मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इस श्रृंखला की 28th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेशचन्द्र शर्मा को। उनके पिता स्व. श्री रामगोपाल शर्मा पुलिस विभाग में नौकरी करते थे.उन्होंने अपनी पत्नी और लेखक की बीमार मां को आखरी समय जो वचन दिया था ,जीवन भर संघर्ष करते हुए उसे अपनी भीष्म प्रतिज्ञा बना लिया .पिता ने माँ बनकर बच्चों को पाला, उन्हें संस्कारित किया .इसी संघर्ष यात्रा को याद करते हुए अपनी भावांजलि दे रहे हैं रमेशचन्द्र शर्मा …..
“पिता प्रणेता पिता प्रेरणा पिता व्यवहार हैं ,
पिता कर्म पिता परिश्रम पिता उपकार हैं।
अनुशासन सत्संग कीर्तन के पावन संगम –
पिता उत्साह पिता उमंग पिता चमत्कार हैं।”
28.In Memory of My Father: मां को आखरी समय दिया वचन ही पिता की भीष्म प्रतिज्ञा थी !
“अरे भाग्यवान , इन बच्चों की चिंता छोड़ो ।मैं अभी जिंदा हूं। इन बच्चों को मां की कमी महसूस नहीं होने दूंगा। इन सभी को आज से मेरे भरोसे छोड़कर प्रभु स्मरण करो ।वैसे तो रोजाना मानस का पाठ कर रही हो । तीन दिन से ‘दीन दयाल विरद संभारी हरहु नाथ मम संकट भारी’ का जाप कर रही थी। अब जब अवगत सुधारने का मौका आया है, तो बच्चों की माया में पड़ रही हो। माया, मोह, चिंता, छोड़ दो और राम राम का जाप करो, इसी में भलाई है”।यह कहते हुए पंडित रामगोपाल ने अपनी पत्नी अनसुईयाबाई के हाथ तीन साल की बेटी के सिर से हटा लिए ।
पुलिस विभाग में सब उन्हें पंडित जी कह कर बुलाते थे । अनसूया बाई पिछले तीन वर्ष से बीमार थी। बहुत इलाज करवाने के बाद भी स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। इंदौर के सुप्रसिद्ध डॉक्टर मुखर्जी का लगातार एक माह तक इलाज चला। पंडित जी अकेले इंदौर में अपनी पत्नी के पास रहकर इलाज करवाते और साठ किलोमीटर दूर धार जाकर बच्चों को भी देखतेअंततः डॉक्टर ने पंडित जी को अपने केबिन में बुलाकर कह दिया “आप अब परेशान मत होइए ।इनका अंतिम समय आ गया है।। मैंने हर तरह की दवाई देकर कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है । आप इन्हें घर ले जाइए । इनके पास कुछ ही दिन शेष है। दिन भर बच्चों को याद करके रोती रहती है ।कम से कम आखरी समय बच्चों के सामने रहेगी इनके मन को शांति मिलेगी” ।डॉक्टर के कहने पर पंडित जी अपनी पत्नी को अस्पताल से डिस्चार्ज करवा कर घर ले आए ।घर पर ही इलाज होता रहा ।
एक रात अचानक अनसुईया बाई की तबीयत ज्यादा खराब हो गई । पड़ोसी ने कोतवाली में जाकर पंडित जी को सूचना दी ।वे तुरंत आ गए ।घर आकर देखा पत्नी को उल्टी सांस चलने लग गई थी। वे समझ गए अब अंतिम समय आ गया है ।उन्होंने अनसुईया बाई को भगवान के भजन करने की सलाह दी ।अनसुईया बाई भगवान की भक्त,पूजापाठी थी। आसपास की महिलाएं उनकी भक्ति देखकर उन्हें मीराबाई कह कर बुलाती थी ।रामचरितमानस का नियमित पाठ करती थी। पंडित जी के घर आ जाने के बाद रात भर दीनदयाल विरद संभारी हरहु नाथ मम संकट भारी का भजन गाती रही। सुबह होने लगी। चिड़ियों का चहकना शुरू हो गया। अनसुईया बाई ने अपने हाथों को छोटी बेटी के सिर पर रख दिया। दूसरे छोटे बच्चे भी रो रहे थे । सभी बच्चे उस रात जागते रहे। पंडित जी ने गीता के अठारहवें अध्याय का पाठ किया। मुंह में गंगाजल और तुलसी पत्र डालें । राम राम रटते हुए अनसूया बाई के प्राण पखेरू परमात्मा में विलीन हो गए।
पंडित जी की अग्नि परीक्षा अब शुरू हुई । पत्नी के सामने की गई प्रतीज्ञा उन्हें हमेशा स्मरण रहती। पुलिस की नौकरी करते ,बच्चों के लिए खाना बनाते, झाड़ू ,पोछा ,बर्तन, सब करते । वेतन कम था । लगातार तीन साल तक पत्नी की बीमारी के कारण कर्जदार हो गए। घर पर काम करने के लिए कोई बाई तैयार नहीं होती। नजदीकी रिश्तेदारों ने दूसरी शादी की सलाह दी । एक रिश्तेदार ने कहा “तुम्हारे बच्चे बहुत छोटे हैं। तुम पुलिस की सख्त नौकरी में हो। जहां टाइम टेबल का कोई ठिकाना नहीं रहता । इसलिए बच्चों को संभालने के लिए ही सही कम से कम दूसरी शादी कर लो । बच्चों की पढ़ाई के लिए गांव की जमीन बेच दो”। पंडित जी इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्हें मन में आशंका थी कि यदि शादी के बाद बच्चों के साथ भेदभाव किया तो क्या होगा ? वह अक्सर शादी की सलाह देने वालों से कहते ” मैंने बच्चों की मां को आखरी समय वचन दिया है। वह वचन ही मेरी प्रतिज्ञा है । मैं बच्चों को इनकी मां का भी प्यार दूंगा । बच्चों के साथ भेदभाव मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा। सवाल गांव की जमीन बेचने का ,तो वह किसी भी कीमत पर नहीं बेचूंगा । मेरी पुलिस की नौकरी है ।पुलिस वालों की जड़ पत्थर पर होती है । कब क्या हो जाए कुछ नहीं कह सकते? जमीन रहेगी तो कम से कम गांव जाकर बच्चों को पाल तो लूंगा” ।
बच्चों के मामा दोनों छोटी बहनों को अपने पास ले गए । पंडित जी का मन दोनों बच्चियों में लगा रहता। वे दोनों छोटी बच्चियों को वापस अपने घर ले आए । बच्चों को नहलाना- धुलाना,चोटी- पाटी, कपडे़ धोना ,खाना बनाना, बर्तन पोछा करना, साथ में पुलिस जैसी सख्त ड्यूटी करना पंडित जी की दिनचर्या का अनिवार्य अंग बन गया था । बच्चे बड़े होने लगे पंडित जी का पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित था। उन्होंने सभी बच्चों को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बच्चों की पढ़ाई के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के गहने बेच दिए । उनका मानना था “बच्चे अगर पढ़ जाएंगे तो ऐसे कितने ही घर खरीद लेंगे। अगर अनपढ़ रह जाएंगे तो घर,जमीन सब बेच कर खा जाएंगे। मेरा नाम बिगाड़ेंगे। लोग कहेंगे बच्चों की मां मर गई थी, कोई ध्यान नहीं दिया ।सारे बच्चे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं ।इसीलिए, रहेंगे नर तो और बांध लेंगे घर। पूत सपूत तो धन क्यों संचय”।
अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने में पंडित जी ने अपना पूरा जीवन लगा दिया । बच्चे बड़े हो गए । उच्च शिक्षित होकर सरकारी नौकरियां पा गए। बेटियों की अच्छे परिवारों में शादी हो गई । पंडित जी ने सेवानिवृत्त होकर लंबे समय तक पेंशन ली । सभी बेटे, बहुओं ने अच्छी सेवा की । पूरी उम्र लेकर सन 2004 में स्वर्ग सिधार गए । पुण्यात्मा पिताजी की स्वर्णिम स्मृतियों को शत-शत नमन ।
“पिता पर्वत पिता कैलाश पिता अमरनाथ हैं,
पिता सागर पिता सरिता पिता सारनाथ हैं ।
पिता हौंसला प्रेरणा उर्जा स्वाभिमान हमारे –
पिता अयोध्या पिता मथुरा पिता काशीनाथ हैं।”
रमेशचंद्र शर्मा
16 कृष्णा नगर इंदौर
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