In Memory of My Father / मेरी स्मृतियों में मेरे पिता
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन /मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इसकी 14th. क़िस्त में भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी,सुप्रसिद्ध लेखक राजीव शर्मा अपने पिता स्व. श्री रामनारायण शर्मा को जो अपने समय के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् रहें,जिन्होनें अपने द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थानों के माध्यम से कई युवाओं के व्यक्तित्व को गढ़ा है, उनकी स्मृतियों को रेखांकित करते हुए अपनी भावांजलि दे रहें है.
14. In Memory of My Father : समय से आगे चलते थे मेरे पिता
राजीव शर्मा
मेरे उल्लास में जीवित
मेरे उच्छवास में जीवित
पिता स्मृति नहीं तुम हो
मेरी हर साँस में जीवित
तुम्हें खोकर भी तुमको पा गया हूँ अपने प्राणों में
मेरी उपलब्धि के खिलते हुए
आल्हाद में जीवित
अपने पूज्य पिता की स्मृति में लिखी गई यह कविता भी अब तीन दशक पुरानी हो चुकी है .पापा को गए हुए भी पैंतालीस वर्ष हो चुके है पर लगता है जैसे कल की ही बात है .उनकी यादों की बेल अब तक उतनी ही हरी-भरी है .मैं बारह वर्ष का था जब ईश्वर ने उन्हें हमसे छीन लिया .वे बेहद ज़िंदादिल ,ओजस्वी ,सहृदय और समय से आगे चलने वाले व्यक्ति थे .श्री रामनारायण शर्मा उनका नाम था पर पूरा शहर उन्हें भाई साहब ही कहता था.
अपने पूज्य पिता के आदेश पर शासकीय सेवा से त्याग पत्र देकर वे भिण्ड लौटे और एक आधुनिक शिक्षण संस्थान की स्थापना की .सार्वजनिक मांटेसरी स्कूल ,संगीत विद्यालय ,उच्च माध्यमिक विद्यालय ,संस्कृत महाविद्यालय और हेनिमैन होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज स्थापित कर उन्होंने अपना शैक्षणिक साम्राज्य सा स्थापित कर लिया .मैं भी इसी शिक्षण संस्था का प्रोडक्ट हूँ और मेरे ढेर सारे दोस्त भी यहीं से निकले .
वे बेहद ग़ुस्सैल पर उतने ही लाड़ प्यार से भरे हुए थे .उन्होंने मुझे विश्व साहित्य ,शास्त्रीय संगीत ,उर्दू ,योग ,चित्र कला सहित सर्वोत्कृष्ट देने की कोशिश की .उनका याशिका कंपनी का जापानी कैमरा ,टाइयों का संग्रह ,हॉकी ,फुटबॉल ,बुलवर्कर ,शानदार पुस्तकालय भिंड की देहाती दुनिया को चमत्कृत करते थे .वे दिल्ली, बंबई ,भोपाल जाते तो हमेशा मेरे लिये ढेर सारी किताबें लेकर लौटते.अच्छा खाना और अच्छा पहनना ,नई से नई चीजों के प्रति आकर्षण हम लोगों को उनसे ही मिला है .उन्होंने मुझे कविता लिखने के लिये प्रेरित किया ,सुलेख ,पहेलियाँ ,खेल ,बैंकिंग -हर चीज सिखाकर अब लगता है वे जाने के पहले मुझे तैयार कर रहे थे .
उनका थप्पड़ इतना ज़ोरदार होता था कि कुछ पलों के लिए आत्मा -परमात्मा एक हो जाते थे .एक बार उन्होंने मुझे उर्दू पढ़ने भेजा .उनका सेवक राजाराम मुझे शाम के धुँधलके में मदरसे ले गया .वहाँ टीन की छत में लटकते पीले बल्ब की मरियल रोशनी में बोरी पर बैठना मुझे अच्छा नहीं लगा पर आज्ञा पालन ही धर्म था .घर लौटा तो उन्होंने पूछा कैसा लगा ? मैंने बताया -बहुत गंदा था .उन्होंने अगला प्रश्न पूछा -अच्छा ये बताओ वहाँ सर के पाँव छुए या नहीं .मैंने कहा -नहीं .उन्होंने पूछा -क्यों नहीं छुए ? मैंने कहा -यहाँ सब आपके पाँव छूते हैं .वे सर भी गंदे सन्दे थे मैं कैसे उनके पाँव छूता? एक झन्नाटेदार तमाचे ने मुझे तारे दिखा दिये .उन्होंने राजाराम को कहा -इस नालायक को अभी ले जाओ उन हाफिज जी के पास ये क्षमा माँगकर पाँव छूकर आयेगा .आदेश पालन में जब राजाराम जी हमें वापस लेकर गए तो बेचारे हाफिज जी को कुछ समझ नहीं आया .मैंने पाँव छुए तो उन्होंने लाड़ से सर पर हाथ फेरा और मेरे आँसू पौंछे .घर लौटे तो उन्होंने कहा -जीवन में जिससे भी सीखो उसे गुरु मानो उसका सम्मान करो .मैंने आँसू बहाते हुए शेष जीवन के लिये गुरुजनों के सम्मान का पाठ सदा के लिये सीख लिया .
मेरी यादों का यह गलियारा –
जाने कितनी यादें और तस्वीरें हैं ,जो मन में ही अंकित होती हैं .
राजीव शर्मा
लेखक – भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी होकर, कई सम्मानों से सम्मानित सुप्रसिद्ध लेखक हैं.