19.In Memory of My Father : Silent Message-पिता के लॉकर से निकला वह खामोश संदेश!

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In Memory of My Father / मेरी स्मृतियों में मेरे पिता

19.In Memory of My Father : Silent Message-पिता के लॉकर से निकला वह खामोश संदेश !

यह बात 17 नवम्बर 2007 की है I मैं उन दिनों आगर मालवा में अपर जिला न्यायाधीश के पद पर पदस्थ था I इस तारीख को मेरे पिताजी का 75 वाँ जन्मदिन था। वे डिप्टी कलेक्टर के पद से 15 वर्ष पूर्व सन 1992 में सेवानिवृत्त हो चुके थे। वे स्थाई रूप से अपने पैतृक शहर खंडवा में निवास करते थे I
मेरे मन में यह विचार आया कि पिताजी के 75 वे जन्मदिन (अमृत वर्ष) में उनके लिए क्या कर सकता हूं? आर्थिक मदद करने के विचार से 75 चेक की चेक बुक में 1000/- 1000/- के 75 पोस्ट डेटेड चेक (प्रत्येक माह का एक) तैयार किये व हस्ताक्षर किये I साथ ही पिताजी के नाम से एक पत्र लिखा कि आपने मेरे जीवन को सार्थक और सफल करने में जो सर्वस्व दिया है उसका कर्ज तो मैं चुका नहीं सकता फिर भी यह चेक बुक भेज रहा हूं जिसे आप स्वीकार करें I मेरी सोच उम्र के पड़ाव में उनकी आर्थिक मदद करने की थी I मैंने वह पत्र व चेक बुक उनके खंडवा के पते पर कुरियर कर दिया जिसकी पावती भी मुझे मिल गई।
लेकिन उस पत्र का जवाब नहीं आया और न ही उन्होंने वह चेक भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत किये क्योंकि मेरे खाते से राशि की निकासी नहीं हुई I
इस घटना के तीन चार माह बाद वे माताजी के साथ खंडवा से आगर मालवा आये और चेक बुक मुझे लौटाते हुए कहा कि इसकी मुझे जरूरत नहीं है, जब जरूरत होगी तो मांग लूँगा लेकिन उन्होंने कभी मांगे नहीं I

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इस घटना के 6 वर्ष 3 माह पश्चात 20 फरवरी 2014 को खण्डवा में उनकी मृत्यु हो गई I तेरहवीं के कार्यक्रम के बाद उनकी वसीयत पढी गई I उनकी अलमारी में से उनका लाकर खोला गया जिसमें सोने चांदी का सामान नगदी आदि निकले थे. साथ ही एक लिफाफा भी था जिसमें वही पत्र था जो मैंने चेक बुक के साथ उन्हें भेजा था I चेक बुक तो उन्होंने मुझे वापस कर दी थी लेकिन वह पत्र उन्होंने लाकर में मूल्यवान सामान के साथ सम्भाल कर रखा था।
वे तो उस समय नहीं थे लेकिन उन्होंने एक खामोश संदेश छोड़ा था कि जीवन के उत्तरायण में पिता को पुत्र के रूपए सम्पति की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इतना पर्याप्त होता है कि पुत्र पिता का सम्मान कर रहा है और देखभाल की चिंता कर रहा है I मेरा मन मेरे पिता के प्रति श्रद्धा व आदर से नतमस्तक हो गया I
मेरे पिता स्वर्गीय श्री पी. एस. कुलकर्णी मूल रूप से खण्डवा के निवासी थे I उन्होंने अपनी सेवाएं वर्ष 1959 में नायब तहसीलदार खण्डवा के पद से शुरू की थी और वर्ष 1992 में वे डिप्टी कलेक्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। वे अपनी मृत्यु तक यानी वर्ष 2014 तक अधिवक्ता के व्यवसाय में व्यस्त रहे।

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सभी पिता को मेरा नमन, प्रणाम !

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श्यामकांत प्रभाकर कुलकर्णी

जिला एवं सत्र न्यायाधीश उज्जैन के पद से सेवानिवृत्त,सेवानिवृत्ति के पश्चात वर्तमान में Madhya Pradesh Arbitration Tribunal में Vice-Chairman

 

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भास्कर चौधरी की कविता कविता कोष से साभार