोना काल में निर्मित plant exchange club – MP-09 में सदस्य की हैसियत से प्राप्त अनुभव इस आलेख में साझा किया है। आप भी व्हाट्सएप पर किसी न किसी बागवानी समूह का हिस्सा बनिए अथवा स्वयं समूह निर्मित कीजिए। कुछ ही दिनों बाद लगने लगेगा कि अब तक क्यों इस अनुभव से अछूता रह गए।
महेश बंसल, इंदौर