मध्यप्रदेश की राजनीति के मैदान में एक चर्चा फुटबाल की गेंद की तरह इधर-उधर ठेली जा रही है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कभी-भी पद से हटाये जा सकते हैं। यह भी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताजपोशी की जायेगी,इस भरोसे और दबाव के साथ कि वे फिर से मप्र में भाजपा को सत्तारूढ़ करायेंगे। कल की तो मोदी-शाह-नड्डा जानें, लेकिन आज का फसाना तो डीजे के साथ यही बजाया जा रहा है। इस बैंड में स्वर केवल कांग्रेस के ही नहीं है, बल्कि जुगलबंदी भाजपाई भी उतनी ही तीव्रता से कर रहे हैं। अब आप समझ सकते हैं कि जगत मामा का मंदिर-मंदिर भ्रमण और कांग्रेस नेता कमलनाथ का यह कहना कि वे दिल्ली नहीं जायेंगे,मप्र में ही रहेंगे,के बीच क्या साम्य और संबंध है?
यह फुटबाल यही तक ही नहीं रुक रही, बल्कि राजनीति के साथ जीने-मरने वाले तो खम ठोंक कर कह रहे हैं कि मामा अकेले नहीं जायेगे। वे अपने साथ भारतीय जनता पार्टी की सत्ता को भी ले जायेंगे। इसे बेहद सरल तरीके से कहा जाये तो यह कि अब हालात ये बन चुके हैं कि एक तरफ शिवराज सिंह चौहान को हटाने की अनुगूंज तेज हो रही है तो 2023 के विधानसभा चुनाव भी भाजपा के जबरदस्त खतरे की घंटी है। आखिर ऐसी बातें क्यों सड़क से सचिवालय तक सरपट भाग रही है?
मप्र की सत्ता में शिवराज सिंह चौहान का मुख्यमंत्री के तौर पर ये चौथा कार्यकाल है। यह बात उनके ही दल में हजम नहीं हो रही। प्रतीक्षारत मुख्यमंत्रियों को दिक्कत इस बात से है कि आलाकमान ने मार्च 2020 में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया ही क्यों ? उनका दर्द है कि जिस व्यकित् के नेतृत्व में भाजपा चुनाव हार गई हो,उसी के हाथ में सत्ता की पतवार देने की तुक नहीं थी। सत्ता की रेवड़ी वितरण की संभवत रीत भी यही है कि जिसके हाथ नहीं लगती, वह कुलबुलाता रहता है। ऐसा कोई पहली बार तो हुआ नहीं था। दावेदार तो शिवभानु सिंह सोलंकी होते हैं, विधायकों का बहुमत भी उनके साथ होता है, किंतु मुख्यमंत्री का ताज पहनाया जाता है अर्जुन सिंह को। उमा भारती की अनायास बिदाई पर दम लगाते हैं बाबूलाल गौर और मझघार में पतवार थाम लेते हैं शिवराज सिंह चौहान । उम्मीद से रहते हैं ज्योतिरादित्य. सिंधिया और बाजी मार ले जाते हैं कमलनाथ। तो राजनीति में ऐसी बड़ी-बड़ी बातें छोटे-छोटे से घटनाक्रम के जरिये होती रहती हैं। लेकिन विरोधियों को कौन और कैसे समझाये। सत्ता सुंदरी की लालसा तो शाश्वत है।
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शिवराज सिंह चौहान के शपथ ग्रहण के दिन से कोई समय ऐसा नहीं बीता जब उनके जाने,हटाये जाने की चर्चा न चलती रही हो। वे बने रहे, यह सबसे बड़ा सच है। अब लेकिन परिस्थितियां करवट लेती नजर आ रही हैं। तूफान आने के अपने संकेत होते हैं। समझ जायें तो ठीक, वरना थपेड़े तय करते हैं हश्र। तो कुछ तूफान बला के आक्रामक होते हैं,तब आपकी सावधानी भी काम नहीं आती। तो क्या अभी ऐसा ही कुछ है? इस तूफान के तीन संकेत केवल प्रतीकात्मक नहीं,बल्कि आक्रामक है। पहला, पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का इंदौर में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय के घर अपने बेटे के साथ मिलने जाना,अन्न-जल ग्रहण करना । ये दोनों क्रिकेट की राजनीत की वजह से परस्पर धुर विरोधी रहे, किंतु अब एक ही दल के होने के कारण सामान्य सौजन्य संभव है। यह घटना लेकिन सामान्य नहीं है। इससे पहले भी सिंधिया उनके घऱ् गये थे, किंतु तब कैलाशजी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में व्यस्त होने की वजह से शहर में नहीं थे। तो दूसरी बार सिंधिया फिर आये। दूसरा संकेत, कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है और दल के भीतर ही गांधी परिवार के प्रति बढ़ रही नाराजी की वजह से वे किसी विश्वस्त को यह जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं। कमलनाथ भी इसमें एक प्रमुख नाम था। उन्होंने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कह दिया कि वे मप्र नहीं छोड़ रहे। तब अशोक गहलोत का नाम चला। तीसरा संकेत, शिवराज सिंह चौहान का अचानक मंदिर-मंदिर भ्रमण पर निकलना,जबकि श्रावण माह बीत चुका। तब वे विंध्यवासिनी,दतिया के पीतांबरा पीठ वगैरह होकर आये। इसके पीछे शिवराज अपने वरिष्ठ नेता विष्णुप्रसाद शुक्ला के निधन पर 27 अगस्त को इंदौर आगमन के बावजूद उनके घऱ् नहीं गये, क्योंकि कुछ अनुष्ठानों में किसी की मृत्यु पर शोक में शामिल नहीं हो सकते। हालांकि यह वजह सामने आती उसके पहले उनकी काफी चर्चा-आलोचना हो चुकी थी।
ये तीनों संकेत महज संयोग नहीं हैं। जानकार इसमें कुछ अनहोनी सूंघ रहे हैं। कांग्रेस में तो यह स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, लेकिन भाजपा के भीतर तेज हलचल बताती है कि शीर्ष स्तर पर सब अनुकूल नहीं है। इन चर्चाओँ के कारण कांग्रेस को काफी बल मिला है। पिछले कुछ समय से उनके आक्रमण की धार लगातार तेज होती जा रही है। कांग्रेस के ही कुछ जिम्मेदार और गंभीर माने जाने वाले नताओं का तो यहां तक कहना है कि कमलनाथ ने दिल्ली जाना अस्वीकार किया है और उसे आलाकमान ने स्वीकार भी कर लिया है तो इसलिये कि वे यह जंचा चुके हैं कि उनका मप्र की राजनीति में इस समय बने रहना ज्यादा जरूरी है। कमलनाथ ने संभवत ऊपर यह भरोसा दिलाया है कि वे एक बार मप्र के मुख्यमंत्री बनकर दिखायेंगे। जिसके लिये उनके पास पर्याप्त मौके हैं और उनके तरकश में ऐसे अमोघ दिव्यास्त्र भी हैं, जिनके सामने शिवराज सिंह चौहान होँ या ज्योतिरादित्य सिंधिया या अन्य कोई भी, टिकने वाला नहीं है। याद रहे, कांग्रेस और गांधी परिवार में कमलनाथ की प्रतिष्ठा किसी भी अन्य नेता की बनिस्बत बेहद अधिक है।
ऐसा बताया जा रहा है कि शिवराज सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाली अनेक दास्तानें कमलनाथ के पास संग्रहित हैं। चुनाव के पहले वे ऐसा धमाका करेंगे कि मप्र में भाजपा सरकार की दीवारें भरभराकर गिर पड़ेगी और इस कंपन से दिल्ली भी अछूती नहीं रहेगी। बताते हैं कि शिवराज सिंह चौहान से बुरी तरह नाराज चल रहे कुछ नौकरशाहों और भाजपा के ही कुछ अतिशय महत्वाकांक्षी व प्रतीक्षारत मुख्यमंत्री प्रत्याशियों ने कमलनाथ के पास कुछ ऐसा बारूदी अस्ला पहुंचा दिया है, जिसका विस्फोट दूर तक गूंजेगा। मप्र में यह आम धारणा है कि मुख्यमंत्री से भाजपा के वरिष्ठ मंत्री,नेता और अनेक प्रमुख अधिकारी नाराज हैं। इन दोनों ही पक्षों की समुचित सुनवाई और उनके मनवांछित काम न होने से उन्होंने ऐसे दस्तावेज कमलनाथ तक पहुंचा दिये हैं, जो मौजूदा नेतृत्वकर्ताओं को तो मुश्किल में डालेंगे ही, आगामी चुनाव में भी वे मुद्दे भाजपा का भरपूर रास्ता रोकेंगे।
इस तरह से शिवराज सरकार के लिय मौजूदा समय और भाजपा के लिये अगले विधानसभा चुनाव खतरे की घंटी है। भाजपा आत्म सुरक्षा और प्रहार के क्या उपाय करती है व कमलनाथ का उत्साह, आत्म विश्वास और चुनाव के मद्देनजर उनकी रणनीति क्या गुल खिलाती है, देखना दिलचस्प होगा।