10 Cr Spent, Even 10 Dogs Are Not Less : इंदौर नगर निगम ने कुत्तों पर 10 करोड़ खर्च किए, पर 10 कुत्ते कम नहीं!

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10 Cr Spent, Even 10 Dogs Are Not Less : इंदौर नगर निगम ने कुत्तों पर 10 करोड़ खर्च किए, पर 10 कुत्ते कम नहीं!

जब NGO ने कुत्तों की नसबंदी कर दी, तो कुत्तों की संख्या कैसे बढ़ी?

Indore : कुत्तों के आतंक से शहरवासी परेशान है। हर महीने करीब 250 लोगों को कुत्ते अपना शिकार बना रहे हैं। वही कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए नगर निगम अधिकारी करीब 8-10 साल से सक्रिय हैं। यहां तक कि कुत्तों की जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए लगातार एनजीओ के माध्यम से अभियान भी चलाए जा रहे हैं। इन अभियान पर निगम एनजीओ को 10 करोड़ से ज्यादा का लोकधन भुगतान भी कर चुका है, लेकिन कुत्तों की संख्या है कि 10 भी काम नहीं हुई।

इसके बाद अब निगम अधिकारियों कि इस प्रकार की प्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। लोगों का कहना है कि निगम अधिकारियों ने कमीशन बाजी के चक्कर में 10 करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए। निगम अधिकारियों के अनुसार शहर में वर्तमान में भी करीब ढाई लाख आवारा कुत्ते हैं। करीब 10 वर्षों से अधिक से कुत्तों की संख्या निगम अधिकारियों द्वारा बताई जा रही है। आश्चर्य की बात है कि कुत्तों की नसबंदी के बावजूद उनकी संख्या घटने के बजाए बढ़ रही है।

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नगर निगम 10 साल से लगातार कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए लोकधन खर्च करके अभियान चला रहा है। हर साल कुत्तों की संख्या अलग-अलग बताई जाती है। जबकि, यह अभियान कुत्तों की संख्या को कम करने और नियंत्रित करने के लिए चलाए जा रहा है। सवाल उठता है कि जब अभियान चल रहा है वह भी 10 साल से और 10 कुत्ते भी कम नहीं हुए तो यह धनराशि अर्थात लोकधन कहां बर्बाद किया जा रहा है।

दो एनजीओ कुत्तों की नसबंदी में लगे

निगम अधिकारियों की मानें तो हैदराबाद की ‘वेट्स सोसायटी फॉर एनिमल वेलफेयर रूरल एंड डेवलपमेंट’ और देवास की ‘रेडिक्स इनफार्मेशन सोशल एजुकेशन सोसायटी’ को कुत्तों की नसबंदी का काम दिया गया है। नसबंदी का काम करीब 10 साल से जारी है। इसके बाद भी कुत्तों की संख्या नियंत्रित नहीं हुई। हर साल कुत्तों की संख्या बढ़ाकर ही बताई जाती है। उधर दोनों एनजीओ के अधिकारी और निगम अधिकारी भी यह दावा कर रहे हैं कि शहर में 1 लाख 50 हजार से ज्यादा कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो शहर में कुत्ते और उनके साथ घूम रहे पिल्लों को आसानी से समझा जा सकता है।

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बच्चों और वृद्ध ज्यादा शिकार

जहां तक एंटी रेबीज टीका लगाने वाले लाल अस्पताल के आंकड़ों की बात है, तो इन पर नजर दौड़ाएं तो सामने आता है कि कुत्तों का शिकार होने वालों में बच्चे और अधिक उम्र के व्यक्ति ही ज्यादा शामिल है। यह भी बताया जा रहा है कि शहर में अब कुत्तों को खाने के लिए पर्याप्त खुराक नहीं मिल रही इस कारण वे खूंखार हो गए और लोगों पर हमला करने लगे हैं।

रात में हर जगह जमघट

कुत्तों की वास्तविक संख्या यदि पता लगानी है, तो देर रात गली मोहल्ले और चौराहों पर स्थित उनके जमघटों को देखकर पता लगाया जा सकता है। देर रात आवागमन करने वाले बाइक सवार और अन्य वाहन चालकों पर यह चौराहा पर मौजूद कुत्तों का झुंड पीछे लगता है। कई बार इस चक्कर में गंभीर हादसे भी सामने आ चुके हैं।