2.Creative Groups: Our “M.Y.” Mission, Indore- मरीजों के परिजनों की भोजन व्यवस्था जैसी मानव सेवा करने की मंजिल, सात मंजिला अस्पताल “M.Y.”
इंदौर से समाज सेवी महेश बंसल की खास रिपोर्ट
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सरकारी अस्पताल हो … वह भी प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में से एक … तो सहज ही मरीज एवं उनके परिजनों की भीड़ का अनुमान किया जा सकता है। इसी भीड़ को देखकर एक युवा मन द्रवित हो जाता है, उसे लगता है कि मानव सेवा करने की मंजिल मिल गई है, जिसे वह अब तक ढूंढ रहा था।
हम बात कर रहे है Our “M.Y.” Mission की, जिसे प्रारंभ किया था अनेक प्रतिष्ठानों पर पार्ट टाइम अकाउंटेंट का कार्य करने वाले श्री मितेश सिंगी ने (मोबाइल नम्बर – 98270 10262) मानव सेवा के इस प्रकल्प में 350 से अधिक व्यक्ति अब संलग्न है।
इनके माध्यम से इंदौर के महाराजा तुकोजीराव होलकर सरकारी अस्पताल (MY) हास्पिटल में नित्य सुबह लगभग 150-200 रोगी के परिजन भोजन सेवा (पुड़ी सब्जी ) का लाभ प्राप्त करते है।
संस्था से जुड़े सदस्य अपने परिजनों के जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ, पुण्यतिथि अथवा बगैर प्रयोजन के सेवा भावना से एक दिन का भोजन का खर्च 3500 ₹ वहन करते है। यह धनराशि भोजन वितरण के पश्चात वहीं पर दानदाता द्वारा केटरर्स को दे दी जाती है। दानदाता के अतिरिक्त सुचारू व्यवस्था हेतु प्रायः मितेश एवं उनकी धर्मपत्नी संध्या, विजय ढुंडाले अथवा संस्था के कुछ सदस्य नियमित उपस्थिति रहते है।
व्हाट्सएप एवं फेसबुक पर नित्य उस दिन की भोजन सेवा का प्रयोजन, दानदाता के उल्लेख सहित भोजन वितरण के फोटो एवं वीडियो पोस्ट किए जाते है। जिस दिन किसी बालक के जन्मदिन पर भोजन सेवा रहती है उस दिन उस बालक द्वारा भोजन वितरण करना व उस बालक में जागृत मानव सेवा की अनुभूति का दृश्य अद्भुत रहता है। दानदाता स्वयं उपस्थित नहीं हो पाता तो उसकी ओर से संस्था के कार्यकर्ता भोजन वितरण करते है। हर दिन नया एवं दानदाता भी नया … इस तरह सेवा की यह माला गुंथी गई है।
मितेश से जब पूछा कि इस कार्य की शुरुआत कैसे हुई, तो बताते हुए कहते है – “बात शुरू हुई थी सन 2012 से , नौकरी करता था बहुत ज्यादा सैलेरी तो नही थी पर फिर भी कुछ सामाजिक कार्य करने की इच्छा होती थी । योग संयोग से धर्मपत्नी भी ऐसे ही विचारों वाली मिली । तो शुरू हुई अपने बजट में कुछ सेवा करने की तो हम दोनों पहले वृद्धाश्रम गए वहां का दुख दर्द हमसे देखा नही गया इस उम्र में कैसे कोई अपने बुजुर्गो को छोड़ सकता है
वहां से गए अनाथालय दुख तो खैर वहा भी कम नहीं था पर फिर भी वहां कुछ समय हम जुड़े पर वहां की व्यवस्था से आत्म संतुष्टि नहीं मिल पा रही थी । तभी एक दिन मेरा एम वाय हॉस्पिटल से गुजरना हुआ तो देखा कुछ लोग वहा नाश्ता बाट रहे थे थोड़ा रुक कर उनके कार्य को देखा फिर वहां लोगों से बातचीत की तो मालूम हुआ कि चूंकि ये मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी हॉस्पिटल है तो यहां बहुत से मरीज आते है और उनके साथ कई परिजन भी आते है । यहां आने के बाद कई दिनों तक इलाज के सिलसिले में उन्हें यहां रुकना पड़ता है और उनके सामने कई समस्याएं आती है जिसमे से एक सबसे बड़ी समस्या भोजन की होती है । ये सुनकर थोड़ा आश्चर्य भी हुआ क्योंकि बाहर ही कई रेस्टोरेंट है जहां नाश्ता, भोजन सब मिलता है और तो और यहां लायंस क्लब की भोजनशाला भी है जहां मात्र 10 रुपए में भरपेट भोजन मिलता है लेकिन फिर मालूम हुआ है कि एक मरीज के साथ ना सिर्फ उसके परिजन अपितु अड़ोसी पड़ोसी भी आते है और उन सबको प्रतिदिन इतना पैसा भोजन के लिए खर्च करना आसान नहीं होता है । इसलिए मजबूरीवश अपने मरीज को छोड़कर वो लोग भोजन की व्यवस्था में लगते है । अब दिमाग में इनकी सहायता का भाव प्रबल हो उठा था लेकिन क्या मुझसे ये संभव हो पाएगा ? भोजन कैसे और कहा से आएगा ? इतना पैसा कैसे अरेंज होगा ? भीड़ का मैनेजमेंट कैसे होगा ? सवाल कई थे पर अब करना तो था ही । और इस समय साक्षात देखा प्रभु का चमत्कार । अगर ईश्वर को आपसे कोई काम करवाना हो तो वो सब व्यवस्था आगे से आगे कर देता है बस आप तो देखते जाओ उसका चमत्कार ।
जीवन संगिनी “संध्या” तो जीवन के हर कदम पर साथ थी ही पर कुछ साथियों की ओर जरूरत थी । मेरे साथी विजय भाई (श्री विजय जी ढुंडाले) से जैसे ही इस बारे में बात की वो तुरंत तैयार हो गए । तो शुरू हो गए हम 2013 से हर रविवार को इस सेवा कार्य के लिए । ये अन्य सभी सेवा कार्य से अलग अनुभव था यहा हम अपने हाथों से भोजन बाट रहे थे और अपने सामने लोगों को भोजन करते देख रहे थे, निश्चित ही मन को सुकून देने वाले पल थे ये । तो ऐसे शुरू हुआ ये मदद का सिलसिला जो एकाध साथी के ओर जुड़ने पर शनिवार को भी शुरू हो गया था। सब कुछ ठीक चल रहा था पर एक दिन शाम को विजय भाई का फोन आया और आर्थिक आधार पर ओर अधिक जुड़े रहने पर अपनी असमर्थता जताई । मन बैठ गया था पर विजय भाई की समस्या भी अपनी जगह ठीक थी लगा बस इस सेवा कार्य के योग इतने समय के लिए ही थे । पर ईश्वर की प्लानिंग तो कुछ ओर ही थी हमसे कुछ बड़ा करवाने की । क्योंकि जिस समय विजय भाई का फोन आया उस समय बालसखा तरुण (श्री तरुण जी मिश्र)मेरे साथ था । मेरे जीवन के हर अच्छे बुरे समय पर वो मेरे साथ था इस प्रकल्प के बारे में भी उसको पता था पर अभी तक प्रत्यक्ष तौर पर इससे जुड़ा नही था
तो आम हिंदी सिनेमा के हीरो की तरह तरुण की एंट्री इस प्रकल्प में हुई जैसे ही विजय भाई की बात उसे मालूम हुई उसने मेरा मन टटोला , अब चूंकि बचपन के मित्र है तो वो मेरी भावनाओं को अच्छे से समझता है उसे पता था कि ये प्रकल्प मेरे दिल के अत्यंत करीब आ चुका है । उसने इस प्रकल्प को निरंतर करने की बात कही और अपने संपर्क से मात्र तीन चार दिन में पूरे वर्ष के शनिवार और रविवार की तारीखें बुक करवा दी ।
एक बार फिर प्रभु का साक्षात्कार हुआ वो कब किसको आपकी मदद के लिए भेजेगा आपको पता ही नही चलता है जब काम पूरा होता है तब उसकी लीला समझ आती है । अब एक बार फिर से सेवा कार्य शुरू हो गया अब हम सोशल मीडिया की ताकत भी समझ गए थे हमने अपनी सेवा कार्य को जानकारी सोशल मीडिया पर अपडेट करना शुरू की उसका फायदा ये हुआ कि हमारे पास इस कार्य से संबंधित पूछताछ आनी शुरू हो गई ।
धीरे धीरे कारवां बढ़ता गया और अब हम इतने साथी हो गए थे कि सेवा के दिन बढ़ते जा रहे थे अब वर्ष में लगभग 200 दिन हम सेवा दे पा रहे थे और एक साल से भी कम समय पर अंततः वो दिन आ ही गया कि हम इसे प्रतिदिन करने लगे । ईश्वर की कृपा से कई ऐसे साथी भी आगे आ गए जो वालेंटीयर के रूप में अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार थे । ये ऐसे साथी है जिनकी वजह से ही ये प्रकल्प इतना सुचारू रूप से चला । हमने साप्ताहिक कैलेंडर बनाकर प्रतिदिन कम से कम दो साथियों की वालेंटीयर के रूप में ड्यूटी लगा दी । मेरी कोशिश तो प्रतिदिन जाने की होती ही थी मेरी पत्नी भी अपना सुबह का गृहकार्य जल्द निबाटकर मेरे साथ जाने की कोशिश करती थी । तो इस प्रकार 2016 से प्रभु कृपा से हम लोग प्रतिदिन ये सेवाकार्य कर पा रहे है । सोशल मीडिया से हमें बहुत फायदा हुआ ना सिर्फ अपने देश के अलग अलग जगह से अपितु विदेश में बसे कई साथी भी इन पोस्ट को देखकर हमारे साथ जुड़े है ।
प्रभु कृपा और टीम वर्क का ये सेवा प्रकल्प एक बेहतरीन उदाहरण है । साथ ही मेरे जैसे एक साधारण व्यक्ति पर प्रभु की ये असाधारण कृपा है । बस ईश्वर से ये प्रार्थना है कि ऐसे अच्छे कार्य का निमित्त बनाए रखें और अपने व्यवहार और कार्य से हमसे किसी का दिल ना दुखे।”
महेश बंसल, इंदौर
लेखक स्वयं भी इस समूह में सक्रिय सदस्य हैं .